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Sunday, 24 November, 2024
होममत-विमतपलक झपकते ही अकाउंट से पैसे गायब- साइबर क्राइम के मामले में कानून और पुलिस दोनों क्यों हैं लाचार

पलक झपकते ही अकाउंट से पैसे गायब- साइबर क्राइम के मामले में कानून और पुलिस दोनों क्यों हैं लाचार

देश में साइबर क्राइम का फैलाव कितना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2021 में इसके कुल 52,000 मामले दर्ज हुए. यह संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और लगभग दुगनी हो गई है.

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हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं -शिकारी आयेगा, दाना डालेगा, उसमें फंसना नहीं. लेकिन हम हैं कि फंस ही जाते हैं. साइबर क्राइम करने वाले यह खूब जानते हैं और अब हालत यह है कि देश में हर दिन हजारों लोग अपनी कमाई इन लुटेरों के हाथों लुटवा रहे हैं. जिस इंटरनेट ने हमें दुनिया से जुड़ने की ताकत दी है वही हमें अब अपने जाल में फंसा रहा है. उसका इस्तेमाल करके दूरदराज में छुपे बैठे साइबर क्रिमिनल हमारा पैसा पलक झपकते लूट ले जाते हैं. एक ओटीपी आया, हमने अनजान कॉलर को बताया और फिर देखते ही देखते बैंक अकाउंट खाली. या फिर कोई बीमा का नाम लेकर कॉल करता है या फिर फेसबुक फ्रेंड बनकर.

कई बार तो फर्जी कस्टमर या फिर पुलिस वाले बनकर लाखों करोड़ों रुपये ठग लेते हैं. पहले नाइजीरियाई ठग यह काम करते थे लेकिन अब देश के कोने-कोने में छुपकर बैठे साइबर क्रिमिनल यह काम बेधड़क कर रहे है. कई पकड़े भी जाते हैं लेकिन क्राइम पर रोक-टोक नहीं है. कारण साफ है न तो पुलिस का डर और न ही कानून का खौफ क्योंकि दोनों ही इस मामले में लाचार दिखते हैं.

देश में साइबर क्राइम का फैलाव कितना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2021 में इसके कुल 52,000 मामले दर्ज हुए. लेकिन बात यहीं नहीं रुकी, यह संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और लगभग दुगनी हो गई है. आईटी सिटी बेंगलुरू से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक कर्नाटक में पिछले साल 363 करोड़ रुपये की ठगी हुई यानी हर दिन साइबर क्रिमिनल एक करोड़ रुपए हड़प जाते हैं और न जाने ऐसो कितने मामले दर्ज ही नहीं हुए क्योंकि अधिकांश लोगों को मालूम ही नहीं है कि साइबर क्राइम के मामले कहां दर्ज होते हैं और इन्हें कैसे हैंडल किया जाता हैं.

एक कारण यह भी हैं कि कम पैसे जाने के कारण भी लोग उतनी शिद्दत से मामले को आगे नहीं बढ़ाते हैं. लेकिन कई अपराधी तो बकायदा कॉल सेंटर चला रहे हैं जहां से वे लोगों को कॉल करके ठग रहे हैं. लोगों को केवाईसी करने के नाम पर वे खूब लूट रहे हैं. इसके लिए वे उन संभावित ग्राहकों की सूची तैयार कर लेते हैं और उन्हें उलझाकर उनके व्यक्तिगत आंकड़े ले लेते हैं और फिर उनके खातों पर हाथ साफ कर लेते हैं. इसके लिए ज्यादातर साइबर क्रिमिनल एनीडेस्क या टीमव्यूवर या फिर ऐसे ही ऐप्प इस्तेमाल करते हैं और दूर से ही शिकार के कंप्यूटर पर कब्जा जमा लेते हैं. फिर कुछ भी करना आसान हो जाता है.


