नई दिल्ली: लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने बुधवार को नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. यह प्रस्ताव कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा सदन में लाया गया है.
विगत नौ वर्षों में यह दूसरा अवसर होगा जब यह सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी.
बिरला ने अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की इजाजत देते हुए कहा कि इसपर विस्तृत चर्चा के बाद तारीख का एलान करूंगा. स्पीकर ने यह भी कहा कि वह सभी दलों के नेताओं से बातचीत करके इस पर चर्चा की तारीख के बारे में बताएंगे.
मणिपुर में हुई हिंसा और वीडियो वायरल होने के बाद से ही सदन में पीएम मोदी के बयान को लेकर विपक्षी पार्टियां अड़ी हुई हैं. पिछले चार दिनों से सदन की कार्यवाही हंगामें की भेंट चढ़ रही है.
लोकसभा में शून्यकाल के दौरान ओम बिरला ने कहा, “मुझे सदन को सूचित करना है कि गौरव गोगोई से नियम 198 के तहत मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव का अनुरोध प्राप्त हुआ है…कृप्या आप (गोगोई) सदन की अनुमति प्राप्त करें.”
इसके बाद गोगोई ने कहा, “मैं इस प्रस्ताव के लिए सदन की अनुमति चाहता हूं”. गोगोई ने कहा, यह सभा मंत्रिपरिषद में विश्वास का अभाव प्रकट करती है.
इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ने इस प्रस्ताव की अनुमति के लिए इसका समर्थन करने वाले सदस्यों से अपने स्थान पर खड़े होने के लिए कहा. इस पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक और कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्य खड़े हो गए.
इसके बाद बिरला ने कहा, इस प्रस्ताव को अनुमति दी जाती है. मैं सभी दलों के नेताओं से चर्चा करके उचित समय पर इस प्रस्ताव पर चर्चा कराने की तिथि के बारे में आप लोगों को अवगत करा दूंगा. अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकार होने के बाद विपक्ष के कुछ सदस्यों ने ‘चक दे इंडिया’ का नारा लगाया.
मीडिया से बातचीत के दौरान गोगोई ने कहा, “INDIA गठबंधन को लोकसभा में अपनी संख्या के बारे में पता है, लेकिन यह सिर्फ संख्या के बारे में नहीं है. यह मणिपुर की न्याय की लड़ाई के बारे में है. मणिपुर के भाइयों और बहनों को एक संदेश जाना चाहिए कि पीएम मोदी शायद मणिपुर को भूल गए हैं, लेकिन दुख की इस घड़ी में INDIA गठबंधन उनके साथ खड़ा है और हम संसद के अंदर उनके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं.”
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई कहते हैं, हम पीएम मोदी से कहना चाहते हैं कि वह संसद में आएं और राष्ट्र को संबोधित करें क्योंकि यह मामला अब केवल मणिपुर के बारे में नहीं है, बल्कि यह अन्य राज्यों में भी फैल गया है. राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में. देश की अखंडता और अखंडता के लिए पीएम को संसद के अंदर से देश को संबोधित करना चाहिए…”
इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था. इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने मत दिया था.
इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है क्योंकि संख्याबल स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी समूह के 150 से कम सदस्य हैं. लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे.
संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख अनुच्छेद 75 में किया गया है. इसके मुताबिक, अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है. सदस्य नियम 184 के तहत लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हैं और सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है.
भारतीय संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था. नेहरू के खिलाफ 1963 में आचार्य कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे जबकि विरोध में 347 मत आए थे.
इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था.
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