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Wednesday, 20 November, 2024
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क्या योगी की तुलना में अखिलेश के समय UP की इकोनॉमी बेहतर थी? राज्य के $1-ट्रिलियन के सपने का डेटा टेस्ट

यूपी सरकार का लक्ष्य अगले पांच साल में राज्य की अर्थव्यवस्था एक ट्रिलियन डॉलर बनाने की है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक कठिन काम हो सकता है, क्योंकि इसके लिए यूपी को कम से कम 32 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से विकास करना होगा.

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नई दिल्ली: भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश का सपना है, अगले पांच वर्षों में एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना. नवंबर से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते रहे हैं कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक खाका तैयार किया जा रहा है. विचार यह है कि यूपी, जो भारत की जीडीपी में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान देता है, को देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की पीएम नरेंद्र मोदी के सपने में अपना बड़ा योगदान देना. 

मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) – अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के उत्पादन का योग – 2021-22 के अंत में लगभग 255 बिलियन डॉलर था, जो लक्ष्य का एक चौथाई है.

केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के आंकड़ों के अनुसार, वास्तविक रूप में (2011-12 की कीमतों पर, एक उपाय जो मुद्रास्फीति को ध्यान में रखता है), 31 मार्च 2022 तक यह 11.8 ट्रिलियन रुपये (लगभग $155 बिलियन) था. 

दिप्रिंट से बात करते हुए, विशेषज्ञों ने कहा कि 1 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यूपी को कम से कम 32 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से विकास करना होगा. यह एक मुश्किल आंकड़ा है जो शायद प्राप्त करने का सपना भी नहीं देखा जा सकता. 

योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल (2017 से 2022) में यूपी की जीएसडीपी वृद्धि दर औसतन 3.2 प्रतिशत सालाना रही जो 2016-17 में 10.12 ट्रिलियन रुपये से 11.8 ट्रिलियन रुपये तक पहुंच गई (वास्तविक रूप से, 2011-12 की कीमतें).

इसकी तुलना में, आदित्यनाथ के पूर्ववर्ती, समाजवादी पार्टी (एसपी) के अखिलेश यादव (2012 से 2017 तक सीएम) की सरकार के समय जीएसडीपी विकास दर 6.9 प्रतिशत प्रति वर्ष थी.

जब वह सत्ता में आए, तो यूपी की जीएसडीपी 7.24 ट्रिलियन रुपये थी.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि किसी की प्रशासनिक क्षमता पर निर्णय लेने से पहले आंकड़ों को संदर्भ के हिसाब से देखा जाना चाहिए. पहला यह कि जब आदित्यनाथ ने सत्ता संभाली तब से लेकर अबतक देश नोटबंदी के प्रभाव से जूझ रहा था. दूसरा अखिलेश के कार्यकाल के आंकड़े 2014 के लोकसभा चुनावों के झटके के बाद उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों के कारण है.

दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए यूपी सरकार के प्रमुख सचिव (योजना और कार्यक्रम कार्यान्वयन) और ‘वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी’ परियोजना के नोडल अधिकारी आलोक कुमार से इसको लेकर बातचीत की.

कुमार ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2021-22 और 2022-23 के लिए विकास दर का आंकड़ा बढ़ेगा क्योंकि भारत सरकार ने “समायोजन” के बाद अपने आंकड़ों को संशोधित किया है.

विकास के रुझान

योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में राज्य की जीडीपी में औसतन 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

2016-17 में, उत्तर प्रदेश में 11 प्रतिशत की जीएसडीपी वृद्धि दर दर्ज की गई, जो 2017-18 तक गिरकर 4.4 प्रतिशत हो गई. MoSPI डेटा के मुताबिक 2018-19 में इसकी वार्षिक GSDP वृद्धि गिरकर 3.9 प्रतिशत हो गई. और कोरोना महामारी से पहले 2019-20 में यह 3.9 प्रतिशत से कुछ अधिक थी.

2020-21 में जब कोरोना महामारी का प्रभाव दिखना शुरू हुआ, तो उस वक्त उत्तर प्रदेश की जीएसडीपी 5.5 प्रतिशत कम हो गई. इसी अवधि में भारत की जीडीपी में 5.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी.

Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

2021-22 में, उत्तर प्रदेश की जीएसडीपी में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसका श्रेय निम्न-आधार प्रभाव को दिया जा सकता है.