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क्रिप्टोकरेंसी बना लेते हैं ठग

छोटे अपराधी अपराध के पैसे पेटीएम तथा ऐसे ही ऐप्प में डाल लेते हैं लेकिन बड़े अपराधी या संगठित गिरोह ये लाखों-करोड़ों रुपए क्रिप्टोकरेंसी में कन्वर्ट कर देते हैं जिससे पकड़े जाने पर उसकी रिकवरी असंभव हो जाती है. क्रिप्टोकरेंसी तक पहुंचना पुलिस के बस की बात नहीं है क्योंकि इसका कोई बैंक जैसा सेट अप नहीं होता है. इसलिए भारत सरकार भी क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाना चाहती है. इस कंप्यूटर जनित पैसे का कोई फिजिकल फॉर्म नहीं होता है और यह कंप्यूटर में ही रहता है तथा यह मनी लॉन्डरिंग जैसे अवैध कार्यों में होता है. बैंक खातों की तरह इसमें किसी का नाम नहीं होता है. इसलिए साइबर क्रिमिनल्स की पसंद क्रिप्टोकरेंसी ही है.

साइबर ठगी के ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति पुलिस के पास जाना होता है लेकिन ठगी का पता लगाना उनके लिए भी आसान नहीं होता है क्योंकि अपराधी दूर किसी और राज्य में बैठा हुआ होता है जहां स्थानीय पुलिस की भी पहुंच नहीं होती. झारखंड और हरियाणा के मेवात से कई ऐसे मामलों का पता लगा जिनमें ठग पेड़ों पर बैठकर अपने लैपटॉप के जरिये ठगी कर रहे थे. उन्हें लगता था कि पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी. इस तरह से उनके सही लोकेशन का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.

एक बार जब साइबर क्रिमिनल पकड़ा भी जाता है तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराके उसे सजा दिलाना कठिन कार्य है. भारत में साइबर कानून तो हैं लेकिन उनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है और उनमें अभी काफी कमियां हैं. सबसे बड़ी बात है कि प्राइवेसी के नाम पर व्हाट्सऐप्प या फेसबुक अथवा इंस्टाग्राम से कोई भी सूचना पाने का सीधा कोई तरीका पुलिस के पास नहीं है, क्योंकि इनके मेसेज इनक्रिप्टेड होते हैं. पुलिस को बकायदा उन कंपनियों को लिख कर देना होता है कि इस अकाउंट से अपराध हुआ. उसके बाद ही उसे पूरी सूचना मिल पाती है.

भारत सरकार ने सन् 2000 में इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट (आईटी ऐक्ट) बनाया था ताकि इस पर अंकुश लग सके. यह काफी विस्तृत ऐक्ट है और इसमें प्राइवेसी लॉ भी शामिल है. इसके अलावा इंडियन पीनल कोड 1860 भी इस तरह के ठगी के मामलों में लागू होता है. लेकिन साइबर ठग है कि उन्हें इन कानूनों की परवाह नहीं है. उधर पुलिस है कि उसे भी इन अपराधों के बारे में और उनसे निबटने के कानूनों के बारे में पर्याप्त ज्ञान नहीं है. इतना ही नहीं अदालतें भी इन मामलों में उतनी सिद्धहस्त नहीं होती हैं.

पटना हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज श्रीमती अंजना प्रकाश कहती हैं कि अभी ज्युडिशियरी को भी ठीक से ऐसे मामलों को सुनने का अनुभव नहीं है. निचले स्तर पर जजों को इसकी ट्रेनिंग देने की जरूरत है क्योंकि ये मामले पुराने किस्म के लूट-खसोट, चोरी जैसे अपराधों से बिल्कुल अलग हैं. इसलिए जज भी इसमें थोड़ा भ्रमित हो जाते हैं.

कानून का डर नहीं

दरअसल ऐसे मामलों में सजाओं की मात्रा भी कम है. अपराधी पकड़ा जाता है और जमानत पर छूट जाता है. फिर वही अपराध करने लगता है क्योंकि यह बहुत आसान है और कानून का कोई भय नहीं है. पिछले साल चंडीगढ़ में 16 सदस्यीय एक ऐसा गैंग पकड़ा गया था जिसके खिलाफ 4935 शिकायतें थीं और और 286 मुकदमे दर्ज थे.

