scorecardresearch
Thursday, 7 November, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावचुनाव प्रचार से गायब तेजस्वी यादव, आरजेडी और कांग्रेस को याद आ रहे हैं लालू यादव

चुनाव प्रचार से गायब तेजस्वी यादव, आरजेडी और कांग्रेस को याद आ रहे हैं लालू यादव

तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार से अबतक 4 दिन गायब हो चुके हैं. उन्होंने सहयोगी दलों और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया है.

Text Size:

पटना: तेजस्वी यादव के पास उनके पिता लालू प्रसाद यादव का आशीर्वाद हो सकता है लेकिन पिता जैसा चुनाव प्रबंधन का कौशल उनके पास नहीं है.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव बिहार में महागठबंधन बनाने में अहम् भूमिका निभाने वालों में से एक हैं. लेकिन, इस लोकसभा चुनाव में जिस तरह से अभियान चलाया जा रहा है उसको लेकर राजद और महागठबंधन दोनों के भीतर मतभेद हैं.

ज़्यादा असंतोष तेजस्वी के चुनाव प्रचार से गायब होने से उपजा है. आरजेडी नेता ने अब तक चार दिन- 30 मार्च, 9 अप्रैल, 14 अप्रैल और 15 अप्रैल को चुनाव प्रचार नहीं किया है. इनमें से दो दिनों के लिए उन्होंने हेलीकॉप्टर खराबी का हवाला दिया और अन्य दो दिनों में उन्होंने अस्वस्थ होने का बहाना बनाया. इसके परिणामस्वरूप दर्जनों जनसभाओं और रैलियों को रद्द करना पड़ गया है.

तेजस्वी की अनुपस्थिति सभी की आंखों में खटक रही है क्योंकि उन्होंने इस लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए केवल 10 दिन का समय निर्धारित किया है. नतीजतन, महागठबंधन का प्रचार अभियान लड़खड़ा रहा है. जिससे राजद के भीतर भी सार्वजनिक रूप से बहुत असंतोष है और पार्टी तो पार्टी बल्कि विपक्ष लालू यादव को याद कर रहा है.

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा, ‘महागठबंधन का प्रचार लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित हुआ है.’

कांग्रेस के पूर्व सचिव स्कलील-यू-ज़ामा जो किशनगंज में डेरा डाले हुए हैं ने और भी साफगोई से कहा कि ‘यदि प्रचार अभियान का समन्वय नहीं किया जाता है तो हमें इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा’. उन्होंने तेजस्वी यादव की 14 अप्रैल की किशनगंज की सार्वजनिक रैली का ज़िक्र किया. जिसे रद्द कर दिया गया उसमें 25,000 लोगों को शामिल होना था.

आरजेडी में यह भी सवाल हैं कि चुनावी लड़ाई को लेकर तेजस्वी के दिमाग में क्या चल रहा है.

आरजेडी के एक नेता ने कहा, ‘लोकसभा चुनावों के दौरान लालू हमेशा एक दिन में आठ से नौ सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया करते थे. 2015 के विधानसभा चुनावों में लालू हार्ट के ऑपरेशन से उबर रहे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने (मुख्यमंत्री) नीतीश कुमार को जनसभाएं करने के मामले में पीछे छोड़ दिया था.  दूसरी ओर, तेजस्वी एक दिन में लगभग तीन से चार सार्वजनिक सभाएं ही करते हैं.

हालांकि तेजस्वी के समर्थकों का दावा है कि चुनाव प्रचार अभियान से गायब होने के उनके कारण वास्तविक थे.

आरजेडी के एक विधायक ने कहा कि कोई भी ख़राब हेलीकॉप्टर की सवारी करने की उम्मीद नहीं कर सकता है और डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है क्योंकि वो हीट स्ट्रोक से जूझ रहे हैं. विधायक ने यह भी कहा कि तेजस्वी की अनुपस्थिति महागठबंधन के उम्मीदवारों की संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेगी.’

विधायक ने कहा कि आरजेडी के वोट महागठबंधन के उम्मीदवारों के पास ही जाएंगे भले ही तेजस्वी यादव उनके लिए प्रचार करने के लिए न जाये.

