नई दिल्ली: पिछले दिनों दक्षिण पश्चिम दिल्ली के द्वारका इलाके में नाबालिग घरेलू सहायिका को पीटने के आरोप में गिरफ्तार महिला पायलट को यहां की एक स्थानीय अदालत ने गुरुवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.
नाबालिग लड़की 10 साल की है, जो महिला पायलट के घर पर घरेलू सहायिका थी और लड़की को बुधवार को महिला और उसके पति ने कथित रूप से पीटा था जिसके बाद गुस्साए लोगों के एक समूह ने दंपत्ति से मारपीट की.
#WATCH | A woman pilot and her husband, also an airline staff, were thrashed by a mob in Delhi's Dwarka for allegedly employing a 10-year-old girl as a domestic help and torturing her.
The girl has been medically examined. Case registered u/s 323,324,342 IPC and Child Labour… pic.twitter.com/qlpH0HuO0z
— ANI (@ANI) July 19, 2023
दंपत्ति ने उस लड़की को अपने छोटे बच्चे की देखभाल के लिए रखा गया था. जिससे बाद में घर का काम भी कराया जाने लगा. उस नाबालिग को अक्सर गर्म लोहे के चिमटे से दागा जाता था.
वह करीब दो महीनों से वहां काम करती थी लेकिन उसके परिवार में किसी को नहीं पता था कि उसके साथ दुर्व्यवहार हो रहा है. लड़की की चाची ने कहा,‘‘आरोपी महिला उससे सारा काम कराती थी और मारती थी. जब भी वह कोई गलती कर देती थी तो उसे गर्म चिमटे या गर्म छड़ से दागा जाता था. उसके हाथ पर कई जगह जलने के निशान है.’’
घरेलू सहायिका के चाचा ने कहा, ‘‘हमने उसकी बांहों और शरीर के अन्य हिस्सों पर जलने के निशान देखे. उसकी आंखों में भी चोट के निशान थे. लड़की की मानसिक स्थिति बहुत खराब थी. वह डरी हुई और गमगीन थी.’’
हालांकि घरेलू नौकरों को मारने पीटने की यह कोई पहली घटना नहीं है. बाल अधिकार के लिए काम कर रहे उमेश कुमार गुप्ता बताते हैं कि बाल मजदूरी एक जाल की तरह है. दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद या फिर मुंबई, विभिन्न राज्यों के बड़े शहर हो इन सभी जगह में प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से घरेलू नौकरों को रखने का चलन है.
छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल में इन प्लेसमेंट एजेंसियों के ठेकेदार ऐसी बच्चियों को अपना निशाना बनाते हैं जिनके परिवार विभिन्न वजहों से आर्थिक परेशानी झेल रहे होते है. आधार कार्ड में उम्र बढ़ाकर दिखाना इन ठेकदारों और एजेंसियों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. दलालों के माध्यम से बड़े शहर में पहुंचना और इन प्लेसमेंट एजेंसियों से कमीशन लेकर उन बच्चों से काम करवाया जाता है.
बाल अधिकार के लिए काम कर रहे उमेश कुमार गुप्ता बताया, “गरीब लोगों को ये लोग झूठ बोल कर कि हम आप के बच्चों को पढ़ा देंगे इसे हमरे साथ भेज दो, और उसे ले जाते है जिसके बाद उनका शोषण करते है, मरते पीटते है.”
आईपीसी की धारा 370 ऐसे सभी मामलों में लागू होती है जहां धोखा देकर, लालच देकर या झूठ बोलकर किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाए और वहां उसका शोषण किया जाये. शोषण की परिभाषा में उसका शारीरिक शोषण या जबरिया मजदूरी करने, बंधुआ बनाकर या बंधुआ जैसी स्थिति में रखना शामिल है.
उनका कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर कोई काम नहीं कर रहीं है. सरकार मानती ही नहीं है कि हमरे राज्य में या देश में बाल मजदुर है. वो बताते है कि हमारे यहां से सारे बच्चे स्कूल जाते है.
2011 में आए आंकड़ें से अनुसार देश में 28 लाख बच्चे देश में बाल मजदूर हैं. लेकिन बाल अधिकार के लिए काम कर रहीं संस्थानों का मानना है कि ये सरकारी आंकड़ों से 7 से 8% ज्यादा होगा.
पूरी दुनिया में बाल श्रमिकों और चाइल्ड ट्रैफिकिंग की संख्या बढ़ रही है.अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन (ILO) के बाल-श्रम को रोकने के लिए कई कानूनों और UNCRC के आर्टिकल 32.1 और दुनिया के कई देशों के राष्ट्रीय बाल-श्रम कानून होने के बावजूद आज पूरी दुनिया में 1.51 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं.
साथ ही संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों की 2021 की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि दो दशकों में दुनिया भर में काम पर लगाए जाने वाले बच्चों का आंकड़ा अब 16 करोड़ पहुंच गया है. पिछले चार वर्षों में इस संख्या में 84 लाख की वृद्धि हुई है.
