केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह 22 जून को बालाघाट में रानी दुर्गावती की वीरता और बलिदान गाथा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए 6 दिवसीय गौरव यात्रा का शुभारंभ करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 जून को शहडोल में गौरव यात्रा का समापन करेंगे.
रानी दुर्गावती की गौरव यात्रा 5 विभिन्न जिलों बालाघाट, छिन्दवाडा़, दमोह के सिंगरामपुर, उ.प्र. के कलिंजर फोर्ट, सीधी के धौहनी से 22 जून को प्रारंभ होकर 27 जून को शहडोल पहुंचेगी. छिन्दवाड़ा से गौरव यात्रा चौरई, सिवनी, क्योलारी, लखनादौन, मंडला, शहपुरा, उमरिया, पाली मानपुर होते हुए शहडोल पहुंचेगी. सिंगरामपुर (जबेरा दमोह) से गौरव यात्रा जबेरा, मझोली (पाटन), सिहोरा शहर, जबलपुर शहर, बरगी समाधि (पनागर विधानसभा) कुंडम (सीहोरा विधानसभा), शहपुरा (डिंडोरी जिला), बिरसिंगपुर पाली होते हुए शहडोल पहुंचेगी. कलिंजर फोर्ट (उ.प्र.) जन्म स्थान से कलिंजर, अजयगढ़, पवई, बडवारा, विजयरावगढ़, अमरपुर, मानपुर होते हुए शहडोल पहुंचेगी. सीधी की धौहनी से कुसमी, ब्यौहारी, जय सिंह नगर होते हुए शहडोल पहुंचेगी.
रानी दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य की शासक बनकर 15 सालों तक वीरतापूर्वक शासन किया था. उन्होंने अपने शासनकाल में लगभग 50 युद्धों में शत्रुओं को पराजित किया. रानी दुर्गावती ने 3 बार मुगलों को भी हराया उनका संपूर्ण जीवन कुशल शासक और वीर योद्धा के रूप में इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में वर्णित है. भारतीय इतिहास में वीर महिलाओं में गिनी जाने वाली रानी दुर्गावती एक वीर, निडर और बहुत साहसी योद्धा थीं. रानी दुर्गावती ने अपनी अंतिम सांस तक मुगलों के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी. उनके बलिदान की स्मृति में एक सप्ताह तक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उसी कड़ी में 6 दिवसीय गौरव यात्रा में उनके शौर्य और वीरता पर आधारित कार्यक्रम होंगे.
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कलिंजर बांदा में प्रसिद्ध चंदेल सम्राट कीरत राय के परिवार में हुआ था. इनका विवाह सन् 1542 में गोंडवाना शासक संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ था. रानी दुर्गावती अपने पति की मृत्यु के बाद गोंडवाना राज्य की उत्तराधिकारी बनी. दुर्गावती ने साहस और बहादुरी के साथ दुश्मनों को सामना करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी. उनकी स्मृति में जबलपुर और मंडला के बीच स्थित बरेला में उनकी समाधि पर स्मारक बनाया गया है. रानी दुर्गावती के सम्मान में प्रदेश सरकार द्वारा 1983 में जबलपुर के विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया. भारत सरकार ने 24 जून 1988 में उनके बलिदान दिवस पर उनके नाम पर डाक टिकिट जारी किया.
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