हरियाणवी पॉप कल्चर ने धीरे-धीरे शहरी युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है. आपको याद होगा कि 2010 में देश में सालों बाद इंटरनेशनल खेल हुए थे. उस साल कॉमनवेल्थ खेलों में हरियाणा के बहुत से खिलाड़ी जीते थे. जीतने के बाद ये खिलाड़ी हरियाणा और देशभर के पोस्टर्स में छाए गए. इनके हरियाणवी लहजे ने दूसरी जगहों के लोगों को प्रभावित किया.
इसका सबसे ज्यादा असर देखने को तब मिला जब 2016 में साक्षी मलिक ने ओलंपिक में मेडल जीता और साल के ही आखिर में ही आई दंगल फिल्म का ‘म्हारी छोरी के छोरों तै कम है के’ डायलॉग फेमस हुआ. बाद में इस लाइन को राष्ट्रीय अखबारों ने अपने मुख्य पृष्ठों पर प्रमुखता से छापा. हरियाणवी पॉप कल्चर के फलने-फूलने का सबसे बड़ा उदाहरण ही यही है कि हरियाणा की लड़िकयों की उपलब्धियों के लिए हरियाणवी लाइनों का इस्तेमाल किया गया.
इस पूरे क्रम में हरियाणवी गानों, यूट्यूब चैनलों, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स और बॉलीवुड का अहम रोल रहा. हरियाणवी पॉप कल्चर मुख्यत: दिल्ली, गुरुग्राम, पश्चिमी यूपी और हरियाणा के कस्बाई शहरों में फैला. गुरुग्राम इसका केंद्र बिंदु रहा है. इसका एक कारण तो ये भी हो सकता है कि गुरुग्राम पब्स और बार का हब है. यहां सैंकड़ों पब और बार एक साथ हैं. दूसरा कारण ये हो सकता है कि देसी बोली के नाम से वीडियोज का समुद्र बनाने वाले ज्यादातर यूट्यूबर्स इस इलाके में रहते हैं. हालांकि इसका असर छोटे गांवों तक भी हुआ है. गांव-देहात के युवाओं की लाइफस्टाइल और फैशन हरियाणवी यूट्यबर्स और सिंगर्स की देखा-देखी में बदली है.
क्या होता है पॉप कल्चर?
पॉप कल्चर के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो इसका मतलब है मास मीडिया द्वारा प्रभावित आधुनिक जीवनशैली. आसान भाषा में इसे इस तरह समझ सकते हैं कि एक जगह के एक ही साथ बहुत सारे लोग कैसे रह रहे हैं, क्या देख रहे हैं और क्या सोच रहे हैं. पॉपुलर कल्चर का मुख्य केंद्र युवा होता है. आमतौर पर पॉप कल्चर की जब बात होती है तो युवाओं की जीवनशैली के बारे में चर्चा होती है. हालांकि एकेडमिक्स के कई लोग इसे सिर्फ जीवनशैली से ना जोड़कर, राजनीतिक विचारधाराओं और व्यवहार से भी जोड़ कर देखते हैं. मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज के चिन्मय शाह का कहना है, ‘पॉप कल्चर में डांस, आर्ट और फिल्मों को भी शामिल किया जाता है. पॉप कल्चर को इलीट कल्चर की तुलना में ‘नीचा’ समझा जाता है.’
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कैसे पंजाबी पॉप कल्चर के समानांतर खड़ा हुआ
बॉलीवुड में पंजाबी पॉप कल्चर ज्यादा प्रभाव रहा है. देश के बड़े महानगरों में रहने वाले लोगों की जीवन शैली में इसका असर देखा जा सकता है. यही वजह है कि पंजाबी पॉप सॉन्गंस की भी खूब डिमांड रहती है. गुरुग्राम के पब हों या दिल्ली के, पंजाबी गानों के बिना कोई पार्टी पूरी नहीं होती. लेकिन अब इसके समानांतर ही हरियाणवी पॉप कल्चर भी खड़ा हो रहा है. बॉलीवुड से जुड़े कई लोग इसका श्रेय सपना चौधरी को ही दे रहे हैं.
पंजाबी पॉप कल्चर पर कई रिसर्च भी हो चुकी हैं कि पॉप सॉन्गंस के लिरिक्स ने यूथ को ड्रग का शिकार बनाया. समय-समय पर फेमिनिस्ट डिस्कोर्स में इन गानों के नेपथ्य में छुपे सेक्सिज्म पर भी चर्चा की जाती रही है. लेकिन हरियाणवी पॉप कल्चर अभी इस बहस का विषय नहीं बन पाया है.
