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Wednesday, 20 November, 2024
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राष्ट्रीय सुरक्षा की मजबूती के लिए डिफेंस PSU में कामगारों के मूल्यांकन की नयी व्यवस्था लाइए

डीपीएसयू के कुछ पदों को सरकार से बाहर के ऐसे लोगों के लिए उपलब्ध करवाया जाए, जिनमें इन पदों के अनुरूप कुछ बुनियादी योग्यताएं हों.

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हाल में, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की तरह प्रतिरक्षा सेक्टर के जिन सार्वजनिक उपक्रमों का कॉर्पोरेटीकरण किया गया है उनकी परीक्षा उनके साथ किए जाने वाले सौदों से हो जाएगी, जिनमें जेट इंजिन जीई एफ414 का उत्पादन भी शामिल है. उत्पादकता और गुणवत्ता के भरोसे के मामले में एचएएल के रिकॉर्ड को उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता. इसका अंदाजा एक विदेशी विमान निर्माण कंपनी के प्रमुख और एचएएल के अध्यक्ष के बीच हुई उस बातचीत से शायद लग सकता है, जिसके बारे में एक दोस्त ने मुझे एक बार बताया था.

उस विदेशी के सामने पहले तो बेंगलुरु में एचएएल के मुख्यालय में एक प्रभावशाली ‘प्रेजेंटेशन’ रखा गया, इसके बाद पूरे भारत में उस सार्वजनिक उपक्रम के बुनियादी ढांचे वाले स्थलों का दौरा कराया गया. बेंगलुरु लौटने के बाद एचएएल के अध्यक्ष ने उससे पूछा, “सब कुछ आपको कैसा लगा?” विदेशी कंपनी के प्रमुख ने जवाब दिया, “आपका बुनियादी ढांचा बहुत प्रभावशाली है, इसकी तुलना में हमारा तो मामूली वर्कशॉप जैसा है. लेकिन आप विमान क्यों नहीं बनाते?”

इस सवाल का गंभीरता से जवाब देने की कोशिश की जाए तो तमाम संबंधित पक्षों के बीच तूतू-मैं-मैं शुरू हो जाएगी, जिनमें भारत सरकार, उसका रक्षा मंत्रालय, डीआरडीओ और एचएएल के आला अधिकारी शामिल होंगे. देसी विमान बनाने में नाकामी की लंबी कहानी में नीति निर्धारण, वित्तीय व्यवस्था से लेकर मानव पूंजी के इस्तेमाल में विफलता तक तमाम चीजों को प्रमुख जगह मिल जाएगी.

मानव पूंजी का मामला

‘दप्रिंट’ में पिछले सप्ताह के अपने कॉलम में मैंने डीआरडीओ और उसकी मानव पूंजी संबंधी समस्या पर विचार व्यक्त किया था. इस सप्ताह एक बड़े सार्वजनिक उपक्रम के बारे में विचार व्यक्त कर रहा हूं. यह मान कर चला जा रहा है कि प्रतिरक्षा के सार्वजनिक उपक्रमों (डीपीएसयू) में मानव पूंजी को सुधारे बिना अपेक्षित उत्पादकता और गुणवत्ता का भरोसा (जो कि सेना को प्रभावी बनाने के लिए बहुत जरूरी है) हासिल नहीं किया जा सकता.

सरकारी महकमे में मानव पूंजी की समस्या की जड़ में है मानवीय प्रवृत्ति. आजीवन नौकरी के आश्वासन से प्राप्त दीर्घकालिक सुरक्षा स्वार्थ-साधन के उपक्रम में तब्दील हो जाती है और यह संगठन की जरूरतों के लिए नुकसानदेह होता है. बेशक कुछ लोग इस वर्ग में नहीं आते लेकिन दुर्भाग्य से बहुमत इसी में शामिल है और यही चीज महत्वपूर्ण है.

डीपीएसयू के कामकाज का राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है, इसलिए सरकार को ऐसे सुधार करने की जरूरत है जिससे स्थायी नौकरी की गारंटी कुछ कमजोर पड़े और नौकरी का दारोमदार व्यक्तिगत कामकाज से जुड़ा हो. इसका अगला कदम यह हो कि डीपीएसयू के कुछ पदों को सरकार से बाहर के ऐसे लोगों के लिए उपलब्ध किया जाए जिनमें बुनियादी योग्यताएं हों. यह सुझाव किसी भी सरकार के लिए राजनीतिक रूप से अव्यावहारिक लग सकता है, खासकर मजदूर संघों की मांगों और जल्दी-जल्दी होने वाले चुनावों के मद्देनजर. जो भी हो, राजनीतिक नेतृत्व को इस विचार को आगे बढ़ाने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए. अगर इस बात को कबूल कर लिया जाए कि मानव पूंजी की समस्या को फौरन दूर करना जरूरी है, तब यह मूल विचार मजबूत नज़र आएगा.

