नई दिल्ली: नौसेना को बड़ा बढ़ावा देते हुए, रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को अनुमानित 10 बिलियन यूरो (91,000 करोड़ रुपये) के सौदे में फ्रांस से 26 राफेल समुद्री लड़ाकू विमान और तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियां खरीदने की भारत की योजना को मंजूरी दे दी.
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुरुवार को फ्रांस की आधिकारिक यात्रा के लिए रवाना होने के तुरंत बाद प्रस्तावों को मंजूरी दे दी. उन्होंने कहा, दोनों सौदों की घोषणा यात्रा के दौरान की जाएगी और वास्तविक अनुबंध पर बाद में हस्ताक्षर किए जाएंगे, जैसा कि दिप्रिंट ने पहले भी रिपोर्ट किया था.
योजना के मुताबिक, नौसेना अपने स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को हथियारों से लैस करने के लिए 22 सिंगल-सीट राफेल एम और चार ट्रेनर विमान खरीदेगी.
अनुमानित 5 बिलियन यूरो (45,000 करोड़ रुपये) की कीमत वाले इस सौदे में प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे की लागत के अलावा हथियार पैकेज भी शामिल होंगे. यह सौदा ऐसे महत्वपूर्ण समय पर हुआ है जब नौसेना के पास दो विमान वाहक पोतों से संचालन के लिए पर्याप्त लड़ाकू विमान नहीं हैं.
हालांकि यह आईएनएस विक्रमादित्य से मिग-29K को संचालित करता है, लेकिन विमान के उपयोग से कई रखरखाव संबंधी समस्याएं बनी रहती हैं.
जैसा कि पिछले दिसंबर में दिप्रिंट ने सबसे पहले रिपोर्ट किया था, नौसेना ने अमेरिकी लड़ाकू विमान – एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट की जगह राफेल एम को चुना था.
26 विमानों की खरीद के लिए नया अनुबंध एक अंतरिम व्यवस्था है, यह देखते हुए कि भारत अपने स्वदेशी ट्विन इंजन डेक-आधारित फाइटर (TEDBF) का निर्माण कर रहा है – एक प्रोटोटाइप 2026-27 तक होने की संभावना है, इसके बाद 2032 के आसपास उत्पादन शुरू होगा.
अंतिम रूप दिए जाने वाले दूसरे महत्वपूर्ण समझौते में प्रोजेक्ट 75 के तहत तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की खरीद शामिल है, जिस पर भारत को अनुमानित 4 बिलियन यूरो (36,000 करोड़ रुपये) का खर्च आएगा. परियोजना के तहत, फ्रांसीसी फर्म नेवल ग्रुप और राज्य संचालित भारतीय शिपयार्ड मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) के बीच संयुक्त साझेदारी के माध्यम से भारत में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण किया गया है.
अतिरिक्त ऑर्डर इसलिए दिए जा रहे हैं क्योंकि भारतीय नौसेना पनडुब्बी संकट का सामना कर रही है और 2030 तक चीन और पाकिस्तान के खिलाफ प्रभावी निवारक विकसित करने की अपनी महत्वाकांक्षी 30-वर्षीय योजना से पीछे रह गई है. इस योजना के तहत, भारत को 24 पनडुब्बियां बनानी थीं जिसमें 18 पारंपरिक पनडुब्बियां और छह परमाणु-संचालित पनडुब्बियां (एसएसएन) शामिल हैं.
18 पारंपरिक पनडुब्बियों में से, नौसेना अब तक केवल छह – स्कॉर्पीन – का निर्माण कर पाई है.
प्रोजेक्ट 75 या पी-75(आई), एक अन्य कार्यक्रम जिस पर नौसेना एक दशक से अधिक समय से काम कर रही है, अभी तक शुरू नहीं हुआ है. इस परियोजना के तहत, पारंपरिक पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की अनुमति देने के लिए एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) सिस्टम के साथ नए पानी के नीचे के जहाजों को विकसित किया जाना है. लेकिन फ्रांसीसी नई परियोजना की दौड़ से बाहर हैं क्योंकि वे भारतीय नौसेना की प्रमुख निविदा आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं.
फ्रांस ने, अपने भारतीय साझेदार एमडीएल के साथ मिलकर, सरकार को भारतीय शिपयार्ड के साथ तीन और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण का प्रस्ताव दिया था, जिससे जहाजों के निर्माण में प्राप्त विशेषज्ञता कायम रह सके.
नौसेना ने आखिरकार और अधिक स्कॉर्पीन लेने का फैसला किया क्योंकि भले ही आज फैसला हो जाए कि भागीदार कौन होंगे, नौसेना को पी-75(आई) के तहत पहली पनडुब्बी हासिल करने से पहले कम से कम सात साल इंतजार करना होगा.
(अनुवाद- पूजा मेहरोत्रा)
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