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Thursday, 21 November, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावआखिर कौन हैं साध्वी प्रज्ञा, जो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल में देंगी टक्कर

आखिर कौन हैं साध्वी प्रज्ञा, जो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल में देंगी टक्कर

हिंदू आतंकवाद की बात करने वाले दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा है. मालेगांव ब्लास्ट केस में मुख्य आरोपी भी हैं, जिस पर सुनवाई चल रही है.

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नई दिल्ली: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को मैदान में उतारा है. साध्वी के मैदान में उतरने से मुकाबला रोचक हो गया है. हिंदुत्व का चेहरा साध्वी प्रज्ञा हमेशा से कांग्रेस पार्टी पर तीखे प्रहार करती आईं हैं. मालेगांव ब्लास्ट केस में मुख्य आरोपी बनाए जाने के बाद से साध्वी ​सुर्खियों में आईं थीं. मालेगांव ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है. साध्वी प्रज्ञा मई 2016 से जमानत पर रिहा हैं. हाल ही में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को प्रयागराज में हुए कुंभ के दौरान भारत ​भक्ति अखाड़े की आचार्य महांमडलेश्वर भी बनाया गया. अब वे आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णचेतनानंद गिरी के नाम से जानी जाती हैं.

मध्यप्रदेश के भिंड जिले के कछवाहा गांव में जन्मी साध्वी प्रज्ञा इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. उनके पिता चंद्रपाल सिंह पेशे से आर्युवैदिक डॉक्टर थे. वे गांव में ही अपना क्लीनिक चलाते थे. पिता के संघ से जुड़े होने के चलते उनका झुकाव शुरू से ही राष्ट्रीय विचार की तरफ रहा. अच्छी भाषा शैली होने के चलते वे अपने भाषण से लोगों को बांधकर रखती थीं. इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की छात्र ईकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ीं. परिषद से जुड़ी होने के कारण उनका शुरुआती दिनों में इंदौर, भोपाल, देवास और जबलपुर के कार्यक्रमों में आना जाना लगा रहता था. वे इन कार्यक्रम में भाषण के जरिए लंबे समय तक लोगों को बांधे रखती थी.


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विद्यार्थी परिषद से जुड़े होने के कारण प्रज्ञा राष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जानें लगीं. कुछ वर्षों के बाद वे विद्यार्थी परिषद छोड़कर साध्वी बन गई. यहां वे कई संतों के संपर्क में आईं. इसके बाद वे प्रवचन करने लगी. मध्यप्रदेश को छोड़कर वे गुजरात में काम करने लगीं. सूरत में आश्रम बनाकर रहने लगीं. प्रज्ञा गांवों में जाकर हिंदुत्व के प्रचार प्रसार में जुट गईं. इस दौरान वे कांग्रेस सरकार की नीतियों और कांग्रेस की जमकर आलोचना भी करती थीं. भाजपा का युवा मोर्चा साध्वी के कार्यक्रम करवाता और उसे सफल बनाने के लिए काम करता था.

इसके बाद वह कई वर्षों तक गुजरात और मध्यप्रदेश में काम करने लगीं. 2007 में उन्हें राष्ट्रीय स्वंय संघ के प्रचारक सुनील जोशी हत्याकांड में आरोपी भी बनाया गया. कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था. 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. इस दौरान वह करीब 9 वर्षों तक जेल में भी रहीं. उन्होंने यातना देने की बात भी मीडिया से अपनी एक चर्चा में कही थी. आरोप लगाते हुए कहा था कि मुंबई एटीएस के प्रमुख रहे हेमंत करकरे इस दौरान उन पर सबसे ज्यादा आत्याचार किए हैं.

तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिंदंबरम ने हिंदू आतंकवाद का नाम देकर मुझे झूठे केस में फंसाया. इसके बाद कांग्रेस के कई नेता दिग्विजय सिंह भी भगवा आंतकवाद के मुद्दे को जोर शोर से उठाते रहे हैं. जेल में रहते हुए प्रज्ञा को ब्रेस्ट कैंसर भी हो गया था. उन्होंने इलाज के लिए जमानत का आवेदन भी दिया था, जिसे बाद में कोर्ट ने नामंजूर कर दिया था.

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1 टिप्पणी

  1. मै पुन्हत: सहमत हू, एक आंबेडकरी आंदोलन कर्ता तथा भारिप-बहूजन महासंघ के विद्यार्थी संघटन से जुडा होने के नाते यह मानता हू, कि सामाजिक पुंजी तुम्हारी पहचान तथा तुम्हारे अपने अस्तित्व को सामाजिक तौर पर कितने लोगो द्वारा जाना जाता है. बढती है, पर राजू यादव तथा कन्हैया के बारे मे आपने जो गहराई से मत रखा वाकई वो हमे सोच मे डालता है कि राजनिती के इस दौर मे क्या भला गरीब भी इन सब बातों का शिकार होता है..? जहॉ वह गरीब तो है पर उसकी जाती तथा उसका प्रशिद्ध चेहरा उसको सातवे आसमान मे लेकर चला जाता है. थोंडा गौर से बताऊ तो महाराष्ट्र कि राजनिती मे जहॉ समूचे देश मे आंबेडकर संविधान लोकतंत्र पर जोर – जोर से बहस कि जाती है. उसी के पौते को राजनिती मे किसी भी विकल्प पर नही देखा जा रहा है. सामाजिक पुंजी को लेकर भलेंही समाज के भिन्न-भिन्न लोगों द्वारा उन्हे पुंजी चुनाव के दरम्यान दि भी गयी पर उसमे सरकार द्वारा पिडीत बडी पुंजी रखने वालो का नाम सुची मे नही मिला. वही कॉग्रेस तथा अन्य सहसमज रखने वाले अपने अस्तित्व को उनके समाजिक नेतृत्व को लेकर डरे हूऐ है. यह सब जानते है कि उनके आगे आने से समाज के भिन्न-भिन्न घटको का जो अपने पर्टिकुलर समाज के नेतृत्व कर्ता है वह अपने समाज कि संख्या गवा जायेंगे जिसके चलते उनके पेट पर या यह कहू कि राजनिती पर लात गिर जायेंगी. शायद भविष्य मे एक दलित जो कि राष्ट्रीय स्तर पर सभी वंचित- बहूजनो का नेतृत्व करता हो सामने आ जायेंगा.
    जिन्हे आपने रखा तथा मै सामाजिक तौर पर जानता हू वह आज महाराष्ट्र के इस नेतृत्व तथा आंबेडकर के नाम से दुरिया बनाकर अपनी स्वतंत्र राजनिती करने पर अमादे है. इसी के चलते वह कॉउडफंडिग जैसे संस्थानों से राजू यादव जैसे लोगो के लिऐ चंदा मांगने या इकठ्ठा करने मे कोई दिलचस्पी नही रखते. भला वह उनका हमराई क्यों ना हो, या विरोधी प्रत्याक्षी को हराने मे सहसाथी क्यो ना हो. मै सिधे कहू तो हर कोई संविधान तथा लोकतंत्र के साथ सामाजिक न्याय को रास्तो पर रख अपनी उन्नती कि सिढी बनाकर उपर चढने के कतार मे है. जो कि २०१९ के पहले का चित्र था वह एप्रेल मे नही है.
    एक राजशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते इतना तो जान चुका हू, कि राजनिती कि सिढी पर पाव रखने के लिएे तुम्हारा अमिर होना मुनासिफ नही तो वही तुम्हारी जाती तथा तुम्हारा औदा मायने रखता है. और इसी के चलते भारत कि इस राजनिती मे दलित आज भी पिछडे है जिनके नाम पर भारत के भविष्य कि राजनिती को रखा जाता है.

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