वहीं दूसरी तरफ सामुदायिक सहायता और प्रायोजन कार्यक्रम की दिल्ली यूनिट की डायरेक्टर मंजू उपाध्याय बताती हैं कि, “बाल श्रम एक तरह का नहीं होता है, ये अलग अलग तरह के होते हैं जिसका कोई आंकड़ा नहीं है. जिनके परिवार में ज्यादा बच्चे होते है और पैसे की दिकक्त होती है उनके घर के बच्चे काम करना शुरू कर देतें है. जैसे दिल्ली, मुंबई और बड़े शहरों में होता है. कुछ बच्चे वो होते हैं जिनको नशीले पदार्थ लेने की आदत होती है तो वो परिवालों से झगड़ा कर काम करने चले जाते हैं और उन पैसों से वो नशीला पदार्थ खरीद सकें. हालांकि, लड़कियों के मामले में ये आंकड़े कम हैं.
बच्चों के लिए काम कर रही उपाध्याय बताती हैं कि कुछ बच्चे और परिवार वो होते है जिनके बच्चों को रेस्क्यू कर अच्छे स्कूल या शेल्टर होम भेज देते है लेकिन उनको पैसे कमाने की लालच में वहां से निकाल कर फिर से काम करवाने के लिए भेज देते हैं.”
हालांकि उन्होंने बताया की पिछले 5 साल में ये आंकड़ो में कमी आई है.
उन्होंने आगे कहां, बाल श्रम के शिकार हुए बच्चों से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में काफी प्रभाव पड़ता है. जिसके बाद ज्यादातर बच्चे क्राइम की दुनिया में जाते है और उसी को सब से आसान काम समझते हैं.
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यह दिल्ली एनसीआर की पहली घटना नहीं है जब किसी घरेलू सहायिका को मारा पीटा गया हो या उसे गर्म चिमटे या आयरन से जलाया गया हो. अक्टूबर 2013 में दिल्ली के वसंत कुंज इलाके से झारखंड की रहने वाली 18 साल की घरेलू सहायिका के साथ भी ऐसा हुआ था.
बचाई गई किशोरी ने पुलिस को बताया था कि उसके मालिकों ने उसे पीटा और चाकुओं और झाड़ू से मारा, उसे भागने से रोकने के लिए अर्धनग्न अवस्था में रखा, उसे अपनी मां से मिलने के लिए छुट्टी नहीं दी गई और जब से उसे नौकरी पर रखा था उसे एक भी महीने का वेतन नहीं दिया गया था.
घरेलू सहायिका को मारने पीटने खाना न देनें की खबरें अक्सर सुनाई देतीं हैं और कुछ घटनाओं का तो पता तक नहीं चल पाता है. फ़रवरी 2023 में एक ऐसी ही घटना सामने आई थी. जिसमे गुरुग्राम में दंपती पर 14 साल की नाबालिग बच्ची के साथ मारपीट और उसे पीड़ित करने का आरोप था.
14 वर्षीय घरेलू सहायिका को अस्पताल में लाया गया था, उसका शरीर कट, जलन और चोटों से भरा हुआ था.
जिसके बाद गिरफ्तार किए गए दंपत्ति को नाबालिग के साथ कथित तौर पर मारपीट करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.
एफआईआर में लड़की ने कहा, “वह दोनों मुझे लोहे के चिमटे को गर्म कर के और मेरे शरीर पर लगते थे और मुझे बुरी तरह चोट पहुंचते थे और मेरा गला घोटते थे और मेरे निजी अंगों को चोट पहुंचाते थे.” “मुझे पूरा खाना भी नहीं दिया गया और खाने के लिए केवल थोड़ा सा चावल दिया जाता था. ये लोग मुझसे पूरा दिन काम कराते थे.”
बच्ची आगे बोली, “उसने मुझे अपने घर में कैद रखा और मुझे अपने परिवार के सदस्यों से फोन पर बात नहीं करने दी. इन दोनों ने मुझे बहुत पीटा है.”
बाल कल्याण के बजट में 33% की कमी
इस साल आए बजट 2023-24 में श्रम मंत्रालय को मिले फंड में बाल कल्याण के लिए आवंटित राशि में कटौती गई है जिसके कारण विशेषज्ञों ने बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग में बढ़ोतरी की आशंका जाहिर की है. विशेषज्ञों का कहना है कि पहले से ही बाल कल्याण के लिए काफी कम राशि मिलती थी और इस बार इसमें फिर से कटौती की गई है.
बजट 2023-24 में श्रम मंत्रालय ने बाल कल्याण मद की राशि में 33 फीसदी की कटौती की है.
बाल कल्याण के बजट में कमी होने पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन’ के डायरेक्टर (रिसर्च) पुरुजीत प्रहराज ने दिप्रिंट से कहा, ‘बजट में बाल कल्याण के लिए राशि घटाने से बालश्रम और चाइल्ड ट्रैफिकिंग में बढ़ोतरी होने की पूरी संभावना है. पिछले साल भी बजट में बाल कल्याण के लिए राशि में कटौती की गई थी और इस साल भी कटौती की गई है.’
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