नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं कि भारत के मंदिरों के पास 2 ट्रिलियन डॉलर का सोना है? या फिर मंदिर और तीर्थ स्थल 35 करोड़ लोगों को रोज़गार देते हैं? ‘जानें अपने मंदिर’ पहल के लॉन्च के मौके पर मंगलवार को अखिल भारतीय संत समिति के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इस जानकारी को साझा किया.
विश्व स्वर्ण परिषद की 2015 की एक पुरानी रिपोर्ट का हवाला देते हुए अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारत के मंदिरों में 22,000 टन सोना है, जिसकी कीमत 1 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है.
उन्होंने कहा कि अब जब रिपोर्ट आने के बाद से सोने की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं, तो यह 2 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देगा और इस तरह 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करने में मदद कर सकता है.
सरस्वती ने यह भी कहा कि सरकार सरकारी नौकरियों के जरिए 3.5 करोड़ लोगों को रोज़गार देती है, जबकि मंदिर और तीर्थ स्थल 35 करोड़ लोगों को रोज़गार देते हैं.
समिति महासचिव ने कहा, “मेरे पास डेटा है कि एक निश्चित वर्ष के दौरान, 3.5 करोड़ पर्यटक गोवा गए, जबकि 10 करोड़ लोगों ने काशी विश्वनाथ मंदिर में माथा टेका. जब वे (तीर्थयात्री) काशी जाते हैं, तो वे कई स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं. वे बनारसी साड़ियां खरीदते हैं जिससे मुस्लिम बुनकरों को भी रोज़गार मिलता है. एक तरह से, एक मंदिर पूरे शहर की अर्थव्यवस्था चलाता है.”
जबकि इसका उद्देश्य भारत में स्थित सभी हिंदू मंदिरों के बारे में जानकारी प्रदान करना और दुनिया तक पहुंच बनाना है, “जानें अपने मंदिर” परियोजना हरियाणा के कुछ तीर्थस्थलों जैसे कलायत के कपिल मुनि मंदिर, होडल में चमेली वन हनुमान मंदिर और नूंह के पांडव वन मंदिर के दस्तावेजीकरण के साथ शुरू हो रही है.
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की पहल का एक ऐप और थीम गीत — जिसका नेतृत्व पूर्व पत्रकार और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के ओएसडी संजय मिश्रा ने किया है, इसे नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में लॉन्च किया गया.
कार्यक्रम में देब, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हरियाणा इकाई के प्रभारी का पद भी संभालते हैं, ने कहा कि लंबे समय से कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव में सनातन धर्म पर लगातार हमले हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, “मुगल आक्रमणकारियों ने हमारे मंदिर तोड़े, लेकिन हमारी संस्कृति और धर्म को नहीं तोड़ सके. जो लोग कम्युनिस्टों की तरह कहते थे कि धर्म अफीम है, वो अब खुद मंदिरों में जा रहे हैं.”
देब ने कहा, “इतिहास गवाह है कि हर राज्य में सनातन धर्म की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी गई – चाहे वह महाराणा प्रताप हों, रणजीत सिंह हों या शिवाजी महाराज हों. सनातन धर्म की रक्षा के लिए सिखों की पहचान के पांच चिह्न पहने गए थे.”
विहिप महासचिव मिलिंद परांडे ने हिंदू मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की परिषद की लंबे समय से चली आ रही मांग को भी दोहराया.
उन्होंने तर्क दिया, “हिंदू मंदिरों में सैकड़ों करोड़ का दान देते हैं. यह जानना हमारा अधिकार होना चाहिए कि यह पैसा हिंदुओं के कल्याण के लिए खर्च किया जा रहा है या किसी और चीज़ पर. अपने इतिहास को याद रखना अच्छी बात है, लेकिन अगर हम उससे नहीं सीखेंगे तो हमारा भूगोल बदल जाएगा.”
परांडे ने आगे कहा, “100 वर्षों की अवधि में 30,000 से अधिक मंदिर नष्ट कर दिए गए. हमें आत्मनिरीक्षण करने की ज़रूरत है कि ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई और एक ऐसे समाज के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए जहां एक भी मंदिर को नष्ट नहीं किया जा सके.”
अप्रैल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उनकी सरकार मंदिरों के कामकाज पर नियंत्रण के पक्ष में नहीं है. उन्होंने कहा कि मंदिर की ज़मीन की नीलामी कलेक्टरों द्वारा नहीं बल्कि पुजारियों द्वारा की जाएगी.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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