सहयोगियों (महागठबंधन) में नाराज़गी

हालांकि, प्रचार अभियान में तेजस्वी यादव के कुप्रबंधन से महागठबंधन में विशेष रूप से कांग्रेस के बीच नाराज़गी पैदा कर दी है. राजद नेता के द्वारा 14 और 15 अप्रैल को प्रचार अभियान से गायब होना कांग्रेस पर सीधा असर डालेगा. क्योंकि 18 अप्रैल यानी आज चल रहे चुनाव में इसका सबसे अधिक प्रभाव दिख रहा है यह सबसे महत्वपूर्ण था.

बिहार की पांच लोकसभा सीटों में से तीन में दूसरे चरण के मतदान में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. बिहार में सात चरणों में वोट पड़ेंगे.

राजद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘तेजस्वी यादव किशनगंज और कटिहार में सभाओं को संबोधित नहीं कर सकते थे. राहुल गांधी ने गया और कटिहार में सभाओं को संबोधित किया, लेकिन दोनों ही बार तेजस्वी ने राहुल के साथ मंच साझा नहीं किया.

अगर इसकी तुलना एनडीए के उस अभियान से करें जहां भी पीएम मोदी बिहार में एक जनसभा को संबोधित करते हैं. वहां नीतीश कुमार हमेशा मौजूद रहते हैं.

आरजेडी नेता ने यह भी बताया कि एनडीए की सभी बैठकों में तीन दलों के नेता – भाजपा, जद (यू) और लोजपा ने मंच साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि महागठबंधन में अभी तक एक भी बैठक नहीं हुई है. जिसमें, सभी दलों के नेता मौजूद रहे हो.

राजद के वरिष्ठ नेता ने कहा, अगर कोई भी संयुक्त अभियान नहीं होता है तो ज़मीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय मुश्किल हो जाता है और उम्मीदवार अलग-थलग और निरंकुश महसूस करते हैं’. ‘यह विपक्षी खेमे को मतदाताओं के बीच अफवाह फैलाने का मौका देता है कि गठबंधन के अन्य साथी उम्मीदवार को नहीं जीताना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि महागठबंधन के सहयोगियों ने अभियान के समन्वय के लिए एक समिति बनाने का फैसला किया था. लेकिन, अभी तक इसका गठन नहीं हुआ है. इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि एनडीए ने इस बात पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है कि मतदान शुरू होने से पहले ही महागठबंधन अलग हो गया है.

नेतृत्व पर सवाल

असंतोष को दूर करने में असमर्थता के कारण तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

राजद के वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनाव में प्रबंधन के कारण असंतोष एक महत्वपूर्ण कारण हैं. मधुबनी में पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ़ फ़ातिमी ने घोषणा की है कि वह एक निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. तेजस्वी ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित करने की धमकी दी है.

संयोग से, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व महासचिव शकील अहमद ने घोषणा की है कि वह भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ेंगे. हम बिना चुनाव लड़े ही मधुबनी की सीट भाजपा को दे सकते हैं’.

सुपौल लोकसभा क्षेत्र में आरजेडी के अध्यक्ष ने कांग्रेस की रंजीता रंजन के खिलाफ नामांकन पत्र दाखिल किया है वह राजनेता पप्पू यादव (डॉन ) की पत्नी हैं.

वरिष्ठ राजद नेता ने कहा ‘ये बातें तब हो रही हैं जब मतदान शुरू हो चुका है. यह पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के मनोबल को हतोत्साहित करता है और एक गलत संदेश भेजता है.

अब केवल कृपा ही बचा सकती है. एनडीए को भी वाल्मीकि नगर और बांका में असंतोष का सामना करना पड़ रहा है. अगर लालूजी होते तो असंतुष्टों से बात करने की कोशिश करते और उन्हें चुनाव न लड़ने के लिए मनाने की कोशिश करते. तेजस्वी ने ऐसा कोई भी प्रयास नहीं किया है.

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर महागठबंधन बिहार में बुरी तरह से प्रभावित होता है. तो, तेजस्वी का कुप्रबंधन इसके मुख्य कारणों में से एक होगा. उन्होंने कहा, ‘अगर हम जीतते हैं तो यह मतदाताओं का धन्यवाद होगा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments