देश इस समय लोकसभा चुनाव के दौर में है. ऐसे समय में राजनीतिक दल, मीडिया और चुनाव आयोग के साथ ही इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ईडी और इनकम टैक्स विभाग भी सक्रिय हो जाता है, क्योंकि उन पर ये जिम्मा होता है कि चुनाव के दौरान अवैध तरीके से कमाया गया पैसा इस्तेमाल न हो. इसके लिए ये दोनों विभाग नेताओं और उनको फंड करने वालों पर छापे मारते हैं और गाड़ियां आदि की जांच भी करते हैं.
अगले छह हफ्ते में ऐसा काफी कुछ होने वाला है. ऐसी खबरें अखबारों में लगातार छप रही हैं. भारत में जांच एजेंसियों के राजनीतिक रूप से कार्य करने के आरोप भी लगते रहे हैं. इस बार, शायद संयोग से, ज्यादा छापे कांग्रेस से जुड़े लोगों पर पड़ रहे हैं. कांग्रेस का आरोप है कि ये राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है. उनका आरोप है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबों लोगों पर छापे इसलिए मारे गए ताकि कांग्रेस का चुनाव प्रचार ठप पड़ जाए.
इसकी वजह से चुनाव आयोग को वित्त मंत्रालय को कहना पड़ा कि उसकी दोनों संस्थाओं, इनकम टैक्स और इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को पक्षपातरहित होकर यानी बिना भेदभाव के काम करना चाहिए. इस निर्देश का सीधा मतलब है कि ईडी या इनकम टैक्स चुनाव के दौरान जो करते हैं, उसका राजनीतिक मतलब हो सकता है.
विपक्ष की आशंकाएं निराधार भी नहीं है. इस मामले में मैं आपको फरवरी-मार्च 2017 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी के बैंक खाते पर पड़े छापे की याद दिलाना चाहूंगा.
पूरा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है
8 नवंबर, 2016 की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की और कहा कि 500 और 1,000 रुपए के पुराने करेंसी नोट अब नहीं चलेंगे. इस तरह देश की कुल मुद्रा का 86 पर्सेंट हिस्सा रातों रात बेकार हो गया. इन नोटों को बैंकों में जमा कराने का निर्देश रिजर्व बैंक ने जारी कर दिया, उसके बाद आम जनता से लेकर कारोबारी और राजनीतिक दल बैंकों में अपना रुपया जमा कराने में लग गए. यही बीएसपी ने भी किया.
26 दिसंबर, 2016 को ये सनसनीखेज सूचना समाचार एजेंसियों को लीक की गई कि इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट ने ये पाया है कि दिल्ली के करोल बाग के एक बैंक में हुए बीएसपी और मायावती के भाई आनंद ने क्रमश: 102 करोड़ और 1.43 करोड़ रुपए नोटबंदी के बाद जमा कराए हैं. ये खबर तमाम अखबारों में बहुत प्रमुखता से छापी गई. अंदाज कुछ ऐसा था कि बीएसपी का काला धन पकड़ा गया. ईडी ने इस मामले की जांच इनकम टैक्स विभाग को सौंप दी क्योंकि राजनीतिक दलों के चंदों से जुड़े मामलों की जांच इनकम टैक्स विभाग ही करता है.
27 नवंबर को मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि बैंक में जमा कराई गई रकम का हिसाब पार्टी के पास है और ये पैसा पार्टी के पास चंदों के जरिए आया है. उन्होंने आरोप लगाया कि जांच एजेंसियां बीजेपी के इशारों पर काम कर रही हैं और उनका इरादा बीएसपी को नुकसान पहुंचाना है. उन्होंने बीजेपी को चुनौती दी कि वो नोटबंदी से 10 महीने पहते तक अपने खातों में आई रकम का ब्यौरा दे. अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी को नोटबंदी के बारे में पहले से मालूम था.
बैंक खातों पर कार्रवाई के एक हफ्ते बाद, 4 जनवरी, 2017 को चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित कर दी और राज्य चुनावी मोड में चला गया. बीएसपी का मुख्य खाता चूंकि जांच एजेंसियों की निगरानी में था और उसके खिलाफ कार्रवाई चल रही थी, इसलिए चुनाव के दौरान बीएसपी उस रकम का इस्तेमाल नहीं कर पाई और इसे किसी तरह कम पैसे में ही ये चुनाव लड़ना पड़ा. बैंकों से रुपए निकालने की पाबंदी भी इस बीच लगी रही.
चुनाव नतीजे 11 मार्च, 2017 को घोषित हुए. इसके दो दिन बाद रिजर्व बैंक ने बचत खातों से रुपए निकालने की पाबंदी हटा ली. दरअसल बैंकों में पर्याप्त कैश न होने के कारण उस दौरान रिजर्व बैंक ने रुपए निकालने की सीमा तय कर रखी थी.
इस तरह देश के सबसे बड़े राज्य में चुनाव उस दौरान हुए जब नोटबंदी का असर चरम पर था. राजनीतिक दल और नेता अपना पैसा बैंक से निकाल नहीं पा रहे थे. बीएसपी को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही थी, क्योंकि उसका प्रमुख खाता फंसा हुआ था और उस पर ईडी और इनकम टैक्स विभाग की नजर भी थी.
चुनाव नतीजे आने के दो महीने बाद चुनाव आयोग ने दिल्ली के बैंक खाते में जमा रकम के लिए बीएसपी को क्लीन चिट दे दी. इस मामले में सारी जांच बंद कर दी गई. इस तरह वह पैसा बीएसपी के पास आ गया. लेकिन जिस समय उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब ईडी और इनकम टैक्स ने उसे बीएसपी को इस्तेमाल नहीं करने दिया.
यह भी दिलचस्प है कि नोटबंदी के बाद कई दलों ने अपने पैसे बैंकों में जमा कराए थे. जांच सिर्फ बीएसपी के पैसे की हुई. आश्चर्यजनक यह भी है कि देश की सबसे अमीर पार्टी बीजेपी ने नोटबंदी के बाद सिर्फ 4.75 करोड़ रुपए की नकदी ही बैंक में जमा कराई.
इसलिए अगर राजनीतिक दल इस बार ऐसी आशंका जता रहे हैं कि ईडी और और इनकम टैक्स की कार्रवाइयां राजनीति से प्रेरित हैं, तो ये पूरी तरह बेबुनियाद नहीं है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)