नयी दिल्ली, छह जून (भाषा) अमेरिका व जर्मनी जैसे ‘‘वैश्विक उत्तर’’ के औद्योगिक राष्ट्र 90 प्रतिशत तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं तथा 2050 तक जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए वे भारत जैसे कम उत्सर्जन करने वाले देशों को मुआवजे के रूप में कुल 170 हजार अरब अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। एक नए अध्ययन में यह जानकारी दी गई।
‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ नामक पत्रिका में सोमवार को प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि 2050 तक भारत के लिए प्रति व्यक्ति 1,446 अमेरिकी डॉलर वार्षिक और 2018 में उसके सकल घरेलू उत्पाद के 66 प्रतिशत के बराबर वार्षिक मुआवजा बनता है।
ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 168 देशों का विश्लेषण किया और वैश्विक कार्बन बजट के समानता-आधारित उचित अंश से परे अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के आधार पर जलवायु परिवर्तन के लिए ऐतिहासिक जिम्मेदारी निर्धारित की।
जलवायु विज्ञान कार्बन बजट को हरित गैसों की मात्रा के रूप में परिभाषित करता है जिसे ‘‘ग्लोबल वार्मिंग’’ के एक निश्चित स्तर (इस मामले में 1.5 डिग्री सेल्सियस) के लिए उत्सर्जित किया जा सकता है।
उन्होंने साक्ष्य-आधारित एक मुआवजा तंत्र का प्रस्ताव दिया, जो एक महत्वाकांक्षी परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन के कारण और उसे टालने, दोनों के लिए ऐतिहासिक जिम्मेदारी को ध्यान में रखता है, जहां सभी देश 2050 तक मौजूदा स्तर से ‘शून्य उत्सर्जन’ करेंगे। विज्ञान के अनुसार ऐसी स्थिति में ‘‘ग्लोबल वार्मिंग’’ 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो जाएगा।
‘‘ग्लोबल वार्मिंग’’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाले महत्वाकांक्षी परिदृश्यों के तहत भी, ‘‘वैश्विक उत्तर’’ कार्बन बजट के अपने सामूहिक हिस्से को तीन गुना बढ़ा देगा। इस प्रक्रिया में ‘‘वैश्विक दक्षिण’’ (विकासशील व कम विकसित देश) के उचित हिस्से का आधा हिस्सा विनियोजित करेगा। उन्होंने कहा, “यह अन्यायपूर्ण है।”
शोध में कहा गया है कि मुट्ठी भर कम उत्सर्जक देश, विशेष रूप से भारत, अधिक उत्सर्जक देशों की अधिकता को संतुलित करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए कुल विनियोजित उत्सर्जन के अधिकतर हिस्से का त्याग करेंगे।
अमेरिका, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन और जापान जैसे शीर्ष पांच अधिक उत्सर्जक देश 131 हजार अरब अमेरिकी डॉलर (कुल मुआवजे का दो-तिहाई से अधिक) के भुगतान के लिए जवाबदेह होंगे।
दूसरी ओर, कम उत्सर्जन करने वाले पांच प्रमुख देश – भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, नाइजीरिया और चीन – मुआवजे या क्षतिपूर्ति के रूप में 102 हजार अरब अमेरिकी डॉलर प्राप्त करने के हकदार हैं।
विभिन्न देशों ने 2015 में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों से बचने के लिए पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1850-1900) की तुलना में ‘‘ग्लोबल वार्मिंग’’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमति व्यक्त की थी।
भाषा प्रशांत अविनाश
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