लखनऊ: कहते हैं राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं, ऐसा ही आज मैनपुरी में दिखने वाला है. राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधी माया- मुलायम शुक्रवार को एक ही मंच पर साथ होंगे. ये दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा. करीब ढाई दशक पहले मुलायम ने कांशीराम के साथ मंच साझा किया था. अब वह मायावती के साथ मंच साझा करेंगे.
मैनपुरी के क्रिश्चियन कॉलेज मैदान में शुक्रवार को सपा-बसपा आरएलडी गठबंधन की संयुक्त रैली है. लोकसभा चुनाव में इस रैली के कई मायने निकाले जा रहे हैं. अखिलेश यादव, सतीश मिश्रा समेत दोनों दलों के अन्य नेता भी एक साथ मंच पर होंगे. उधर गठबंधन में शामिल रालोद के मुखिया अजित सिंह भी इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनेंगे. रैली में करीब 2 लाख लोगों को इकट्ठा करने का दावा किया जा रहा है. इसके लिए व्यवस्थाएं भी बनाई गई हैं. प्रशासन ने भी पूरी तरह इंतजाम कर लिए हैं.
गेस्ट हाउस कांड के बाद बदले रिश्ते
1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद से यूपी की राजनीति बदल गई. इससे पहले मुलायम-कांशीराम साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और 1993 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इस गठबंधन को जीत मिली थी और मुलायम सिंह यादव सीएम बने थे. हालांकि, दो ही साल में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते खराब होने लगे. इसी बीच मुलायम सिंह को भनक लग गई कि मायावती बीजेपी के साथ जा सकती हैं.
मायावती लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रहीं थीं. इतने में एसपी के कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंचे और बीएसपी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करने लगे. आरोप है कि मायावती पर भी हमला करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद करके खुद को बचा लिया. इस घटना के बाद मायावती ने समर्थन वापस लेने के ऐलान कर दिया. इसके बाद मायावती बीजेपी से समर्थन से सीएम बन गईं.
बता दें कि इस बार उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया गया जिसमें यह तय किया गया कि 37-38 सीटों पर बीएसपी और सपा चुनाव लड़ेगी वहीं दो सीटें शुरू में आरएलडी के लिए छोड़ी गई थी, बाद में एक सीट और आरएलडी की दी गई है. वहीं इस गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली में अपने प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है. अखिलेश-माया की साझा प्रेस काॅन्फ्रेंस के दौरान मायावती ने कहा था कि बीजेपी को हराने के लिए दोनों दल एक साथ आए हैं.