मुंबई: 16 महीने और 3.6 करोड़ रुपये के बजट के बाद, मुंबई के काला घोड़ा स्थित डेविड ससून लाइब्रेरी एंड रीडिंग हॉल ने अपने 150 साल से अधिक पुराने इतिहास का एक नया अध्याय शुरू किया है. यह इसके गौरवशाली अतीत को जीवंत करेगा. दो मंजिला विक्टोरियन नियो-गॉथिक-स्टाइल वाली लाइब्रेरी ने लंबे समय से सिविल सेवा उम्मीदवारों, छात्रों और शोधकर्ताओं को एक शांतिपूर्ण जगह प्रदान की है. लगभग 30,000 पुस्तकों, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के संग्रह के साथ, अब इसकी मरम्मत और जीर्णोद्धार करके इसे पुनर्जीवन दिया गया है.
इस काम के लिए कंज़र्वेशन आर्किटेक्ट आभा नारायण लांबा की अगुवाई वाली टीम के सामने तमाम चुनौतियां थीं. यह टीम जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन, आईसीआईसीआई फाउंडेशन, काला घोड़ा एसोसिएशन, इज़राइल के महावाणिज्य दूतावास, मुंबई और टाटा ट्रस्ट द्वारा समर्थित थी.
उन्होंने वहां लगे दीमकों को हटाया, टपकती हुई छत की मरम्मत की जिसने हजारों पुरानी किताबों को बर्बाद कर दिया था. इसके साथ ही ओरिजनल सागौन की लकड़ी से बनी मेज की मरम्मत की गई और इमारत के मेहराब और पत्थरों के डिजाइनों पर काम किया गया. और उनकी मेहनत और काम के प्रति प्यार आज इस इमारत के प्राचीन स्विच से लेकर झूमर तक सबमें दिखता है. अकेले रीडिंग रूम में ही पांच झूमर हैं. मिंटन टाइल से बेहतर ढंग से बनाए गए फर्श के एक बड़े हिस्से को भी फिर से रेनोवेट किया गया.
लंबे समय से लटका था रेनोवेशन का काम
डेविड ससून लाइब्रेरी का पूरी तरह से रेनोवेशन किए जाने का काम काफी लंबे समय से लटका पड़ा हुआ था.
पुस्तकालय के अध्यक्ष हेमंत भालेकर कहते हैं, “स्ट्रक्चर की बार-बार मरम्मत की जा रही थी. इसलिए हमने स्थायी रूप से इसको रेनोवेट करने का फैसला किया.”
इस विरासत भवन में कभी कन्नड़ सहित पांच भाषाओं की लगभग 70,000 पुस्तकें थीं. लेकिन मरम्मत, रिसाव और खराब रखरखाव के कारण लगभग 40,000 पुस्तकें, मानचित्र, पत्रिकाएं और अन्य अनमोल दस्तावेज पिछले कुछ सालों में नष्ट हो गए.
आज, पुस्तकालय का संग्रह अंग्रेजी, मराठी, हिंदी और गुजराती पुस्तकों से भरा पड़ा है. मैनेजमेंट को उम्मीद है कि अब पुस्तकालय में इसका रखरखाव अच्छे से हो सकेगा.
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इस प्रोजेक्ट पर पहले 2020 में काम किया जाना था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसमें देरी हुई. ग्रेड I यूनेस्को विरासत स्थल में शामिल डेविड ससून लाइब्रेरी ने आखिरकार 3 जून को विजिटर्स के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. हालांकि, रीडिंग रूम अभी भी खाली पड़ा है. कुछ हफ्तों में बिल्डिंग के बगीचे की तरफ वाले पार्ट में फाइनल काम हो जाने के बाद लाइब्रेरी को सदस्यों और विज़िटर्स के लिए खोल दिया जाएगा.
इतिहास को पिरोना
लांबा और उनकी टीम ने रेनोवेशन का काम डिटेक्टिव्स की तरह किया. एक-एक चीज़ पर काफी बारीकी से काम किया गया है. इसमें लाइब्रेरी के अतीत और समय के साथ होने वाले आर्किटक्चरल विकास को एक साथ पिरोया गया है. अचानक उन्हें एक पुरानी तस्वीर मिली जिसमें लाइब्रेरी को एक ढलान वाली छत के साथ दिखाया गया था, जिसे 1960 के दशक में फ्लैट या समतल कर दिया गया था. लेकिन अब इसे इसके मूल रूप में बनाया गया है.
लांबा कहती हैं, “बड़ी चुनौती यह थी कि 1960 के दशक में मूल छत को कंक्रीट स्लैब से बदल दिया गया था. यह कंक्रीट स्लैब खराब हो गया था और इसे संरचनात्मक रूप से बदलने की आवश्यकता थी.”
