यूक्रेन सीमा से सटे रूस के रोस्तोव-ऑन-डॉन शहर से रेडियो कैब के जरिए हम वॉर जोन जाने की तरफ बढ़ चुके थे. जैसाकि हमें बताया गया था कि रोस्तोव से करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर डोनेत्स्क बॉर्डर था, जहां से डोनबास के इलाके में दाखिल हुआ जा सकता था. कुछ साल पहले तक डोनबास यूक्रेन का हिस्सा था. लेकिन डोनबास के अलगाववादी संगठनों और विद्रोहियों ने रूस के साथ मिलकर इस इलाके को लगभग आजाद करा लिया था. रूसी सीमा से सटे इलाकों में तो मिलिशिया और रूस की सेना का ही एकच्छत्र राज चलता था. यूक्रेन के समय से ही यहां बॉर्डर आउट पोस्ट यानी सीमा चौकी थी.
रूस की यह आधिकारिक बॉर्डर पोस्ट थी, जहां कभी रूस से यूक्रेन और यूक्रेन से रूस लोग आवाजाही कर सकते थे. यह बॉर्डर आउट पोस्ट ठीक भारत-पाकिस्तान के बीच अटारी-वाघा बॉर्डर जैसी थी या फिर जैसा मैंने भारत-बांग्लादेश सीमा पर देखी थी, जहां दर्जनों की संख्या में लोग अपने पासपोर्ट और दूसरे जरूरी दस्तावेजों के साथ एक देश से दूसरे देश जा सकते हैं. सीमा सुरक्षा बलों के साथ-साथ यहां कस्टम और इमीग्रेशन की सुविधा भी होती है, ताकि गैर-कानूनी आवाजाही और बॉर्डर क्राइम को भी रोका जा सके. लेकिन डोनबास प्रांत के दो मुख्य इलाके, डोनेत्स्क और लुगांस्क (लुहान्स्क) अब लगभग आजाद हो चुके थे और यहां रूस समर्थित मिलिशिया सरकार स्थापित हो चुकी थी. इन्हीं दोनों प्रांत के नाम से डोनबास के दो बड़े शहर भी हैं, यानी डोनेत्स्क और लुहान्स्क. मारियुपोल शहर भी अजोव सागर से सटा डोनबास का ही बड़ा पोर्ट सिटी है.
जिस डोनेत्स्क बॉर्डर पर हम पहुंचे थे, वहां रूसी सैनिकों और अधिकारियों के साथ-साथ डोनेत्स्क मिलिशिया के अधिकारी भी मौजूद थे. यूक्रेन के सैनिकों और अधिकारियों का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं था. बावजूद इसके सीमावर्ती चौकी पर बेहद कड़ी निगरानी थी. जैसे ही हमारी कैब बॉर्डर पर आकर रुकी, पहले से ही वहां तैनात रशियन सिक्योरिटी फोर्स के अधिकारियों ने हमें तुरंत आगे जाने के लिए इशारा कर दिया. मैं हैरान था कि उन्हें हमारे आने की पहले से ही खबर लग चुकी थी. सीमा पार करने के लिए वहां पहले से लोग अपनी गाड़ियों में बॉर्डर क्रॉस करने का इंतजार कर रहे थे. एक-दो पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस भी सीमा पार करने के लिए कतार में खड़ी थीं.
डॉन नदी पर बसे रोस्तोव शहर में रूसी सेना के दक्षिणी थिएटर कमांड का हेडक्वार्टर है और वहीं से डोनबास क्षेत्र में चल रहे युद्ध को संचालित किया जा रहा था. मास्को से रोस्तोव पहुंचकर हम जिस होटल में रुके हुए थे, वह थिएटर कमांड मुख्यालय से महज कुछ कदमों की दूरी पर ही था (सुरक्षा कारणों से होटल का नाम उजागर नहीं किया है). होटल में ही रूस के मरीन कमांडो का बेस भी था. हमारे रूम की खिड़की से होटल के पोर्च पर अलग-अलग तरह के कई झंडे लगे हुए थे और उनमें से एक रशियन मरीन फोर्स का था. यही वजह थी कि हमारे होटल में रूसी सेना के अधिकारी अकसर यूनिफॉर्म में घूमते हुए दिख जाते थे. होटल में रुकने के दौरान मैं मजाक में अपने कैमरामैन से कहता था कि ‘ऐसा न हो कि यूक्रेन किसी दिन रूस के सैन्य अड्डे पर हवाई हमला कर दे और कोई मिसाइल इसी होटल पर आकर न गिर जाए. इसलिए हमेशा संभलकर रहना.’
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रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए अब करीब एक महीना बीत चुका था. युद्ध से जुड़ी अधिकतर जानकारी और रिपोर्ट्स यूक्रेन और पश्चिमी मीडिया के हवाले से ही ज्यादा आ रही थीं. भारत के भी अधिकतर मीडिया हाउस यूक्रेन की राजधानी कीव और उससे सटे इलाकों से ही रिपोर्टिंग कर रहे थे. अधिकतर पत्रकार युद्ध शुरू होने के बाद ही कीव पहुंचे थे. एकाध थे, जो युद्ध की आहट लगते ही यूक्रेन पहुंच गए थे और लगातार रिपोर्ताज कर रहे थे. ऐसे में युद्ध की एकतरफा रिपोर्टिंग हो रही थी. रूस का वर्जन कम आ रहा था. ऐसे में यह लगने लगा कि युद्ध यूक्रेन के फेवर में जा रहा है, जबकि भारत सहित पूरी दुनिया जानती थी कि रूस एक महाशक्ति है और उसकी सेना तथा हथियार तो पूरी दुनिया में अपने घातक हमलों के लिए जाने जाते थे. ऐसे में मेरे मीडिया संस्थान ने रूस के नजरिए से रिपोर्टिंग करने के लिए मुझे मास्को के जरिए युद्धभूमि में जाने का आदेश दिया.
(‘ऑपरेशन Z लाइव रूस-यूक्रेन युद्ध’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब हार्ड कवर में ₹350 की है.)
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