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Thursday, 21 November, 2024
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भारतीय महिलाओं की आर्थिक असमानता और मन की पीड़ा के बीच कैसे जिंदगी का हिस्सा हैं शाहरुख खान

महिलानॉमिक्स में श्रयना भट्टाचार्य कहती हैं कि भारत में महिला-पुरुष के बीच आर्थिक असमानता है और वे तमाम सामाजिक दबावों का सामना करती हैं.

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विद्या शेखर से मेरी मुलाक़ात 2016 में एक इतवार की दोपहर ऐ दिल है मुश्किल (एडीएचएम) के शो पर हुई थी. यह फ़िल्म डाइरेक्टर-प्रोड्यूसर करण जौहर की एक कोशिश थी लंदन और वियना के बीच रहने वाले अमीर दक्षिण एशियाई प्रवासियो के एक बेहद ख़ूबसूरत ग्रुप के बीच एक तरफ़ा प्यार को खंगालने की. तीन घंटे लंबी इस फ़िल्म का केवल आधा घंटा भारत में एक शादी के सीक्वेंस को दिया गया है.

शाहरुख़ ख़ान ने पांच मिनट का कैमियो किया था. मैंनें ठान लिया था कि मैं इसे मिस नही करूंगी. ऐ दिल है मुश्किल की दीवाली रिलीज़ जोखिम में पड़ गई थी. बड़े बजट की हिंदी फ़िल्में अक्सर त्योहारो और सार्वजनिक छुट्टियो के आसपास रिलीज़ की तारीख़ें पाने के लिए जद्दोजहद करती हैं. लेकिन दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी समूहों ने फ़िल्म दिखाने वाले सिनेमाघरो में तोड़फोड़ करने की धमकी दे दी थी. क्यों? क्योंकि एडीएचएम की कास्ट में ख़ूबसूरत पाकिस्तानी एक्टर फ़वाद ख़ान भी शामिल थे. कभी हाशिए पर रहे लेकिन अब मुख्यधारा में आने की संभावना देख रहे नेताओ ने घोषणा की कि फ़िल्म में पाकिस्तानी टेलेंट का इस्तेमाल भारत में सीमा-पार के विद्रोहियो से लड़ने वाले भारतीय सैनिकों का अपमान है.

फ़िल्म की रिलीज़ से एक महीने पहले ही एक आतंकवादी हमले के बाद, जिसमें संघर्षग्रस्त कश्मीर में भारतीय सेना के सत्रह जवान मारे गए थे, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में काफ़ी खटास आ गई थी. भारतीय अधिकारियो का दावा था कि यह हमला पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था.

आख़िरकार, इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने एक बयान जारी करके घोषणा की कि भविष्य में वो
पाकिस्तानी कलाकारों को काम नहीं देंगे. फ़िल्म एंड टेलीविज़न प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने सरकार के आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के प्रति एकजुटता ज़ाहिर की. विवाद के चरम पर करण जौहर ने एक भावनात्मक बयान का वीडियो जारी
किया: ‘मैंनें हमेशा माना है कि अपनी देशभक्ति ज़ाहिर करने का सबसे अच्छा तरीक़ा प्यार फैलाना है. और मैंनें अपने काम और अपने सिनेमा के माध्यम से हमेशा यही दिखाने की कोशिश की है. जब पिछले साल सितंबर से दिसंबर तक
मैंनें अपनी फ़िल्म एडीएचएम की शूटिंग की थी, तब माहौल बिल्कुल अलग था. हालात बिल्कुल अलग थे. हमारी सरकार पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश कर रही थी. और मैंने उन प्रयासों का, उस वक़्त उन प्रयासों का
सम्मान किया था. मैं आज की भावना का भी सम्मान करता हूं. मैं इस भावना को समझता हूं क्योंकि मैं भी ऐसा ही महसूस करता हूं. आगे बढ़ते हुए, मैं यह कहना चाहूंगा कि, यक़ीनन, हालात को देखते हुए मैं पड़ोसी देश की प्रतिभाओं के साथ
नहीं जुड़ूंगा. लेकिन इसी के साथ मैं आपसे एक बात जानने की गुज़ारिश करता हूं—कि मेरी टीम के तीन सौ से अधिक भारतीयों ने मेरी फ़िल्म बनाने में अपना ख़ून, पसीना और आंसू बहाए हैं. मुझे नही लगता कि उनके लिए यह न्यायसंगत
होगा कि अन्य भारतीयों के कारण उन्हें किसी भी तरह की अशांति का सामना करना पड़े.’ फ़िल्म निर्माता ने शुरुआती क्रेडिट में भारतीय रक्षा बलों को श्रद्धांजलि दी. प्रोडक्शन हाउस ने सेना कल्याण कोष में पांच करोड़ रुपए का योगदान दिया.
इन बयानों और रियायतों ने 22 अक्टूबर 2016 को फ़िल्म की शांतिपूर्ण रिलीज़ का मार्ग प्रशस्त किया. सैकड़ों कर्मचारियों की ओर से करण जौहर की अपील भारत के 2.8 अरब डॉलर के फ़िल्म उद्योग के आकार और आर्थिक ताक़त का संकेत देती है, जो दुनिया के सबसे बड़े फ़िल्म उद्योगों में से एक है. डाटा वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार, 2017 में इसने लगभग ढाई लाख लोगों को रोज़गार दिया था. भारत में हर साल बीस से अधिक भाषाओं में लगभग दो हज़ार फ़िल्में बनती हैं. फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फ़िक्की) के अनुसार, 2019 में फिल्म उद्योग ने आर्थिक मंदी के बीच उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया और दस प्रतिशत की वृद्धि की. भारतीय फ़िल्म उद्योग पर बॉलीवुड का दबदबा है, जो राजस्व में चालीस प्रतिशत का योगदान देता है. 2019 की ऑरमैक्स बॉक्स ऑफ़िस रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में, उस वर्ष सिनेमा देखने जाने वालो की संख्या बढ़कर एक अरब हो गई थी, जिनमें से 34 करोड़ दर्शक हिंदी फ़िल्मों के थे. कोई हैरानी नहीं कि 2019 में हिंदी फ़िल्मों की सकल बॉक्स-ऑफ़िस संग्रह राशि 49.5 अरब रुपए के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी.