राज्य की जीएसडीपी में धीमी वृद्धि को कम से कम आंशिक रूप से राज्य के विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो 2021-22 में राज्य के जीएसडीपी का 12.2 प्रतिशत था. यह 2016-17 में 15 प्रतिशत से भी कम था.

अखिलेश यादव की सरकार (2012-2017) में औद्योगिक क्षेत्र- जिसमें विनिर्माण एक उप-क्षेत्र है- हर साल लगभग 10 प्रतिशत (सालाना चक्रवृद्धि) की दर से बढ़ा.

पहले तीन वर्षों में, औद्योगिक क्षेत्र में हर साल औसतन 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2015-16 में ग्रोथ 15 फीसदी और 2016-17 में 28 फीसदी रही.

यूपी अर्थशास्त्र और सांख्यिकी विभाग में उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, विनिर्माण उप-क्षेत्र में विकास दर 2015-16 में 26 प्रतिशत और 2016-17 में 47 प्रतिशत थी.

इस बीच, योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के दौरान औद्योगिक क्षेत्र वास्तविक रूप से काफी सिकुड़ गया.

2016-17 में, उत्तर प्रदेश का औद्योगिक क्षेत्र 28 प्रतिशत की दर से बढ़ा, लेकिन 2017-18 में यह 4.7 प्रतिशत कम हो गया. कम आधार के बावजूद औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि 2018-2019 में 1 प्रतिशत और 2019-2020 में 3.5 प्रतिशत रही. महामारी के दौरान, इसमें 6.2 प्रतिशत की गिरावट आई और फिर 2021-22 में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के रुझान सामने आते हैं. कृषि उत्पादन में औसत वार्षिक वृद्धि अखिलेश यादव के तहत 9.1 प्रतिशत और योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल के दौरान 8.6 प्रतिशत थी.

Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

अखिलेश के कार्यकाल में विनिर्माण में औसतन 14.6 प्रतिशत और योगी के पहले कार्यकाल में औसतन 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यादव के नेतृत्व में सेवा क्षेत्र में 7.3 प्रतिशत और आदित्यनाथ सरकार में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई. अखिलेश यादव के शासन में निर्माण में 4 प्रतिशत और योगी के शासन में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने कहा कि इन आंकड़ों से किसी रुझान पर नहीं पहुंचा जा सकता क्योंकि 2015-16 और 2016-17 में विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि के आंकड़े केंद्र सरकार के आंकड़ों में “पुराने समायोजन का परिणाम” थे.

उन्होंने कहा, “विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर की उच्च वृद्धि केवल उन वर्षों से संबंधित नहीं है, बल्कि पुरानी गणनाओं के समायोजन का भी परिणाम है. कोई यह समझ सकता है कि एक साल में विनिर्माण क्षेत्र में 47 प्रतिशत की वृद्धि दर सच होने के लिए बहुत अच्छी है और इन आंकड़ों को एक प्रवृत्ति दिखाने के रूप में नहीं देखा जा सकता है.”

कुमार द्वारा उल्लिखित “समायोजन” का उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपनी वेबसाइट पर डाले गए डेटा में कोई उल्लेख नहीं है.

जब उनसे 2017-18 और 2018-19 के बीच विकास दर में कमी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि कोई इसे गिरावट नहीं कह सकता. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा “अधिक समायोजन” के बाद अपने आंकड़ों में संशोधन से 2021-22 और 2022-23 के लिए भी विकास दर के आंकड़े में तेजी आ सकती है.

यूपी के विकास की राह क्या बताती है?

विशेषज्ञ उत्तर प्रदेश के विकास रुझान के पीछे कई कारण बताते हैं.

वे कहते हैं पहला कारण यह है कि उत्तर प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा औद्योगिक गतिविधि का केंद्र है. दिप्रिंट द्वारा प्रकाशित यूपी के जीएसडीपी पर एक श्रृंखला में, यह पाया गया कि 2020 तक उत्तर प्रदेश का लगभग 68 प्रतिशत विनिर्माण उत्पादन इसके पश्चिमी भागों के कुछ जिलों से आया, जो भारत की राजधानी दिल्ली का करीबी इलाका हैं.

