नई दिल्ली: श्रीनगर की जामा मस्जिद के मुख्य मौलवी मीरवाइज़ मोहम्मद फारूक शाह की हत्या के 33 साल बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मंगलवार को इस मामले में हिज्बुल मुजाहिदीन से जुड़े दो आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है.
जम्मू-कश्मीर के अपराध जांच विभाग के विशेष महानिदेशक आर.आर. स्वैन ने मंगलवार को बताया कि दो व्यक्ति—जावेद अहमद भट और जहूर भट—इतने साल अंडरग्राऊंड रहे और कश्मीर लौटने से पहले नेपाल और पाकिस्तान में छिपे हुए थे. स्वैन ने बताया कि जहूर ने ही फारूक पर गोलियां चलाई थीं.
पुलिस के अनुसार, दोनों ने अपने भेष बदले हुए थे और बारा-बार अपने ठिकाने भी बदल रहे थे.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बताया कि हत्या में पांच आतंकवादी—अब्दुल्ला बांगरू, अब्दुल रहमान शिगन, मोहम्मद अयूब डार, जावेद भट और जहूर भट शामिल थे, अब्दुल्ला और रहमान 1990 के दशक में एक मुठभेड़ में मारे गए थे, अयूब को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और वो श्रीनगर की सेंट्रल जेल में है और जावेद और जहूर हालांकि, फरार हो गए थे.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “गिरफ्तारी के बाद आरोपियों को सीबीआई को सौंप दिया गया है और अब दिल्ली में एक विशेष टाडा अदालत में उन पर हत्या के मुकदमे चलाए जाएंगे.”
पुलिस ने बताया कि 21 मई 1990 को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने फारूक शाह को मार डाला था, क्योंकि उन्हें मीरवाईज़ पर ‘‘शांतिप्रिय’’ और ‘‘भारतीय एजेंट’’ होने का शक था.
फारूक ऑल जम्मू एंड कश्मीर अवामी एक्शन कमेटी के अध्यक्ष थे. हत्या के बाद, श्रीनगर में एक मामला दर्ज किया गया था और 11 जून 1990 को इसकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दी गई थी.
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‘पाकिस्तान लिंक, हिज्बुल के लिए मांगा फंड’
ऊपर उद्धृत अधिकारी के अनुसार, जांच में पता चला था कि फारूक को मारने से पहले, सभी पांचों आतंकवादी 1990 में आतंकवादी ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान गए थे.
अधिकारी ने कहा, “श्रीनगर में लौटने पर अब्दुल्ला बांगरू को अप्रैल 1990 में पाकिस्तान में अपने आईएसआई हैंडलर से मीरवाइज़ को खत्म करने का आदेश मिला.”
पुलिस ने बताया कि जावेद अहमद भट उस समय श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में हिजबुल मुजाहिदीन के एरिया कमांडर के रूप में काम कर रहा था.
दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए 2010 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार, मई 1990 के दूसरे हफ्ते में जावेद अहमद भट के आदेशों के तहत, मोहम्मद अयूब डार और अब्दुल रहमान शिगन ने निगीन के पास मौलवी फारूक के आवास का दौरा किया था और उनसे “उनके आतंकवादी संगठन यानी हिजबुल मुजाहिदीन के लिए वित्तीय मदद” के लिए अनुरोध किया था.
आदेश के अनुसार, फारूक उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गया और उनसे 2 से 3 दिनों के बाद सुबह के समय मिलने को कहा.
इसमें आगे कहा गया, “इसके बाद, दो आरोपियों ने अपनी योजना के अनुसार क्षेत्र का सर्वे किया और जावेद अहमद भट को जानकारी दी. 21 मई, 1990 को मोहम्मद अयूब डार, अब्दुल रहमान शिंगान और जहूर अहमद नाम के तीन आरोपी लोडेड पिस्टल से लैस होकर निगीन स्थित मीरवाइज़ मंजिल पहुंच गए.”
आगे कहा गया, “योजना के अनुसार, वे सभी मीरवाइज मंजिल के गेट पर पहुंचे और द्वारपाल मकबूल शाह से मिले और उन्हें सूचित किया कि वे मौलवी फारूक से मिलना चाहते हैं. कुछ देर बाद मौलवी फारूक ने तीनों आरोपियों को ऑफिस में बुलाया, जिस पर जहूर अहमद मौलवी फारूक के कमरे में घुस गया और फायरिंग कर दी.”
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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