एडीएचएम की अक्टूबर रिलीज़ से ए हफ़्ता पहले, जैसे ही ऑनलाइन टिकट मिलना शुरू हुए, मैंने दिल्ली के अपने पसंदीदा मूवी थिएटर में सबसे अच्छी सीटों में से एक को बुक कर लिया. एक सैक्शन ब्रेक के समानांतर पंक्ति में स्थित
सीट पर टांगें फैलाने की भरपूर जगह थी. उसके एकदम सामने कोई सीट नहीं थी जिससे पर्दे को देखने में कोई रुकावट नही आती थी. मैं इस सिनेमा हॉल में एकल-सीट चुनने में माहिर थी. और पता लगा कि विद्या भी थी. करीब सौ सीटों
वाला सिनेमा हॉल खचाखच भरा हुआ था. यह फ़िल्म भारत और यूके में बॉक्स ऑफ़िस पर एक बड़ी सफलता साबित हुई. मैं अपनी सीट पर जल्दी जा पहुंची थी और फिर मैंने अपने आसपास के माहौल को देखना शुरू कर दिया, परिवार और
बीसेक जोड़े इतवार के अपने बेहतरीन परिधानों में आए थे. फ़वाद ख़ान को देखने के लिए उत्साहित कॉलेज की लड़कियों का बड़ा सा दल आ पहुंचा. ‘पाकिस्तानी आदमी इंडियन आदमियों से कहीं ज़्यादा हॉट होते हैं, यार,’ मैंने एक युवती
को अपने समूह में ऐलान करते सुना. उसकी सहेली हंस पड़ी और व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘ऐसी एंटी-नेशनल मत बन.’ लड़कियों के गैंग में हंसी का फुहारा फूट पड़ा. मेरे पीछे दक्षिणी दिल्ली की सर्वव्यापी डिज़ाइनर-लेबलो वाली आंटियों की फ़ौज जमा हो गई थी. दौलत और ब्रंच के सुरूर में वो अपने झिलमिलाते शहद जैसे सुनहरे बालों और झिलमिलाते शहद जैसे सुनहरे बैग लिए आई थी. कई अमेरिकी सबर्बों की तुलना में दक्षिण दिल्ली के कुछ इलाक़ों में शायद ब्लीच किए ब्लौंड बाल ज़्यादा मिलते है. ब्रंच क्लब फ़िल्म के हीरो रणबीर कपूर को देखने के लिए बेताब था. वो उनके गुणगान करने लगी: ‘सोंणा मुंडा है.’आदतन मेरे कान उनकी बातों पर लग गए. पुरुष शरीर पर टिकी स्त्री निगाह ने हमेशा मेरी दिलचस्पी को जगाया है.

(श्रयना भट्टाचार्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘महिलानॉमिक्सः उम्मीद, उन्नति और शाह रुख खान’ का यह अंश हार्पर कॉलिन्स इंडिया की अनुमति से प्रकाशित किया गया है.)

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