फिल्मी आसमान में अपनी पारी खत्म करने के बाद उर्मिला मातोंडकर जमीन पर उतर आई हैं और उत्तर मुंबई से चुनाव लड़ रही हैं. आमतौर पर यही माना जा रहा है कि मुंबई जैसी फिल्मनगरी में उनका जीतना स्वाभाविक है. मगर उत्तर मुंबई के लोगों से पूछे तो वे कहेंगे कि कांग्रेस ने इस रंगीला गर्ल को बलि का बकरा बना दिया है.
बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक 5 बार सांसद रहे हैं. 2014 के चुनाव में बीजेपी के गोपाल शेट्टी जीते थे . ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उर्मिला मातोंडकर बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस की विजय पताका फहरा पाएंगी. इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर फिल्म स्टार गोविंदा ने 2004 में बीजेपी के राम नाईक को हराया था. इसके बाद गोविंदा ने राजनीति से किनारा कर लिया. 2009 में इस सीट से कांग्रेस के संजय निरुपम सांसद बने. 2014 में बीजेपी के गोपाल शेट्टी ने कांग्रेस के संजय निरुपम को करीब साढ़े चार लाख वोटो के विशाल अंतर से हराया था.
इतनी भारी पराजय के बाद संजय निरुपम ने मुंबई की किसी और सीट पर अपना भाग्य आजमाने में ही अपनी भलाई समझी. गोपाल शेट्टी बहुत लोकप्रिय हैं मगर उनसे भी ज्यादा इस गुजराती और मराठी बहुल क्षेत्र में भाजपा -शिवसेना का प्रभाव बहुत जबरदस्त है. यहां उनकी जीत का मार्जिन नरेंद्र मोदी से ज्यादा बड़ी थी. वाराणसी में नरेंद्र मोदी पौने चार लाख से जीते थे तो यहां शेट्टी साढ़े चार लाख से . उन्हें कुल वोटों में से 70 प्रतिशत वोट मिले थे. अपने ग्लैमर और फिल्मी लोकप्रियता के बल पर उर्मिला इस अंतर को नहीं पाट सकती.
यह भी पढ़ें: जब स्वप्नसुंदरी को चाट खिलाने की होड़ भी भाजपाइयों को रास नहीं आई
मुंबई के उत्तरी सिरे के बोरिवली, कांदिवली, मालाड, दहीसर जैसे उपनगरों से इस लोकसभा क्षेत्र से चुंधिया देनेवाली जीत हासिल करने के बाद भी गोपाल शेट्टी एक दिन के लिए भी गायब नहीं हुए हैं. लगातार जुटे हुए हैं काम में. इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के 24 नगरसेवक हैं और 6 में से चार विधायक हैं जो शेट्टी के लिए खून पसीना एक कर देनेवाले हैं. फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके परिवार के विभिन्न संगठनों की पूरी मशीनरी लगी हुई है. जिनका कोई न कोई कार्यक्रम लगातार चलता रहता है.
विज्ञापनबाजी तो पहले से ही करना शुरू कर दी है शेट्टी ने. चुनाव अभियान भी पूरे जोरों पर है. वे बैठकों में कार्यकर्त्ताओं से कह रहे हैं कि भारी बहुमत से जीतकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में अपना नाम दर्ज करना चाहते हैं. ऐसे लोकप्रिय और कर्मठ भाजपा उम्मीदवार को हराना आसान नहीं हैं.
इसके बावजूद उर्मिला मातोंडकर का चुनाव में उतरना मुंबई कांग्रेस को बहुत दिनों बाद मिली किसी शुभ खबर की तरह है. कई मामलों में वह गोपाल सेट्टी से बेहतर हैं. गोपाल शेट्टी लोकप्रिय नेता तो है मगर अच्छे वक्ता नहीं हैं. मगर उर्मिला मातोंडकर टीवी पर अपने बयानों और आम सभाओं में भाषणों में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ती हैं. वह बहुत प्रभावी ढंग से बताती है कि उसकी कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है. फिर भी उसने अपनी प्रतिभा के बल पर फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाई. वह बताती है कि उसने राष्ट्र सेवादल से अपनी राजनीतिक सूझबूझ पाई.