ग्राउंड फ्लोर पर एक पुरानी गैस पाइप का मिलना काफी रोमांचक था. इससे पता लगा कि प्रवेश मार्ग पर रोशनी की व्यवस्था गैस की सहायता से की गई थी. पाइप को फिर से ठीक कर दिया गया है और अब वह अपनी मूल स्थिति में है, हालांकि इमारत में प्रकाश के लिए अब गैस का प्रयोग नहीं किया जाता है.
लांबा कहती हैं, “वायरिंग, लाइटिंग और अन्य इंटीरियर का काम भी काफी चुनौतीपूर्ण था. इमारत के पुराने वाटर कलर चित्रों को देखकर काफी प्रेरणा मिली.”
लांबा के अनुसार, पुस्तकालय केवल 28 लाख रुपये खर्च कर सकता था, जो कि जरूरी धन की तुलना में काफी कम था. उन्होंने कहा, “तो मैंने संगीता जिंदल (जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन की अध्यक्ष) से संपर्क किया क्योंकि वह इस तरह की कई संरक्षण परियोजनाओं को सपोर्ट करती रही हैं.”
रीडिंग हॉल से एक गोलाकार सीढ़ी ऊपरी डेक की ओर जाती है, जिसके दोनों ओर बालकनियां हैं. हालांकि, यह खूबसूरत संरचना जनता के लिए नहीं खुली है. भालेकर कहते हैं कि बालकनी की रेलिंग बहुत ऊंची नहीं है और वे नहीं चाहते कि कोई यहां से गिर जाए.
ऊपरी डेक से, रेनोवेट की गई सीढ़ी टॉवर घड़ी की ओर जाती है, जो दिन में दो बार मैन्युअली समय बताती है..
बगदाद से बॉम्बे
1860 के दशक में फोर्ट जॉर्ज को ध्वस्त कर दिए जाने के बाद डेविड ससून पुस्तकालय भवन इस क्षेत्र में बनने वाले पहले भवनों में से एक था. भूमि को विकास कार्यों के लिए नीलाम किया गया था, और एक यहूदी बैंकर व व्यापारी डेविड ससून ने जमीन का एक टुकड़ा खरीद लिया. संयोग से, उनके बेटे ने अपना नाम अब्दुल्ला से बदलकर अल्बर्ट कर लिया, इसके बाद वह इंग्लैंड जाकर एक बैरोनेट बन गया और कुख्यात यूरोपीय बैंकिंग राजवंश रोशचाइल्ड परिवार में शादी कर ली.
1792 में एक अमीर व्यापारी परिवार में पैदा हुए ससून बगदाद में उत्पीड़न का सामना करने के बाद 1830 के दशक में बंबई भाग गए थे. 1853 में, ब्रिटिश साम्राज्य में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें ब्रिटिश नागरिकता प्रदान कर दी गई.
भालेकर के अनुसार, जमीन के उस टुकड़े पर, उन्होंने बॉम्बे मैकेनिक्स संस्थान की स्थापना की, जिसे 1,25,000 रुपये के बजट से बनाया गया था, जिसमें से आधे से अधिक ससून द्वारा दिया गया था. बाद में इसका नाम बदलकर ससून मैकेनिक्स इंस्टीट्यूट कर दिया गया और 1938 में फिर से इसका नाम बदलकर डेविड ससून लाइब्रेरी एंड रीडिंग रूम कर दिया गया.
अधिकांश विज़िटर्स रीडिंग रूम और इसकी बालकनी से परिचित हैं, जो व्यस्त काला घोड़ा चौक की तरफ खुलता है. इसकी फर्श से छत तक बुकशेल्फ़, मेहराब, लंबी टेबल, कुर्सियां, और बैंकरों के लैंप भव्य पुस्तकालयों की पुरानी यादें ताजा करते हैं.
यहां महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के उम्मीदवार, आस-पास के अदालतों के वकील और दक्षिण मुंबई के पुराने निवासी अक्सर आते हैं.
डेविड ससून लाइब्रेरी में वर्तमान में 2,000 से अधिक सदस्य हैं, और मैनेजमेंट को उम्मीद है कि इनकी संख्या अब बढ़ेगी. इसकी मेंबरशिप राशि वार्षिक और आजीवन क्रमश: 5,000 रुपये से 25,000 रुपये के बीच है. और रीडिंग रूम का उपयोग करने के लिए दिन का महज़ दस रुपये चुकाना पड़ेगा. यहां के रीडिंग रूम के धनुषाकार खिड़कियों से झिलमिलाती रोशनी देखकर लगता है कि जैसे समय रुक सा गया है.
लेकिन वास्तव में समय रुका नहीं है.
डेविड ससून लाइब्रेरी और रीडिंग रूम में अब वाईफाई है, और संरक्षक स्मार्टफोन, ई-बुक और टैबलेट का उपयोग कर सकते हैं.
भालेकर कहते हैं, ”हमें आगे भी देखना होगा.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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