नई दिल्ली: देश की राजधानी की सीमाओं से दूर, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की लैंड पूलिंग पॉलिसी के लिए निर्धारित शहरी गांवों (गांव जो शहरीकरण के अनुरूप हों) में कुछ भूमि मालिक नियमों का उल्लंघन करते हुए निर्माण कर रहे हैं.
इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद डीडीए के अधिकारियों ने स्वीकार किया है, जिन्होंने पुष्टि की है कि इस तरह के निर्माण “अनधिकृत” थे, और ऐसे क्षेत्रों में “किसी भी विकास” को 2013 में अधिसूचित लैंड पूलिंग पॉलिसी के तहत मानदंडों को पूरा करके निष्पादित किया जाना था.
नीति के तहत, भूमि मालिक या उनके समूह निर्धारित मानदंडों और दिशानिर्देशों के अनुसार निर्माण के लिए भूमि पार्सल (प्लॉट) पूल करते हैं. कुल मिलाकर, 105 शहरी गांवों की पहचान दिल्ली में लैंड पूलिंग के लिए की गई थी जिन्हें 129 सेक्टर्स में छह क्षेत्रों में विभाजित किया गया है.
बता दें कि लैंड पूलिंग एक ऐसी गतिविधि है जिसमें जमीन मलिकों का एक समूह बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सामूहिक रूप से सरकार को अपना प्लॉट सौंपता है.
इस तरह के अवैध निर्माणों का प्राथमिक कारण यह है कि भूमि पूलिंग नीति दो मानदंडों के कारण जमीन पर गैर-स्टार्टर बनी हुई है, जिसे पूरा करने के लिए भूस्वामियों को सामना करना पड़ रहा है – कम से कम 70 प्रतिशत भूस्वामियों की भागीदारी और 70 प्रतिशत कंटेजियस लैंड (परमिट क्षेत्र के भीतर सीमा से सटी जमीन) जिसका अतिक्रमण न किया गया हो.
दिप्रिंट ने बुधवार को मध्य दिल्ली से 20 किमी की दूरी पर स्थित गढ़ी खुसरो और कादीपुर का दौरा किया और पाया कि जोन P-II के सेक्टर 12-बी और 12-सी में स्थित इन दो शहरी गांवों में अनधिकृत निर्माण बेरोकटोक जारी था.
भूपेंद्र बजाद, जो दिल्ली देहात विकास मंच (लैंड-पूलिंग गांवों में स्थित जमींदारों का एक संघ) की मास्टर प्लान कमेटी के प्रमुख हैं, दिप्रिंट को एक हाउसिंग कॉलोनी की ओर इशारा किया, जो उत्तरी दिल्ली स्थित गांवों गादी खुसरो और कादीपुर में बन रही है.
कुछ घरों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है, कुछ का आंशिक रूप से आंतरिक सड़कों के साथ किया गया है – जो कि देखने में एक हाउसिंग कॉलोनी जैसी थी. प्रापर्टी डीलरों के कार्यालय जो उपेक्षित छोड़ दिए गए थे, उन संरचनाओं में से थे जो क्षेत्र में बनाए जा रहे हैं.
बज़ाद ने दिप्रिंट को बताया, “डीडीए इस बात से अवगत है कि लैंड पूलिंग गांवों में अनधिकृत निर्माण हो रहे हैं, लेकिन उनकी ओर से कार्रवाई न्यूनतम रही है और अवैध निर्माण बहुत अधिक है.”
एक अन्य ज़मींदार ग्रामीण, नरेंद्र कुंडू ने इन अवैध निर्माणों के लिए डीडीए नीति में बाधाओं को जिम्मेदार ठहराया.
अकबरपुर माजरा के पास के गांव में 10 एकड़ जमीन के मालिक कुंडू ने दुख व्यक्त करते हुए कहा, “नीतिगत बाधाओं को दूर करने वाले संशोधनों के संबंध में कई घोषणाएं की गई हैं, लेकिन उन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है. इससे केवल देरी हो रही है, जिसके कारण अधिक भूमि मालिक लैंड पूलिंग में भाग लेने के लिए रुचि खो देंगे.”
फिर राजबीर राणा जैसे निवासी भी हैं, जिनका परिवार संयुक्त रूप से सेक्टर 12-सी में 27 एकड़ जमीन का मालिक है, जो मानते हैं कि अनधिकृत निर्माण नियोजित विकास को देखते हुए क्षेत्र की संभावनाओं के लिए खतरा पैदा करते हैं.
