मुंबई: बलात्कार के आरोपी 23-वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ ने मंगलवार को भारत सरकार से अनुरोध किया कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत “किशोर लड़कों के साथ होने वाले अन्याय” से बचने के लिए सहमति की उम्र 18 से घटाकर 16 करने पर विचार करे.
न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की एकल पीठ ने कहा कि धारा-375 में संशोधन कर अभियोक्ता की उम्र 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष करने से समाज का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ गया है.
आदेश में कहा गया है, “आजकल सोशल मीडिया जागरूकता और आसानी से सुलभ इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण, 14 साल की उम्र के करीब हर पुरुष या महिला कम उम्र में ही यौवन प्राप्त कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, इससे पुरुष और महिला बच्चे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए और परिणामस्वरूप सहमति से शारीरिक संबंध बनने लग गए.
आदेश में अग्रवाल के हवाले से कहा गया, “इन मामलों में पुरुष व्यक्ति बिल्कुल भी अपराधी नहीं हैं. यह केवल उम्र की बात है जब वे महिलाओं के संपर्क में आते हैं और शारीरिक संबंध बनाते हैं. केवल इसी कारण से जब आईपीसी लागू हुआ तो कानून निर्माताओं ने महिला की उम्र 16 वर्ष रखी, क्योंकि वे उपरोक्त तथ्यों से अच्छी तरह वाकिफ थे.”
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा, “आमतौर पर किशोर उम्र के लड़के-लड़कियां दोस्ती करते हैं और उसके बाद आकर्षण के चलते शारीरिक संबंध बनाते हैं, लेकिन, इस जूनून के कारण समाज में लड़के के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता है. आज अधिकांश आपराधिक मामले जिनमें अभियोजन पक्ष की उम्र 18 वर्ष से कम है, उपरोक्त विसंगति के कारण किशोर लड़कों के साथ अन्याय हो रहा है. इस प्रकार मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह अभियोजन पक्ष की उम्र को संशोधन से पहले की तरह 18 से घटाकर 16 वर्ष करने के मामले पर विचार करे ताकि अन्याय का निवारण किया जा सके.”
न्यायमूर्ति अग्रवाल राहुल चंदेल जाटव के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
जाटव पर 12 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार करने के लिए धारा 376 (2)(एफ)(एन) के तहत मामला दर्ज किया गया था; भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (3) और 315 (बच्चे को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के बाद उसे मारने के इरादे से किया गया कार्य). उस पर 17 जुलाई, 2020 को पोक्सो अधिनियम और आईटी अधिनियम की धारा 5 (L) (O)/6 के तहत भी मामला दर्ज किया गया था. इस मामले की सुनवाई 13वें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश और विशेष न्यायाधीश पोक्सो अधिनियम, ग्वालियर के समक्ष लंबित थी.
राहुल के वकील राजमणि बंसल के मुताबिक, राहुल के खिलाफ एफआईआर छह महीने की देरी से दर्ज की गई थी और यह एक मनगढ़ंत कहानी थी.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बंसल ने कहा, “जब वे 18 साल की थी और लगभग 17.5 साल की थी, तब वह राहुल के साथ रिश्ते में आई थीं, लेकिन यह सहमति से बना रिश्ता था. एफआईआर में लड़की ने न केवल राहुल का नाम लिया, बल्कि मुकेश चोकोटिया नाम के एक अन्य व्यक्ति का भी नाम लिया, जिसे वे 2016 से जानती थीं और वे उसके साथ रिश्ते में थी.
बंसल ने बताया कि अदालत के फैसले के बाद राहुल को शुक्रवार को रिहा कर दिया जाएगा.
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‘आपराधिक मामला शामिल नहीं’
घटना के करीब छह महीने बाद लड़की ने राहुल के खिलाफ ग्वालियर के थाटीपुर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी. लड़की ने आरोप लगाया कि 18 जनवरी, 2020 को जब वे यादव भवन में कोचिंग क्लास में पहुंची तो राहुल ने उसे जूस में नशीला पदार्थ मिलाकर पिलाकर उसके साथ बलात्कार किया.
उसने आरोप लगाया कि राहुल, जो उसका शिक्षक था, ने उसका यौन शोषण किया और उसका वीडियो भी बनाया और इसे “वायरल करने” की धमकी दी. लड़की ने आरोप लगाया कि राहुल ने उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए और अप्रैल 2023 में जब उसने बताया कि वे गर्भवती है तो राहुल ने उसे एक गोली भी दी.
एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस ने राहुल को गिरफ्तार कर लिया था और वे पिछले तीन साल से न्यायिक हिरासत में है. उसी एफआईआर में लड़की ने कहा कि वे 2016 से एक अन्य व्यक्ति, मुकेश चोकोटिया, जो कि उसका “दूर का रिश्तेदार” है, के साथ रिश्ते में थी. लड़की ने आरोप लगाया कि शादी का झांसा देकर मुकेश ने भी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. 16 जुलाई को दोपहर 12 बजे मुकेश उसके मोहल्ले में आया, उसका मोबाइल छीन लिया और डंडे से हमला कर दिया.
अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, घटना के समय लड़की नाबालिग थी. यह अदालत उस आयु वर्ग के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए इसे तर्कसंगत मानेगी कि ऐसा व्यक्ति अपनी भलाई के संबंध में सचेत फैसले लेने में सक्षम है, इसके अलावा अभियोक्ता की शिकायत के अनुसार, पहले वे याचिकाकर्ता के साथ शारीरिक रूप से जुड़ी हुई थीं इसके बाद, मुकेश चोकोटिया से संभोग की वास्तविक क्रिया के बारे में पूछा गया. प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कोई आपराधिक मामला शामिल नहीं था.”
अदालत ने यह भी कहा कि “अजीब तथ्यों और परिस्थितियों में ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले में कार्यवाही से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा” और आगे एफआईआर और परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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