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Wednesday, 18 December, 2024
होममत-विमतGDP के बढ़े आंकड़ों से खुश होने की जरूरत नहीं, अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार को काफी कुछ करना होगा

GDP के बढ़े आंकड़ों से खुश होने की जरूरत नहीं, अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार को काफी कुछ करना होगा

जीडीपी के इन शानदार आंकड़ों ने निराशावादी आर्थिक विशेषज्ञों की भविष्यवाणी की धज्जियां उड़ा दी. इनमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी थे जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि अगर यह 5 फीसदी की दर से भी बढ़ जाये तो भाग्यशाली होगा.

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इस समय वित्त मंत्रालय और सरकार में जीडीपी के आंकड़ों को लेकर काफी खुशियां मनाई जा रही हैं. 6.1 फीसदी विकास की दर पा लेना वह भी जब दुनिया के अधिकांश देश लड़खड़ा रहे हैं, एक उपलब्धि से कम नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं है कि ये आंकड़े स्थायी हैं. अभी इन्हें बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती होगी और वह भी जब मोदी सरकार अगले दो सालों में 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था तैयार करने की बात कर रही हो. यह बहुत ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य है और इसे पूरा करने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रयास की जरूरत है. आइये पहले जानते हैं खुशी की वज़ह.

इस महीने के तीसरे हफ्ते में वह खुशनुमा खबर आई जिसकी सरकार को भी उम्मीद नहीं थी. भारत के सकल विकास की दर (जीडीपी) 2023 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) में 6.1 फीसदी रही जबकि तीसरी तिमाही में यह महज 4.4 फीसदी थी. बाजारों में अनुमान था कि चौथी तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था 5.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी. लेकिन एनएसओ के आंकड़ों ने वित्त मंत्री के चेहरे की मुस्कान वापस ला दी. वित्त वर्ष 2023 में विकास की दर 7.2 फीसदी रही हालांकि यह वित्त वर्ष 2022 के 9.5 फीसदी से कम ही है.

इस खबर की खास बात यह रही कि कृषि क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. पूरे साल में उसकी विकास दर 4 फीसदी की रही. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बढ़ोतरी पिछले साल की इसी तिमाही के 0.6 से उछलकर 4.5 फीसदी हो गई जिसने जीडीपी को महत्वपूर्ण बढ़ावा दिया. सर्विस सेक्टर 9.5 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि हॉस्पिटैलिटी सेक्टर ने भी बढ़िया प्रदर्शन किया. हवाई यात्रा करने वालों की संख्या में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई जिससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है. कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में 10 फीसदी से भी ज्यादा की तेजी रही और इसने ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा दिया है.

कमर्शियल बैंकों की स्थिति भी ठीक रही और ऋण के उठाव में पिछले साल अप्रैल की तुलना में 2.8 गुना बढ़ोतरी देखी गई. यानी कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के हर हिस्से में तेजी रही जिससे यह सकारात्मक परिणाम सामने दिख रहा है. इतना ही नहीं क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मोरगैन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट इंडिया इक्विटी स्ट्रैटिजी ऐंड इकोनॉमिक्सः हाउ इंडिया हैज ट्रांसफोर्म्ड इन लेस दैन ए डिकेड में कहा है कि भारत ने पिछले दस सालों में बहुत तरक्की की है और यह एशिया में तरक्की का वाहक बनेगा. उसने कहा है कि अगले दशक के अंत में भारत की जीडीपी 2032 तक 7.9 खरब डॉलर की होगी. फिलहाल यह 3.1 खरब डॉलर की है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की पर कैपिटा इनकम अभी के 2200 डॉलर से बढ़कर 2032 तक 5,200 डॉलर हो जायेगी.


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चुनौतियां-चिंताएं भी कम नहीं हैं

जीडीपी की दर में यह बढ़ोतरी उत्साहवर्धक है. लेकिन भविष्य की चिंताएं भी सामने हैं. सबसे बड़ी चिंता निर्यात की है. हालांकि हमारा आयात भी घटा है लेकिन निर्यात उस स्तर पर नहीं आया है जिसे देखकर उत्साहित हुआ जा सके. रूस-यूक्रेन युद्ध तथा जर्मनी जैसे कुछ देशों में मंदी का आना भारत के लिए चिंता का विषय है. हमारे निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका को जाता है लेकिन वहां की आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है और मंदी की आहट गाहे-बेगाहे सुनाई देती रहती है.

एक बड़ी समस्या जो हमारी अर्थव्यवस्था को खाये जा रही है वह है बेरोजगारी. देश में रोजगार उस हिसाब से नहीं बढ़ रहे हैं जिसकी जरूरत है. आंकड़े हैरान करने वाले हैं और बेरोजगारी की दर जो जनवरी में 7.14 फीसदी थी वह अप्रैल में 8.11 फीसदी तक जा पहुंची है. यानी विकास के बावजूद नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं.

