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Sunday, 24 November, 2024
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जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद भी महात्मा गांधी ने जनरल डायर को क्षमा क्यों किया

महात्मा गांधी ने अस्पृश्यता को ‘हिंदू धर्म का डायरवाद’ करार दिया था. उन्होंने गोरक्षा के नाम पर हत्या किए जाने को भी जनरल डायर के कृत्य के समरूप बताया था.

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जलियांवाला बाग नरसंहार के मुख्य अपराधी ब्रिगेडियर जनरल डायर भारतीयों के लिए घृणा का पात्र था, लेकिन महात्मा गांधी ने ना सिर्फ उसे बारबार क्षमा किया, बल्कि उन्होंने लोगों को ‘डायरवाद’ के खिलाफ आगाह भी किया था.

उस काल में, महात्मा गांधी देश को एक अलग राह दिखाने का प्रयास कर रहे थे- वह थी अहिंसा और क्षमा की राह.

गांधी का कहना था कि ‘जनरल डायर के काम आना और निर्दोष लोगों को मारने में उसकी मदद करना मेरे लिए पाप समान होगा. पर, यदि वह किसी रोग का शिकार है तो उसे वापस जीवन देना मेरे लिए क्षमा और प्यार का अभ्यास होगा.’ (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी (सीडब्ल्यूएमजी), खंड 18, पृ. 195, ‘रिलिजियस ऑथिरिटी फॉर नॉनकोऑपरेशन’, यंग इंडिया, 25 अगस्त 1920)

गांधी ने यहां तक लिखा कि डायर ने ‘मात्र कुछ शरीरों को नष्ट किया, पर कइयों ने एक राष्ट्र की आत्मा को मारने का प्रयास किया.’ उन्होंने कहा कि ‘जनरल डायर के लिए जो गुस्सा जताया जा रहा है, मैं समझता हूं, काफी हद तक उसका लक्ष्य गलत है.’ (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 18, पृ. 46, ‘रिलिजियस ऑथिरिटी फॉर नॉनकोऑपरेशन’, यंग इंडिया, 14 जुलाई 1920)


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जब जीवन के आखिरी काल में डायर पक्षाघात का शिकार हुआ, एक सहयोगी ने गांधी को लिखे पत्र में उसके बुरे स्वास्थ्य का कारण जलियांवाला बाग नरसंहार को बताया.

भगवद्गीता में दृढ़ आस्था रखने वाले गांधी ने इसका तर्कसंगत जवाब दिया. ‘मैं नहीं समझता उसके पक्षाघात का अनिवार्यत: जलियांवाला बाग में उसके कृत्य से कोई संबंध है. क्या आपने इस तरह की मान्यताओं के दुष्परिणामों पर गौर किया हैआपको मेरी पेचिश, एपेंडिसाइटिस और इस वक्त हल्के पक्षाघात की जानकारी होगी. मुझे बहुत अफसोस होगा यदि कुछ अच्छे अंग्रेज़ ये सोचने लगें, ऐसा आकलन वे कर सकते हैं, कि अंग्रेज़ हुकूमत के उग्र विरोध के कारण मुझे ये रोग लगे हैं.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 18, पृ. 34, ‘ए लेटर’, 24 जुलाई 1927)

जलियांवाला बाग नरसंहार के करीब दो दशक बाद उन्होंने एक बार फिर डायर को माफ किया.

दिवंगत जनरल डायर से अधिक क्रूर और रक्तपिपासु कौन हो सकता था?’ गांधी ने सवाल किया, ‘फिर भी जलियांवाला बाग कांग्रेस जांच समिति ने, मेरी सलाह पर, उस पर मुकदमा चलाने की मांग करने से इनकार कर दिया. मेरे मन में उसके प्रति लेशमात्र भी दुर्भावना नहीं थी. मैं उससे व्यक्तिगत रूप से मिलना और उसके दिल को टटोलना भी चाहता था, पर ये मात्र तमन्ना ही रह गई.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 68, पृ. 83, ‘टॉक टू खुदाई खिदमतगार्स’, 1 नवंबर 1938)

क्षमा करो, भूलो मत

गांधी ने डायर को क्षमा कर दिया, पर ये स्पष्ट करते हुए कि ‘घृणा की अनुपस्थिति का मतलब दोषी का बचाव बिल्कुल नहीं है.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 30, पृ. 442, ‘टू एस. एल. आर. यंग इंडिया’, 13 मई 1926)


