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Tuesday, 24 December, 2024
होमदेशWHO के दिशा-निर्देश जारी करने के बाद भारत भी आर्टिफिशियल शुगर (NSS) को लेकर नीति बनाने पर विचार कर रहा

WHO के दिशा-निर्देश जारी करने के बाद भारत भी आर्टिफिशियल शुगर (NSS) को लेकर नीति बनाने पर विचार कर रहा

15 मई को जारी दिशानिर्देश में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कृत्रिम मिठास का शरीर की चर्बी कम करने में कोई दीर्घकालिक लाभ नहीं होता है और इसके दीर्घकालिक उपयोग से कई समस्याएं भी हो सकती है.

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नई दिल्ली: भारत का खाद्य सुरक्षा नियामक, भारतीय खाद्य मानक सुरक्षा प्राधिकरण (FSSAI) आर्टिफिशियल शुगर (NSS) के उपयोग पर स्वयं के दिशानिर्देश लाने पर विचार कर रहा है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक नए दिशानिर्देश के मद्देनजर आया है, जो शरीर के वजन को नियंत्रित करने या जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए NSS के उपयोग के खिलाफ सिफारिश करता है.

FSSAI के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “एक साइंटिस्ट पैनल को भारत में मौजूद और बेचे जाने वाले NSS ब्रांडों में उपयोग की जाने वाली सामग्री की जांच करने और मनुष्यों पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव पर सबूत इकट्ठा करने के लिए कहा गया है. उन्हे इसकी जिम्मेदारी भी सौंपी गई है कि क्या वे कोई नुकसान पहुंचाते हैं.”

अधिकारी ने कहा, “इसके निष्कर्षों के आधार पर, हम भारत में NSS के लिए अपने दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं.”

दिप्रिंट ने FSSAI के मुख्य कार्यकारी कमल वर्धन राव से इसकी जानकारी के लिए फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. उनके जवाब देने पर यह कॉपी अपडेट कर दी जाएगी.

दिप्रिंट ने जिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बात की, उन्होंने यह भी कहा कि भारत जैसे देशों को NSS पर अपनी नीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि उनके व्यापक उपयोग इस बात के सबूत हैं कि वे अनुमानित रूप से अच्छे नहीं हैं.

अपने 15 मई के दिशानिर्देश में, WHO ने आम NSS के रूप में acesulfame K, aspartame, advantame, cyclamate, neotame, saccharine, sucralose, stevia और stevia derivatives का उल्लेख किया था.

दिल्ली के फोर्टिस-सी-डॉक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डायबिटीज, मेटाबॉलिक डिजीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा, “WHO द्वारा जारी गाइडलाइन एक सामान्य निर्देश है, और वजन घटाने में इसका योगदान होता है इसका कोई प्रमाण नहीं है. कृत्रिम मिठास के कई प्रतिकूल प्रभाव भी हैं.” 

उन्होंने कहा, “प्रत्येक देश को अपने स्वयं के दिशानिर्देश विकसित करने चाहिए. यह (भारत के लिए) महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में कोला से लेकर स्थानीय स्तर पर बने लड्डू और अन्य मिठाइयों में NSS का उपयोग किया जा रहा है.

संभावना है कि इनमें से कुछ का उपयोग भारत में हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के लिए जिम्मेदार है. मिश्रा ने कहा कि देश में इन मिठास पर एक नीति और विनियमन की तत्काल आवश्यकता है.

इस बीच, हैदराबाद के यशोदा अस्पतालों के वरिष्ठ सलाहकार चिकित्सक डॉ दिलीप गुडे ने बताया कि NSS का कोई पोषण मूल्य नहीं है और इसमें कोई आवश्यक आहार सामग्री नहीं है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “NSS के बजाय स्वाभाविक रूप से होने वाले मिठास जैसे (उनमें) फलों का उपयोग किया जा सकता है. आहार की मिठास में कमी को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि इससे शुगर फ्री बनाने में मदद मिलती है.”


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भारत में NSS की ‘उच्च खपत’ क्यों है

WHO दिशानिर्देश NSS पर उपलब्ध साक्ष्यों की समीक्षा के निष्कर्षों पर आधारित है.

दिशानिर्देशों के मुताबिक, वयस्कों या बच्चों में शरीर की चर्बी कम करने में NSS का कोई दीर्घकालिक लाभ नहीं है. दिशानिर्देश कहते हैं कि समीक्षा का परिणाम यह भी बताता है कि NSS के दीर्घकालिक उपयोग से संभावित अवांछनीय प्रभाव हो सकते हैं, जैसे कि टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और वयस्कों में मृत्यु दर का बढ़ता जोखिम.

दिप्रिंट से बात करने वाले स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, पेय पदार्थों की लोकप्रियता और इस विश्वास के कारण कि वे चीनी वाले पदार्थों की तुलना में सुरक्षित या बेहतर हैं, भारत में NSS की काफी खपत है.

डॉ गुडे ने कहा, “शुगर फ्री मिठाई और आइसक्रीम भी काफी उपलब्ध हैं. यह महत्वपूर्ण है कि यह दिशानिर्देश भारतीय जनता तक भी पहुंचे.”

उन्होंने आगे कहा, “भारत मधुमेह की विश्व राजधानी पहले ही बन चुकी है. NSS पर निर्भरता बंद होनी चाहिए क्योंकि यह केवल मधुमेह रोगियों की आबादी में इजाफा करती है. हमें किसी के आहार की समग्र मिठास को कम करने का प्रयास करना चाहिए और यही संदेश भारतीय जनता तक पहुंचाया जाना चाहिए.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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