नई दिल्ली: इस साल मार्च में पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भारतीय न्यायपालिका को लेकर दिए गए अपने बयानों के लिए खूब सुर्खियां बटोरीं. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर निशाना साधने से लेकर ‘देश के खिलाफ काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी होगी’ वाली चेतावनी देने तक, उन्होंने ऐसी टिप्पणियां की जो सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के खिलाफ सामने आईं. उन्होंने जो बात कही वह देश में न्यायिक स्वतंत्रता पर सरकार द्वारा एक बड़ा हमला था.
दो महीने बाद कल रिजिजू को कानून और न्याय मंत्रालय से हटाकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भेज दिया गया. संसदीय मामलों के प्रभारी राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है.
जुलाई 2021 में कैबिनेट के दर्जे के साथ कानून मंत्रालय में उनकी पदोन्नति के 22 महीने से कुछ समय अधिक बाद उनके कद को थोड़ा कम किया गया है.
It has been been a privelege and an honour to serve as Union Minister of Law & Justice under the guidance of Hon’ble PM Shri @narendramodi ji. I thank honble Chief Justice of India DY Chandrachud, all Judges of Supreme Court, Chief Justices and Judges of High Courts, Lower… pic.twitter.com/CSCT8Pzn1q
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) May 18, 2023
जब उन्होंने रविशंकर प्रसाद की जगह ली और इस हाई-प्रोफाइल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली तो अरुणाचल प्रदेश से तीन बार के लोकसभा सांसद ने अगली पीढ़ी के बीजेपी नेताओं में से एक बनने की अपनी दावेदारी को मजबूत किया. एक नेता जिसके अंदर खेल के प्रति उत्साह हो, धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता हो, सही उम्र और पूर्वोत्तर का एक प्रतिनिधि, ये तमाम गुण रिजिजू के अंदर हैं.
रविशंकर प्रसाद को भी सुप्रीम कोर्ट के साथ रस्साकशी को कम करने के लिए बाहर कर दिया गया था. हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून स्नातक, रिजिजू कानून के क्षेत्र में अरुण जेटली या यहां तक कि प्रसाद की तरह बड़े परिचित नाम नहीं थे.
हालांकि, यह कदम पीछे हट गया लगता है. नवंबर 2022 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सीजेआई बनने के बाद से ही मोदी सरकार न्यायपालिका के साथ अपने संबंधों को फिर से बनाने की कोशिश कर रही थी.
बीजेपी के एक केंद्रीय पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘क़ानून हलकों के साथ उनकी परिचितता की कमी एक कारण था और वह अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते थे, लेकिन अंततः इससे सरकार को मदद नहीं मिली. उन्होंने न्यायपालिका को बड़े पैमाने पर नाराज़ किया.’
जनवरी में, रिजिजू ने न्यायमूर्ति आर.एस. सोढ़ी (सेवानिवृत्त) का एक इंटर्व्यू क्लिप शेयर किया, जिसमें दिल्ली न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने आरोप लगाया था कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं न्यायाधीशों को नियुक्त करने का निर्णय लेकर संविधान का ‘अपहरण’ किया है.
कुछ दिनों बाद रिजिजू ने न्यायपालिका पर अपने हमले और तेज कर दिए. उन्होंंने कहा था, ‘एक जज एक बार जज बन जाता है, और फिर उन्हें दोबारा चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है. जनता जजों की छानबीन नहीं कर सकती. इसलिए मैंने कहा कि जजों के लिए जनता उन्हें नहीं चुनती इसलिए वे उन्हें बदल नहीं सकते. लेकिन जनता आपको देख रही है. आपके फैसले, जिस तरह से जज काम करते हैं, जिस तरह से आप न्याय देते हैं, जनता देख रही है.’
इसके बाद सीजेआई को उनके पत्र ने ‘खोज-सह-मूल्यांकन समिति’ में एक सरकारी प्रतिनिधि को शामिल करने का सुझाव दिया, जो नियुक्ति पैनल या कॉलेजियम को ‘उपयुक्त उम्मीदवारों’ पर इनपुट देगा.
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‘बाहरी की जगह दूसरे ने ली’
एक पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री ने कहा कि मेघवाल की नियुक्ति का छवि बदलने की कोशिश से कोई लेना-देना नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘उनका कानूनी हलकों से कोई संबंध नहीं है. उन्हें केवल सुप्रीम कोर्ट की बिगड़ी हुई नसों को शांत करने के लिए लाया गया है. सरकार जानती है कि अगला एक साल महत्वपूर्ण है और नए मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के पहले के मुख्य न्यायाधीशों के विचार एकदम विपरीत है. टकराव के रवैये से कोई फ़ायदा नहीं होगा, ख़ास तौर पर अभी क्योंकि कई महत्वपूर्ण मामले अदालत में हैं. एक बाहरी की जगह दूसरे ने ले ली. मेघवाल की अहमियत सिर्फ राजस्थान चुनाव तक है.’
2014 में जब मोदी सरकार ने शपथ ली, तो उनका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट न्यायपालिका में सुधारों की शुरुआत थी. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम उसी वर्ष संसद द्वारा पारित किया गया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में NJAC अधिनियम और 99वें संवैधानिक संशोधन को ‘असंवैधानिक और शून्य’ करार दिया था.
एक पूर्व कैबिनेट मंत्री ने कहा, ‘दो मंत्रालयों को सबसे अधिक नाजुक माना जाता था, उसमें से एक है कानून मंत्रालय था. यह इसलिए संवेदनशील है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी है. दूसरा मंत्रालय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अपनी सरकार की छवि को दुरुस्त करने के लिए जेटली, वेंकैया नायडू, राजवर्धन राठौर, स्मृति ईरानी तक को इस मंत्रालय में बदला गया. इसी तरह, कई कानून मंत्रियों को बदला गया क्योंकि उनमें से अधिकांश ने सरकार के उद्देश्य को पूरा नहीं किया. जेटली को छोड़कर, किसी के पास यह अधिकार नहीं था.’
बीजेपी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि रिजिजू को टकराव से बचने के लिए लाया गया था लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कहा, ‘चूंकि पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद को कानूनी हलकों में जाना जाता था, इसलिए निष्पक्ष दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए एक नया चेहरा चुना गया था. लेकिन समय के साथ उन्होंने न्यायपालिका पर निशाना साधना शुरू कर दिया. उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह केवल वही कर रहे थे जो उसे करने के लिए कहा गया था. उनका काम सिर्फ मैसेज पास करना और फाइलों पर साइन करना था. वर्षों से, प्रधानमंत्री ने खुद कानूनी बिरादरी के साथ एक अच्छा तालमेल स्थापित किया है और रिजिजू को कांग्रेस सरकार के कानून मंत्री एचआर भारद्वाज या यहां तक कि रविशंकर प्रसाद की तरह गंभीरता से नहीं लिया गया.’
बीजेपी में कई लोगों का मानना है कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सरकार को अपनी छवि में बदलाव लाने की जरूरत है. इसलिए, क्षेत्रीय संतुलन और जाति संतुलन को ठीक करने के लिए कई मंत्रियों का फेरबदल किया जा रहा है.
बीजेपी के एक राष्ट्रीय महासचिव ने दिप्रिंट से कहा, ‘सरकार की प्राथमिकता बड़े राज्यों को जीतना है और विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले क्षेत्रीय संतुलन बनाना है. रिजिजू के किसी मामले को लेकर कोई सजा नहीं दी गई है.’
(संपादनः ऋषभ राज)
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