मानव पूंजी की समस्या केवल डीपीएसयू तक ही सीमित नहीं है, यह रोग पूरी सरकारी मशीनरी में व्याप्त है. लेकिन मामला चूंकि राष्ट्रीय सुरक्षा का है, इसलिए इससे रक्षा मंत्रालय और इसके तमाम विभाग जुड़े हैं. ऊपर के पदों से शुरुआत करना जरूरी है, जहां मजदूर संघ की ओर से प्रतिरोध नहीं है. बात केवल डीपीएसयू में ही सुधार करने की नहीं है, इसके साथ-साथ रक्षा मंत्रालय के सिविल सर्विस में सुधार भी जरूरी है. लेकिन यह कैसे होगा?


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नयी व्यवस्था की जरूरत

सरकार के पास पूरे अधिकार हैं कि वह उन पदों की पहचान कर सके जिन्हें केवल सिविल सर्विस के काडर के लिए सीमित न करके सबके लिए खोला जा सकता है. इन पदों में संघ की पूरी सर्विस के पद ही नहीं बल्कि डीपीएसयू, डीआरडीओ आदि के पद भी शामिल हैं. चयन प्रक्रिया के लिए यूपीएससी, पब्लिक सेक्टर एम्प्लॉयमेंट बोर्ड, या कॉरपोरेटीकृत सात डीपीएसयू के प्रबंधन बोर्ड के अधीन के किसी विशेष आयोग की क्षमता में वृद्धि की जरूरत है या नहीं, यह तफसील की बात है जिसे संभालना मुश्किल नहीं होगा.

किसी पद के लिए जब सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति का चुनाव कर लिया जाए तो उसे कम-से-कम तीन साल का कार्यकाल दिया जाए. सरकार से बाहर के व्यक्तियों का कार्यकाल करारनामे की व्यवस्था से तय हो. चिन्हित पदों के लिए सीमित ऐसे चयन प्रक्रिया अफसर ग्रेड के लिए ही सीमित की जा सकती है.

अफसर ग्रेड से नीचे के पदों के लिए अलग व्यवस्था तय की जा सकती है. नयी व्यवस्था को सेनाओं के लिए लाई गई ‘अग्निपथ’ व्यवस्था पर आधारित किया जा सकता है. ‘अग्निपथ’ व्यवस्था का वैचारिक आधार इस धारणा पर टिका है कि नौकरी की सुरक्षा व्यक्ति के कामकाज पर आधारित होगी. डीपीएसयू के, जिनके तहत 41 कारखाने हैं, मामले में प्रारंभिक भर्ती चार साल के लिए की जा सकती है और 25 से 40 फीसदी को ही स्थायी नौकरी दी जा सकती है. उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कारखानों में मशीनों का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए. इससे कामगारों की संख्या घटाने में भी मदद मिल सकती है.

न्यूनतम अपेक्षाओं को भी न पूरा करने वाले कामगारों की छुट्टी करने की कानूनी संभावनाओं का भी पता लगाना जरूरी है. फिलहाल, कानूनी ढांचा सरकारी नौकरी से निकालने की आसानी से इजाजत नहीं देता. जाहिर है कि ऐसे उपायों की सख्त जरूरत है. श्रम क़ानूनों के तहत व्यक्तियों के अधिकारों के रक्षा के जो प्रावधान हैं उन्हें उन लोगों को बचाने के लिए ढाल के रूप में न इस्तेमाल किया जाए, जो अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभाते या जो अक्षम पाए जाते हैं. मामला बेशक जटिल है लेकिन वक़्त आ गया है कि सरकार इस मसले की विस्तृत समीक्षा करे.

राष्ट्रीय सुरक्षा डीपीएसयू पर बुरी तरह से निर्भर है, जो इसकी मानव पूंजी के महत्व को रेखांकित करता है. फिलहाल इसके संगठित कामगारों की उत्पादकता का स्टार नीचा है जिसे ऊपर उठाने की जरूरत है. उत्पादकता बढ़ाने के लिए इन भूमिकाओं को ऐसी सरकारी नौकरियों के रूप में देखने का नजरिया छोड़ना जिसके अनुसार उन्हें हाथ तक नहीं लगाया जा सकता.

जब नौकरी को लेकर कोई चिंता न हो लेकिन इससे भारत में बदलाव बुरी तरह बाधित होता है, जो हथियारों के सबसे बड़े खरीदार से ऐसे देश में तब्दील होना चाहता है जो अपनी क्षमताओं में वृद्धि कर सकता है. इस बदलाव के लिए मौजूदा मानसिकता में बदलाव की जरूरत है.

सरकारी नौकरियों के मौजूदा नियमों को बदलना बेहद जरूरी हो गया है, ताकि सभी स्तरों पर व्यक्तियों का नियमित मूल्यांकन होता रहे और पदों को बाहर वालों के लिए खुला रखा जाए जो इनकी भूमिकाओं के लिए बेहतर पात्र हों. भारतीय सेनाओं के लिए ‘अग्निपथ’ जैसी अवधारणाओं को कुछ संशोधन के साथ रक्षा उद्योग के सरकारी महकमों में लागू किया जा सकता है. यह सेनाओं को अत्याधुनिक सैन्य साजोसामान उपलब्ध कराने के साथ ही आत्मनिर्भरता हासिल करने के भारत के प्रयासों को निश्चित ही मजबूती प्रदान करेगा.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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