हरियाणवी गाने: हुक्का, ट्रैक्टर, खेती और देसी कट्टा-बोली
हरियाणवी गानों ने भी पिछले कुुछ सालों से यूट्यूब पर जबरदस्त जगह बनाई है. गानों के लिरिक्स में युवा अपनी बोली ना छोड़ने की घोषणा करते हैं तो कुछ अंग्रेजी ना सीखने का दंभ भरते हैं. किसी की गर्लफ्रेंड पिज्जा खाती है तो किसी मॉल में जाती है. कुछ गानों में गुरुग्राम और सोनीपत बेल्ट में कॉर्पोरेट हो चके गांवों के युवाओं में खेती के लिए नॉस्टैल्जिया भी देख जाता हैं. अपनी जमीनों से प्लॉट काटकर किराए दारों को दे चुके व मर्सिडीज चलाने वाले लड़कों में ट्रैक्टर के लिए जगा प्रेम भी दिखता है. गुरुग्राम बेल्ट के ज्यादातर गांव अब किसानी और खेती को लेकर नॉस्टैलजिक हो रहे हैं. कुछ गानों के लिरिक्स इस प्रकार हैं-
देसी-देसी ना बोलया कर छोरी रै, इस देसी की फैन या दुनिया हो री है, मेरी मां बोलै वा बोली मैं ना छोड़ू मैं, या मेरी तरफ तै कल्यिर मैडम सोरी रै
तू इंग्लिश मीडियम पढ़ी हुई, हॉस्टल मह सै तू कढ़ी हुई, मैं सरकारी मह पढया होया, मेरा मजनू नाम से कढया होया
तू हाई लेवल की छोरी सै मैं छोरा सूं जमीदारां का, तू सोवे मखमल के गदया पै, मैं पाणी लायूं राता नै,
वैसे, गानों में लख्मीचंद के फैन होने की बातें भी हैं. कुछ नए सिंगर लख्मीचंद की पुरानी रागिनियों को नए अंदाज में भी गा रहे हैं. जैसे मासूम शर्मा. गानों में अब देसी कट्टों का भी इस्तेमाल हो रहा है, यारों के लिए जान देने जैसी क्रांतिकारी बातें भी. दारू को लेकर यूथ थोड़ा चिंतित दिखाई देता है, इसलिए पति-पत्नी की रोज होती लड़ाइयों के ऊपर भी गाने गाए जा रहे हैं.
बॉलीवुड भी अपने गानों में हरियाणवी शब्दों के साथ एक्सीपेरिमेंट कर रहा है. बिहार से आने वाले गीतकार राज शेखर अपने गानों में हरियाणवी गानों का इस्तेमाल करते हैं. राज शेखर ने तनु वेडस मनु के गाने लिखे थे. उनका लिखा ‘घणी बावरी होगी’ गाना काफी हिट हुआ था. अभी वो यूपी की पृष्ठभूमि पर बन रही फिल्म ‘सांड की आंख’ में भी इस तरह का एक्सपेरिमेंट करते नजर आएंगे.
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दिप्रिंट से बात करते हुए राज शेखर बताते हैं, ‘ये तो नहीं कह सकते कि हरियाणा पॉप कल्चर का बॉलीवुड में जलवा कायम हो गया है. लेकिन थोड़ी-बहुत स्वीकारोक्ति जरूर मिली है. प्योर हरियाणवी हैदराबाद या कलकता के दर्शकों को समझ नहीं आएगी. ऐसे में शब्दों का थोड़ा लहजा बदल दिया जाता है. पंजाबी कल्चर यहां खूब फला-फूला है. एक तो बॉलीवुड के बड़े घराने पंजाब से रहे हैं. इसलिए उनके कल्चर का ज्यादा प्रभाव रहा है. हरियाणा के कलाकार उतनी संख्या में हैं भी नहीं. लेकिन कुछ हरियाणवी शब्दों को बेहद पसंद किया जाता है. जैसे- खागड़ और धाकड़.’
बॉलिवुड और सपना चौधरी
हमने दिल्ली और दिल्ली एनसीआर के कई युवाओं से इस पर चर्चा की. आश्चर्यजनक रूप से हरियाणवी पॉप कल्चर का नाम लेते ही ज्यादातर लोगों को पहला खयाल सपना चौधरी का ही आया. तेरी आंख्यां का यो काजल..मन्नै करै सै गोरी घायल. लेकिन हरियाणवी पॉप कल्चर के उदय को पूरी तरह सपना चौधरी से जोड़ देना भी सही नहीं होगा. ‘सपना के आने से पहले कौनसा हरियाणवी गाना सुना था’ के जवाब में कई लोगों ने बताया ‘हट ज्या ताऊ पाछे नै’.
दंगल, सुलतान, तनु वेडस मनु जैसी कई फिल्मों ने बॉलीवुड को हरियाणवी ह्यूमर को अलग तरह से पेश किया है. ये तीनों ही फिल्में सुपर-डुपर हिट भी रही हैं. इन फिल्मों के जरिए हरियाणवी बोली का एक अलग तरह का डायलेक्ट तैयार हुआ जो सेमी अर्बन और अर्बन जनता को आकर्षित करता है. इस नए डायलेक्ट को लेकर हरियाणा के कुछ लोग ये आरोप भी लगाते रहे हैं कि इस तरह बोलियों के असली स्वरूप को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है.