सोनीपत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर विकास वैभव कहते हैं, “मेरी समझ से नोएडा राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. यह राज्य की विशाल अर्थव्यवस्था में लगभग 10 प्रतिशत का योगदान देता है. यदि विकास धीमा हो रहा है, तो नोएडा (जीबी नगर) पर ध्यान दिया जाना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “नोएडा में भी, विनिर्माण क्षेत्र और रियल एस्टेट क्षेत्र की वृद्धि पर ध्यान देने की जरूरत है. मुझे नहीं लगता कि यूपी-डीईएस (अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय) द्वारा 2019-20 के बाद जिला घरेलू उत्पाद डेटा जारी किया गया है.”

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के श्रम अध्ययन केंद्र में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि यूपी के जीएसडीपी आंकड़ों के पीछे कुछ राजनीतिक-आर्थिक कारक काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, तो अक्सर अफवाहों में कहा जाता था कि राज्य में 4-5 सीएम है. एक खुद अखिलेश, एक उनके पिता और उनके कुछ चाचा. जो राज्य के प्रबंधन के प्रति अपने दृष्टिकोण में रूढ़िवादी थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में हारने के बाद [सपा ने 5 सीटें जीतीं], अखिलेश को एहसास हुआ कि सीएम के रूप में फिर से चुने जाने के लिए, उन्हें आर्थिक उत्पादन के मामले में पूर्ण नियंत्रण लेने की जरूरत है और इससे हुए नुकसान की पहले दो तीन साल में भरपाई करनी होगी.”

मेहरोत्रा आगे कहते हैं, “एक इंजीनियर और एमबीए की पढ़ाई कर चुके यादव ने व्यवसाय को गंभीरता से लिया, इसलिए उनके कार्यकाल के अंतिम दो वर्षों में कई राजमार्ग, लखनऊ मेट्रो और अन्य बड़ी विकासात्मक परियोजनाएं पूरी हुईं. यहीं कारण है उन सालों में जीडीपी संख्या में वृद्धि देखी जा सकती है और यह समझ आ रहे हैं.”

मेहरोत्रा ने कहा, 2016 की नोटबंदी ने उत्तर प्रदेश के विकास को भी प्रभावित किया होगा. 

उन्होंने कहा, “उत्तर प्रदेश एक श्रम-अधिशेष राज्य है. नोटबंदी के बाद राज्य में बहुत सारे छोटे और सूक्ष्म उद्यम नकदी की कमी से जूझ रहे थे. ये उद्यम बहुत कम कार्यशील पूंजी पर काम करते हैं और इसमें ज्यादातर नकदी पर काम करते हैं. इसलिए अगले वित्तीय वर्ष तक इन उद्यमों की अधिक उत्पादन करने की उनकी क्षमता कम हो गई है.”

उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा राज्य अपने बड़े ग्लोबल इनवेस्टर समिट में में बड़ी हस्तियों को आमंत्रित करने में अधिक रुचि रखता है. लेकिन वे बड़े पैमाने पर उद्यम तभी स्थापित करेंगे जब राज्य माफियाओं से पूरी तरह मुक्त होने का दावा करेगा जिससे अभी की सरकार लड़ रही है.”

राज्य की $1 ट्रिलियन की महत्वाकांक्षा के बारे में बात करते हुए, मेहरोत्रा ने सुझाव दिया कि यह एक कठिन और बड़ा लक्ष्य है.

उन्होंने कहा, “अर्थव्यवस्था के आकार को चौगुना करने की बात भूल जाइए, भले ही इस समय में इसे अपने सकल घरेलू उत्पाद का आकार दोगुना करना पड़े, लेकिन वास्तविक रूप से इसे 14 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करनी होगी, एक ऐसा लक्ष्य जो राज्य ने कभी हासिल नहीं किया है.”

वैभव इस बात से सहमत थे कि यह लक्ष्य कुछ ज्यादा ही आशावादी है.

उन्होंने कहा, “मेरी समझ से सरकार (और उसके अधिकारियों) के अच्छे इरादे के बावजूद, यूपी की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है. यह मानक आर्थिक समझ के अनुरूप है कि सरकार आर्थिक विकास में प्रमुख प्रस्तावक होने के बजाय केवल एक सुविधाप्रदाता/सक्षमकर्ता के रूप में कार्य कर सकती है.”

उन्होंने कहा कि सिर्फ अच्छे इरादे ही लक्ष्य पाने के लिए काफी नहीं हो सकते.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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