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हालांकि हम दूसरों के कुकर्मों को भूल जाने और क्षमा करने की बात करते हैं, पर कुछ बातों को भूलना पाप होगा.’ डायर और ओड्वायर (जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर) की चर्चा करते हुए गांधी ने कहा, ‘हम जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए डायर और ओड्वायर को माफ भले ही कर दें, हम इसे भूल नहीं सकते…’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 45, पृ. 132, ‘स्पीच टू कांग्रेस लीडर्स, इलाहाबाद’, 31 जनवरी 1921)

डायर ने जलियांवाला बाग के अपने कृत्य पर पश्चाताप भी नहीं किया था. पर एक बार, उसने अपने व्याख्यानों से मिलने वाली रकम को ‘अमृतसर की 1919 की घटना में मृत भारतीयों के परिजनों में’ वितरित करने पर विचार किया था. (मैनचेस्टर गार्डियन, 3 फरवरी 1921, ‘जनरल डायर्स लेक्चर फंड’)

गांधी की पत्रिका नवजीवन में इस बात का उल्लेख करते हुए लिखा गया कि डायर ने अपनी आय को जलियांवाला बाग के मृतकों के परिवारों के लिए रखने का साहस किया. (नवजीवन, फरवरी 1921, पृ. 188)

हालांकि डायर अपने इस विचार पर अमल नहीं कर पाया. मैनचेस्टर गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, ‘उसने (डायर ने) अपना इरादा बदल लिया और उस आय को भारत में तैनात ब्रितानी अधिकारियों की पत्नियों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने के लिए निर्मित कोष में डाल रहा है.’

गांधी और डायरवाद

उल्लेखनीय है कि गांधी ने निर्मम ताकत और हिंसक दमन के लिए ‘डायरवाद’ शब्द का इस्तेमाल कर, उस संदर्भ में जनरल डायर को सर्वाधिक उल्लिखित नाम बना दिया था.

उन्होंने अस्पृश्यता को ‘हिंदू धर्म का डायरवाद’ करार दिया था. उन्होंने गोरक्षा के नाम पर हत्या किए जाने को भी जनरल डायर के कृत्य के समरूप बताया था.

एक पत्र के जवाब में गांधी ने लिखा, ‘जनरल डायर निश्चय ही ये मान बैठा था कि यदि उसने जो किया वैसा नहीं किया होता तो अंग्रेज़ पुरुषों और महिलाओं की जान पर खतरा बन आता. हम, जो कि बेहतर जानते हैं, इसे क्रूरता और प्रतिशोध का कृत्य कहते हैं. पर जनरल डायर के खुद के दृष्टिकोण से, उसने सही किया. अनेक हिंदुओं को पक्का विश्वास है कि किसी गाय को मारने के इच्छुक व्यक्ति को मार डालना उचित है, और इसके लिए वे शास्त्रों को उद्धृत करेंगे और अनेकों दूसरे हिंदू उनके कृत्य को जायज़ करार देते नज़र आएंगे. लेकिन गाय की पवित्रता में आस्था नहीं रखने वाले लोगों को एक पशु के कत्ल की वजह से किसी इंसान की हत्या किया जाना अतार्किक लगेगा.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 33, पृ. 358, ‘लेटर टू देवेश्वर सिद्धांतालंकार, 22 मई 1927)

दांडी मार्च के दौरान गांधी को पता चला कि कुछ गांव वाले पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारियों को सामान या पानी नहीं देते हैं. गांधी ने कहा कि यदि डायर और ओड्वायर ‘जिनके कृत्य नृसंशता के रूप थे और जिन्हें मैंने ‘डायरवाद’ कहा था, यदि वे मुझे गोली मार देते हैं, पर मुझमें अब भी जान है और मुझे पता चलता है कि उनमें से एक को सांप ने काट खाया है, मैं ज़हर चूसने के लिए भागता हुआ जाऊंगा. मैंने अतीत में ऐसे काम किए भी हैं.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 43, पृ. 116, 21 मार्च 1930)

उन्होंने अमेरिकी पत्रकारइतिहासकार कैथरीन मेयो से कहा कि ‘मैं इस देश को डायरवाद से दूर देखना चाहता हूं. मतलब, मैं नहीं चाहता कि मेरे देश के पास जब शक्ति आए, तो यह दूसरों पर अपने रीतिरिवाज थोपने के लिए वहशतअंगेज़ी पर उतारू हो जाए.’ (सीडब्ल्यूएमजी, खंड 30, पृ. 120, 17 मार्च 1926)

(लेखक अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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