मणिपुर: पारंपरिक मणिपुरी साड़ी और आकर्षक मणिपुरी टोपी पहने महिलाओं का एक समूह इंफाल की सड़कों पर पहरा दे रहा है. महिलाओं का यह समूह वहां से गुजरने वाले वाहनों की जांच करता है. महिलाएं गाड़ी में बैठे ड्राइवर से सबकुछ पूछती हैं और उनसे उनका आधारकार्ड सहित अन्य कागजात दिखाने के लिए कहती हैं. वह गाड़ी की डिक्की और पीछे की सीट की भी पूरी गहनता से जांच करती हैं.
ये महिलाएं कोई पुलिसकर्मी या सशस्त्र बलों के कर्मी नहीं हैं, बल्कि ‘मीरा पैबिस’, या ‘मशालवाहक’ हैं. ‘मीरा पैबिस’ मैतेई समाज की महिलाओं का एक समूह है जो समुदाय के नैतिक संरक्षक के रूप में काम करती हैं. आजकल यह मणिपुर में चल रही हिंसा के बीच लोगों की मदद कर रही हैं और एक सुरक्षाबल की भूमिका में है.
हालांकि, सुरक्षा बलों का कहना है कि ‘मीरा पैबिस’ सड़कों को अवरुद्ध करके उनके काम को प्रभावित करती हैं. इससे सुरक्षाबलों को तलाशी अभियानों में मुश्किल पैदा होती है. साथ ही यह दंगाइयों को भागने में भी मदद करती हैं. सुरक्षाबलों का मानना है कि इससे राज्य के पहाड़ी जिलों में कुकियों के लिए आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने में मुश्किल हो रही है.
मैतेई समुदाय के भीतर ‘मीरा पैबिस’ को ‘इमा’ या ‘मां’ के रूप में सराहा जाता है जो “अपनी मातृभूमि और लोगों की रक्षा” के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं.
इन महिलाओं ने अपने गांवों की रक्षा करने या सड़कों और राजमार्गों पर गश्त करने के लिए 6-7 घंटे की शिफ्ट की रूपरेखा तैयार की है. सभी महिलाएं लाठियों और मशालों से लैस रहती हैं.
“युद्ध के इस समय” में इनका मुख्य काम वाहनों की जांच करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुकी तक कोई राशन या “हथियार” न पहुंचे. अगर उन्हें वाहन में इस तरह का कुछ भी मिलता है तो वे ड्राइवर को भीड़ के हवाले कर देते हैं और गाड़ी में आग लगा देते हैं.
तस्वीरों की इस श्रृंखला के माध्यम से, दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर प्रवीण जैन ‘मीरा पैबिस’ और मैतेई-कुकी संघर्ष की एक झलक पेश कर रहे हैं.
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