नई दिल्ली: क्या समान हित वाले कई उपभोक्ता कानून द्वारा निर्धारित प्रतिनिधि को उनकी ओर से कार्य करने के लिए अधिकृत करने के बजाय, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत एक संयुक्त मुकदमा दायर कर सकते हैं? जी हां! यह सुप्रीम कोर्ट का कहना है.
इस तरह के मुकदमों को काफी सरल बनाने की संभावना वाले एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ‘उपभोक्ता’ का अर्थ सिर्फ ‘उपभोक्ता’ है.
इसमें यह भी कहा कि ‘इसी तरह के शिकायतकर्ता जो संयुक्त रूप से एक साथ राहत की मांग करते हुए शिकायत करते हैं’, नागरिक प्रक्रिया संहिता (कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर), 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के बिना निवारण की मांग कर सकते हैं. यहां उपभोक्ता कानून की एक जरूरत है.
कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर (सीपीसी) के आदेश 1 नियम 8 में उन मामलों में एक व्यक्ति के लिए दूसरों का प्रतिनिधित्व करने का प्रावधान है जहां एक जगह समान रुचि रखने वाले कई लोग हैं.
कोर्ट अल्फा जी184 ओनर्स एसोसिएशन के एक मुकदमे की सुनवाई कर रही थी, जो आवास आवंटियों का एक समूह है, जिसने दिल्ली स्थित कंस्ट्रक्शन फर्म मैग्नम इंटरनेशनल ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड पर वादा किए गए समय के भीतर हाउस प्रोजेक्ट को पूरा करने में विफल रहने के कारण मुकदमा दायर किया था.
अपने फैसले में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और एम.एम. सुंदरेश ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां एक ही हित वाले कई उपभोक्ता थे, ‘आदेश I नियम 8 सीपीसी का पालन करने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि वे दूसरों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, खासकर जब इसमें कोई बड़ा सार्वजनिक हित शामिल नहीं है’.
पीठ ने कहा, ‘ऐसे शिकायतकर्ता अपने लिए राहत मांगते हैं और कुछ भी नहीं.’ पीठ ने पहले दिए जा चुके फैसलों को दोहराते हुए कहा कि समान हितों वाले उपभोक्ता सीपीसी के प्रावधानों के तहत एक प्रतिनिधि क्षमता में इसे दर्ज करने के बजाय एक संयुक्त शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
ऐसा करते हुए, अदालत ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, ‘देश में उपभोक्तावाद को प्रोत्साहित करने’ के लिए है, और इस कानून के साथ-साथ 1986 के पुनरावृत्ति दोनों का ‘प्रशंसनीय उद्देश्य’ है.
अदालत ने कहा, ‘उपभोक्ता के खिलाफ प्रावधानों के निर्माण में कोई भी तकनीकी दृष्टिकोण अधिनियमन के पीछे के उद्देश्य के खिलाफ होगा.’
शिकायतें
2017 में, आवंटियों ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) से एक एसोसिएशन के रूप में संपर्क किया, लेकिन व्यक्तिगत हलफनामे के साथ.
जवाब में, कंस्ट्रक्शन फर्म ने सोसायटी के जिला रजिस्ट्रार के पास एक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि एसोसिएशन हरियाणा पंजीकरण और सोसायटी अधिनियम, 2012 के मुताबिक पंजीकृत नहीं था.
जबकि, बिल्डर की शिकायत पर कार्यवाही हरियाणा में राज्य रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रार जनरल और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के बीच चल रही थी. NCDRC ने नवंबर 2019 में कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया.
रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जनरल वैधानिक निकाय हैं जो हाउसिंग सोसाइटी को पंजीकृत और विनियमित करते हैं.
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2021 में, एसोसिएशन ने हरियाणा रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जनरल द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की. यह याचिका अभी भी अदालत में लंबित है, जिसने आखिरी बार इस साल मार्च में मामले की सुनवाई की थी.
इस बीच, पिछले साल NCDRC ने एसोसिएशन से संबंधित सभी मामलों को यह कहते हुए स्थगित कर दिया कि यह मामला अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है.
इसके साथ ही एनसीडीआरसी ने कई अन्य आदेश भी पारित किए. जब एसोसिएशन सर्वोच्च न्यायालय में इसकी चुनौती दे रहा था तो यह तर्क दिया गया कि बिल्डर फ्लैट आवंटियों को कानूनी सहारा लेने से रोकने के लिए इस तरह की रणनीति का उपयोग कर रहा था.
अपनी ओर से, बिल्डर ने कहा कि एसोसिएशन का पंजीकरण नहीं है और इसलिए इनके द्वारा की गई शिकायत सही नहीं है.
‘व्यापक, संपूर्ण और समावेशी व्याख्या’
1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(बी), जिसके तहत एनसीडीआरसी में शिकायतें दायर की गई थीं, ‘शिकायतकर्ता’ शब्द को परिभाषित करती है.
धारा 2(1)(बी)(i) के तहत 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ‘शिकायतकर्ता’ को एक उपभोक्ता के रूप में परिभाषित करता है. इस बीच, कानून की धारा 2(1)(बी)(iv) कहती है कि एक ‘शिकायतकर्ता’ में एक या एक से अधिक उपभोक्ता शामिल होते हैं, जहां कई उपभोक्ताओं की एक समस्या हो सकती है.
पहले के मामले में, उपभोक्ताओं को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश I नियम 8 के तहत एक आवेदन दायर करना होगा और कानून की धारा 13 (6) के अनुसार उस प्रावधान के तहत प्रक्रिया से गुजरना होगा.
अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिभाषा ‘व्याख्यात्मक’ है और इसके लिए ‘व्यापक, संपूर्ण और समावेशी व्याख्या’ की आवश्यकता है.
बिल्डर के तर्क को खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि 1986 के अधिनियम की धारा 2 (बी) (आई) के तहत ‘उपभोक्ता’ में ‘कई उपभोक्ता’ शामिल हो सकते हैं.
पीठ ने कहा, ‘शपथ पत्र दाखिल करने वाले अपीलकर्ता के सदस्य 1986 के अधिनियम की धारा 12(1)(ए) के तहत आएंगे.’ यह भी कहा गया कि अलग-अलग आवंटियों ने एनसीडीआरसी के समक्ष हलफनामा दाखिल किया था और पांच साल बाद भी मामले आगे नहीं बढ़े.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने एनसीडीआरसी के लिए एसोसिएशन की शिकायतों की सुनवाई शुरू करने का रास्ता साफ कर दिया है.
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