यह संख्या बहुत बड़ी है. सिर्फ इतना ही नहीं करोड़ों लोग अब रोजगार की तलाश से बाहर हो चुके हैं क्योंकि उन्हें रोजगार मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती. बेरोजगारी के आंकड़े जीडीपी में अच्छी प्रगति के बावजूद अगर बढ़ रहे हैं तो आने वाले समय के लिए यह और चिंता का विषय है. लेकिन इस बेरोजगारी के लिए सिर्फ केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा, राज्य सरकारें भी उतनी ही जिम्मेदार हैं.

कांग्रेसी सरकार अब सस्ती लोकप्रियता पाने वाले खर्चीले कदम उठा रही हैं और रोजगार देने की बजाय बेरोजगारी भत्ता दे रही हैं. इससे उनकी अर्थव्यवस्था तो डगमायेगी ही, देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा. साथ ही राजनीतिक व्यवस्था पर भी इसका असर पड़ेगा.

एक बड़ी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों तथा कम इनकम ग्रुप के लोगों की मांग में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. यह वर्ग बहुत बड़ा है. यहां देखने लायक बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है और जितनी खपत बढ़ेगी उतना ही ग्रोथ होगा और इस बार ऐसा ही हुआ. खपत बढ़ने से ही कारखानों के पहिये तेजी से दौड़ने लगे हैं. लेकिन अभी जो आंकड़े आ रहे हैं वे बता रहे हैं कि कम इनकम ग्रुप वाले लोग कम खरीदारी कर रहे हैं. इसका उदाहरण है. कम कीमत वाली कारों और बाइक की बिक्री में अभी भी तेजी नहीं आई है जबकि महंगी कारों तथा महंगी बाइक की बिक्री तेजी से बढ़ी.

अगर हम कोविड आने के पहले यानी 2018-19 के आंकड़े देखें तो पायेंगे कि अभी तक इनकी बिक्री उस स्तर पर नहीं पहुंची. उदाहरण के लिए इंट्री लेवल स्कूटरों की बिक्री अभी 2018-19 की तुलना में 28 फीसदी कम है. इसी तरह मोटर साइकिलों की बिक्री में 38 फीसदी गिरावट आई है.

इतना ही नहीं इनके निर्यात में भी कमी आई है.

इस तरह की गिरावट सस्ती कारों की बिक्री में भी आई है. यह ट्रेंड चिंताजनक है. भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (सियाम) के अनुसार एंट्री लेवल कारों की बिक्री अपने चरम से गिर गई है. और महंगी गाड़ियों खासकर एसयूवी की बिक्री बढ़ गई है. यह जताता है कि कम आय वर्ग के लोगों की क्रय शक्ति घटी है. खपत का ऐसा ही कुछ दृश्य मोबाइल फोन मार्केट में देखने को मिल रहा है जहां महंगे स्मार्टफोन की बिक्री तो बढ़ी है लेकिन सस्ते फोन की बिक्री 2021 की तुलना में 10 फीसदी कम है.

एक और चिंता अल निनो की भविष्यवाणी ने बढ़ा दी है. विदेशी मौसम विशेषज्ञों द्वारा बताया जा रहा है कि इस साल यह आ सकता है. इससे मानसून पर असर पड़ेगा और खेती के सीजन में बारिश कम होगी. इसका असर हमारी खेती पर पड़ेगा और अनाजों का उत्पादन कम होगा जिससे कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर घट जायेगी जिसने इस बार हमारी अर्थव्यवस्था को तेजी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कृषि क्षेत्र ने कोविड काल में करोड़ों लोगों को भूख से बचाया और खाद्य स्टॉक बनाये रखा. अगर अल निनो का असर पड़ता है तो कुल जीडीपी में 50 बेसिस प्वाइंट की गिरावट आ सकती है.

देश में महंगाई की दर घटी है. लेकिन कई जरूरी चीजों के दाम बढ़े हैं उनके कारण भी कम इनकम ग्रुप के लोगों की क्रय शक्ति घटी है. स्कूलों में फीस का बढ़ना आम बात है. इसका भी असर मिडल क्लास और लोअर मिडल क्लास की क्रय शक्ति पर पड़ रहा है. महंगाई का असर एफएमसीजी की बिक्री पर पड़ा है और कम आय के लोग इनकी कम खरीदारी कर रहे हैं. जीडीपी के आंकड़े बेशक प्रभावशाली हैं लेकिन चुनौतियां बड़ी हैं और समाधान मांग रही हैं.

(मधुरेंद्र सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और डिजिटल रणनीतिकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: आशा शाह)


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