तिगीपुर गांव के सेक्टर 1 में सात एकड़ जमीन के मालिक रघुनंदन ने कहा, “इन दो क्षेत्रों के विपरीत, मेरे गांव में अनधिकृत निर्माण का पैमाना अपेक्षाकृत कम है, हालांकि, हमें डर है कि एक बार जब अन्य क्षेत्र अतिक्रमणों के कारण संतृप्त होने के करीब पहुंचेंगे, तो हमारे गांव को भी इसी तरह की चीजों का सामना करना पड़ेगा.”
दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए डीडीए के उपाध्यक्ष और उसके भूमि प्रबंधन विभाग से संपर्क किया, लेकिन कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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नीतिगत बाधाएं
2013 में अधिसूचित और 2018 में संशोधित, भूमि पूलिंग नीति का मकसद लगभग 80 लाख की आबादी के लिए 17 लाख आवासीय इकाइयां देना था जिससे दिल्ली की बढ़ती आवास आवश्यकताओं को हल किया जा सके.
नीति के अनुसार, जमा की गई भूमि का 60 प्रतिशत भूस्वामियों के लिए आवासीय परियोजनाओं को विकसित करने के लिए निर्धारित किया गया है, जबकि शेष को सड़कों, पार्कों और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए डीडीए को सौंप दिया जाएगा.
डीडीए की भूमिका पहले एक डेवलपर के तौर पर थी लेकिन 2018 की अधिसूचना में उसकी भूमिका को फैसिलिटेटर में बदल दिया गया. लैंड पूलिंग के लिए पात्रता मानदंड प्राप्त करने का दायित्व भूस्वामियों पर रहता है. 2019 के बाद से कुल 19,074 हेक्टेयर भूमि में से 7,452 हेक्टेयर भूमि को जमींदारों द्वारा योजना में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करने के माध्यम से पूल किया गया था.
डीडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “लंबी अवधि के लिए एक गैर-स्टार्टर नीति होने के कारण भूमि मालिकों में अधीरता बढ़ रही है. इसकी वजह से उन्हें अनधिकृत निर्माण के लिए अपनी भूमि बेचने या उससे निपटने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वर्तमान में, विभिन्न लैंड पूलिंग क्षेत्रों में अनाधिकृत निर्माण तेजी से बढ़ रहे हैं.”
आजाद और कुंडू जैसे भूमि मालिकों की परेशानियों को दूर करने के लिए, दिल्ली विकास अधिनियम, 1957 में संशोधन की घोषणा मार्च 2022 में केंद्रीय आवास मंत्री हरदीप पुरी द्वारा की गई थी – तत्कालीन रद्द किए गए एमसीडी चुनावों से पहले – नीति में बाधाओं को दूर करने के लिए.
प्रस्तावित संशोधनों में लैंड पूलिंग को अनिवार्य बनाना शामिल है, यदि न्यूनतम भागीदारी दर 70 प्रतिशत हासिल की जाती है. एक और संशोधन केंद्र सरकार को लैंड पूलिंग को अनिवार्य घोषित करने की शक्तियां प्रदान करता है, भले ही दो न्यूनतम पात्रता मानदंड हासिल नहीं किए गए हों.
पिछले साल मई में, डीडीए ने एक समानांतर रणनीति शुरू की, जिसकी घोषणा पुरी ने भी की थी. इसमें उन क्षेत्रों में लैंड पूलिंग के लिए सशर्त नोटिस जारी करना शामिल है जहां कम से कम 70 प्रतिशत भूस्वामी भागीदारी हासिल की जा चुकी है, लेकिन न्यूनतम 70 प्रतिशत कंटेजियस लैंड अभी सुनिश्चित किया जाना है.
प्रोविजनल नोटिस इस शर्त पर दिए गए थे कि भूस्वामी न्यूनतम 70 प्रतिशत सन्निहित भूमि सुनिश्चित करेंगे. डीडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, मई 2022 से जारी किए गए 14 नोटिसों में से कुल तीन कंसोर्टियम बनाए गए हैं.
नीति के आलोचक और इस पर फिर से काम करने की मांग करने वाले डीडीए के पूर्व आयुक्त (योजना) ए.के. जैन ने कहा कि एजेंसी द्वारा खराब प्रवर्तन के कारण भी अतिक्रमण किया गया था.
जैन ने कहा, “आखिरकार यह होने जा रहा था क्योंकि नीति जमीन पर लागू नहीं की गई है. मैंने कई शहरी गांवों को देखा है जहां अनधिकृत निर्माण हो रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप गड़बड़ी हुई है क्योंकि अनधिकृत निर्माणों को अनियंत्रित छोड़ दिया जा रहा है.”
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