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छोटा रुपहला पर्दा हमेशा से ही वो चीजें बेचने में कामयाब रहा है जो मीडिया में चर्चित रहती हैं. कभी गुजरात के संयुक्त परिवारों की थीम पर सीरियल बन रहे थे. जैसे साथ निभाना साथिया. अब नागिन और चुड़ैल आधारित सीलियल्स की भरमार है. वैसे ही पिछले सालों में हरियाणवी हिंदी पर बेस्ड कई सीरियल आए. जैसे- बड़ो बहू. टीवी सीरियल्स और सोशल मीडिया ने जिस तरह हरियाणवी कल्चर को जगह दी वैसे ही हरियाणवी इंडस्ट्री भी खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है.
अमित बढाणा, ललित शौकीन, स्योराण फैमिली और हर्ष बेनिवाल
अब यूट्यूब मास मीडिया का भी काम करता है. ट्रेंड सेट करता है. इसके जरिए भी लोगों ने हरियाणवी पॉप कल्चर को जाना. अमित बढाणा के यूट्यूब चैनल के 14 मिलयन सब्सक्राइबर्स हैं. हर्ष बेनिवाल के 5.7 मिलियमन सब्सक्राइबर्स हैं. रिश्शम के 1 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं. ललित शौकी के 2.8 सब्सक्राइबर्स हैं. एलविश यादव के 4.4 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं. राखी लोहचाब ने एक साल पहले ही चैनल शुरू किया था जिसके करीब ढ़ाई लाख फॉलोअर्स हैं. ये सारे ही यूट्यूबर्स को लेकर दिल्ली एनसीआर के युवाओं में क्रेज है. इनके चैनलों का कंटेंट हरियाणवी बोली और हरियाणवी परिवेश को शहरी तड़के के साथ पेश करता है.
हरियाणा के कई हिस्सों में ललित शौकीन और श्योराण फैमिली के वीडियोज देखे जाते हैं तो हर्ष बेनिवाल और अमित बढाणा के दिल्ली एनसीआर में. इन यूट्यूबर्स ने हरियाणवी डायलॉग्स को पॉपलुर बनाने में मदद की है. जैसे- तू रुक जया फूफा, अरै कित जावै से. इस तरह यूट्यूब पर भी हरियाणवी बोली का एक अलग और कूल डायलैक्ट बन गया जो गैर-हरियाणवी लोग भी हिंदी में आसानी से समझ पा रहे हैं.
गुरुग्राम, दिल्ली और फरीदाबाद का बार कल्चर
हरियाणवी पॉप कल्चर के फलने फूलने में इन तीन शहरों की भी भूमिका है. शुरुआत में जब हरियाणवी सिनेमा शुरू हुआ था तो इन शहरों के लोग उससे कनेक्ट नहीं कर पाए थे. हरियाणवी सिनेमा पर शोध कर चुके कुछ लोगों ने इस बात को सिरे से लिखा भी है. गुरुग्राम के पब्स और बार हुक्का उपलब्ध कराते हैं. एक इंटरनेशनल सिटी में हुक्के की कल्पना भी बड़ी बात है.
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एक और पक्ष: ‘हरियाणवी पॉप कल्चर ने फैलाया जातिवाद?’
गुरुग्राम के रहने वाले थिएटर आर्टिस्ट तनय ने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां एक फैशन है कि गाड़ी में एक हु्क्का रखना. शादी ब्याह में भी दो-चार गानों के बाद वही हरियाणवी गाने सुनने को मिलते हैं जो हरियाणा के किसी गांव में सुनने को मिल जाएंगे. नए गुरुग्राम के कुछ हिस्सों के लड़को को हरियाणवी में बोलकर धौंस जमाते दिख जाएंगे. गाड़ी पर अहीर-जाट लिखवाकर घूमना. गले में सोने की चैन पहनना. यूट्यूब ने हरियाणवी ह्यूमर को बढ़ावा तो दिया है लेकिन कुछ सामाजिक मुद्दों को लेकर असंवेदनशील भी बनाया है. सेक्टर चार की एक दुकान पर हुक्का रखने की चर्चा हुई तो एक युवक ने आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर दुकान पर हुक्का रखा गया तो सिर्फ जाट और ब्राह्मण के बालक पियेंगे.’
‘जाटा को छोरा’ गाने पर बात करते हुए तनय कहते हैं कि अगर ‘जाटा का छोरा’ की जगह किसी पिछड़ी जाति का जिक्र होता तो क्या इस गाने को पॉप्लुर कल्चर में जगह मिल पाती?