नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राज्य में सांडों को काबू करने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु सरकार के कानून को बरकरार रखा.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017, जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ सांडों को वश में करने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
संविधान पीठ ने ‘जल्लीकट्टू’ और बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कानून को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया.
पीठ ने कहा कि जल्लीकट्टू पिछली कुछ सदियों से चल रहा है.
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने निर्देश दिया कि सभी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और संशोधित कानून को सख्ती से लागू करने के लिए डीएम और सक्षम अधिकारी जिम्मेदार होंगे.
तमिलनाडु सरकार ने “जल्लीकट्टू” के आयोजन का बचाव किया था और शीर्ष अदालत से कहा था कि खेल आयोजन भी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम हो सकता है और “जल्लीकट्टू” में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है.
पारंपरिक खेल
‘जल्लीकट्टू’ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है. सांडों के साथ होने वाले इस खेल पर रोक लगाने की मांग भी उठती रही है.
फरवरी 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को संदर्भित किया था कि क्या तमिलनाडु और महाराष्ट्र के लोग जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ को अपने सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित कर सकते हैं और संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत उनकी सुरक्षा की मांग कर सकते हैं.
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लेने की आवश्यकता है क्योंकि उनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित पर्याप्त प्रश्न शामिल हैं.
तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने केंद्रीय कानून, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन किया था और क्रमशः जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दी थी.
राज्य के कानूनों को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी.
पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) के नेतृत्व में याचिकाओं के एक समूह ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित जल्लीकट्टू कानून को रद्द करने के लिए दिशा-निर्देश मांगा था.
पेटा ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) विधेयक 2017 को कई आधारों पर चुनौती दी थी, जिसमें राज्य में सांडों को काबू करने के खेल को “अवैध” बताते हुए शीर्ष अदालत के फैसले को दरकिनार करना भी शामिल था.
शीर्ष अदालत ने पहले तमिलनाडु सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें राज्य में जल्लीकट्टू आयोजनों और देश भर में बैलगाड़ी दौड़ में सांडों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के 2014 के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी.
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