ऐसे मामलों में जुर्माने की रकम उतनी होनी ही चाहिए जितने का फ्रॉड हुआ है. अमेरिका में जहां वित्तीय मामलों में न केवल कड़ी सजा का प्रावधान है बल्कि जुर्माना भी लाखों डॉलर में होता है. यहां ऐसा कुछ नहीं है लेकिन अब जरूरत है.

साइबर लॉ की जानकार दिल्ली हाई कोर्ट की एडवोकेट अनन्या पाराशर कहती हैं कि इस समय भारत में साइबर अपराधों के निवारण के लिए दो तरह के कानून हैं. एक है आईटी ऐक्ट और दूसरा आईपीसी. इन दोनों की धाराएं अपराधों में जुड़ जाती हैं.

आईटी ऐक्ट में सजा तथा जुर्माने दोनों का प्रावधान है. समस्या यह है कि ये अपराध जमानत योग्य हैं और अगर पीड़ित के पास ठगी के पर्याप्त सबूत मसलन चैट, मैसेज, ईमेल वगैरह हैं तो अपराधी को सजा मिल सकती है लेकिन ऐसा न होने पर मुश्किल होगी. लेकिन वह भी मानती हैं कि सजा की मात्रा अपराधों को देखते हुए कम है.

भारतीय साइबर क्रिमिनल अब नाइजिरियाई अपराधियों की तरह की देश के बाहर के लोगों को लूट रहे हैं. कई ऐसे कॉल सेंटर कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली में पकड़े जा चुके हैं जिनके जरिये विदेशों खासकर अमेरिकी नागरिक साइबर ठगी का शिकार हुए हैं. लेकिन ये अभी बंद नहीं हुए हैं. ये अभी भी सक्रिय हैं और देश का नाम बदनाम कर रहे हैं. एफबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय साइबर अपराधियों ने अमेरिका के बुजुर्गों से पिछले साल यानी 2022 में 10 अरब डॉलर की ठगी की. वहां के बुजुर्गों को टेक्निकल सपोर्ट या कुछ और बहाने बनाकर वे बड़े पैमाने पर ठगी कर रहे हैं. इसके लिए बकायदा कॉल सेंटर खोले गये थे जहां से यह फ्रॉड होता है.

हालांकि पुलिस ने कई गिरफ्तारियां की हैं लेकिन इस पर अंकुश नहीं लग पाया है. अमेरिकियों का आरोप है कि कई जगहों पर पुलिस का संरक्षण उन अपराधियों को मिला हुआ है इसलिए गिरफ्तारियां नहीं हो पा रही हैं.

साइबर क्राइम से बचना मुश्किल

साइबर क्राइम से बचने का कोई फॉर्मूला नहीं है. सबसे अच्छा तरीका है कि अनजान व्यक्ति से मित्रता न करें. कोई भी ओटीपी मांगे न दें. फेसबुक में किसी से अनावश्यक रूप से न जुड़ें. अगर कोई कहता है कि वह विदेश में रहता है और फिर दोस्ती बढ़ाता है तो उस पर विश्वास न करें.

इतना ही नहीं फॉरेन से गिफ्ट भेजने वालों की बातों पर तो कतई विश्वास न करें. क्रिमिनल ऐसा कर फंसा लेते हैं. वे अपने एजेंटों से फोन करवाते हैं जो अपने को कस्टम ऑफिसर कहते हैं और बताते हैं कि आपके नाम विदेश से जो गिफ्ट आया है उसमें प्रतिबंधित सामान है. फिर वे गिरफ्तारी का भय दिखाकर पैसे ऐंठ लेते हैं और फुर्र हो जाते हैं.

कस्टम विभाग के पूर्व प्रधान कमिश्नर डा. अनूप कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि कस्टम विभाग कभी किसी को फोन नहीं करता है क्योंकि उसके पास फोन नंबर ही नहीं होते. वैसे भी सरकारी नोटिस लिखित में जाते हैं न कि फोन से इसलिए ऐसे फोन करने वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत करें. आपकी सुरक्षा आपके हाथ में है.

(संपादन: अलमिना खातून)


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