यह भी पढ़ें: फारूक अब्दुल्ला बोले- प्रधानमंत्री मोदी जैसा अभिनेता नहीं देखा
कई दशक पहले यह समाजवादियों का राष्ट्रीय स्यंसेवक संघ जैसा संगठन था. आज बहुत सक्रिय नहीं है मगर किसी जमाने में इस संगठन ने स्मिता पाटील, श्रीराम लागू, नीलू फुले, सदाशिव अमरापूरकर जैसे दिग्गज फिल्म कलाकार दिए. वह कहती हैं कांग्रेस से उसकी विचारधारा मिलने के कारण वह कांग्रेस में शामिल हुईं.
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने उस चुनाव क्षेत्र को क्यों चुना जो भाजपा का अभेद्य दुर्ग माना जाता है. उसने जवाब दिया- यह किसने तय किया कि यह किसी खास दल का गढ है? पांच साल के लिए भाजपा वहां जीती उससे पहले दस साल तक कांग्रेस वहां से जीतती रही. बुनियादी तौर पर किसी का गढ़ है इस संकल्पना पर ही मेरा विश्वास नहीं है. मुझे इस बात का अहसास है कि मैं कला के क्षेत्र से एकदम अलग दुनिया में आ गई हूं. मेरे विरोधी भी मेरे खिलाफ पूरी ताकत से उतरेंगे. यह हमेशा ही चुनौती रहेगी . दूसरी बात यह है कि जिन लोगों को ये गलतफहमी है कि मैं केवल सजने, संवरनेवाली गुड़िया हूं जिसे हाथ हिलाने और नमस्ते करने के लिए लाया गया है उनकी गलत फहमी मैं दूर करना चाहती हूं. फिर कुछ बातें तो केवल काम से ही सिद्ध होती हैं.
उर्मिला की इस बात में दम है कि यह चुनाव क्षेत्र कभी कांग्रेस का भी गढ़ था. 2004 में कांग्रेस के उम्मीदवार अभिनेता गोविंदा ने राम नाईक जैसे दिग्गज को हराया था मगर अब हालात बदल गए हैं. तब गोविंदा कि मदद हितेंद्र ठाकुर ने की थी मगर मतदान क्षेत्रों का नवीनीकरण होने से वे इस चुनाव क्षेत्र का हिस्सा नहीं रहे. फिर गोविंदा विरार में पला बढ़ा था वह विरार का छोरा कहलाता था जिसका लाभ उसे मिला. यूं तो इस चुनाव क्षेत्र में दलितों मुस्लिमों और ईसाइयों के बहुत से पॉकेटस् हैं जिनका लाभ उसे मिलेगा. मगर इस इलाके में जनाधार मराठी भाषी हैं मगर उसका लाभ उर्मिला को मराठी होने के बावजूद नहीं मिल पाएगा क्योंकि उसने एक मुस्लिम व्यापारी से शादी की है.
कांग्रेस का गणित यह है कि कांग्रेस के उम्मीदवार संजय निरुपम को 2009 में ढाई लाख और 2009 में दो लाख 17 हजार वोट मिले थे इसमें यह वोट तो उर्मिला को मिलेंगे ही. मगर तब से अबतक कांग्रेस की ताकत लगातार घटती ही जा रही हैं. बचे हुए दो कांग्रेसी विधायक शिवसेना और भाजपा में जा चुके हैं. ऐसे में उर्मिला के साथ काम करने के लिए बड़े नेता नहीं हैं. उर्मिला को अपने बलबूते पर ही काम करना पड़ेगा. तभी वह अच्छी टक्कर दे पाएगी.
गोपाल शेट्टी कह रहे हैं कि संजय निरुपम ने बलि का बकरा बनने से इंकार कर दिया तो अब कांग्रेस ने उर्मिला बलि का बकरा बना दिया है.
उर्मिला कहती है कि उसके सामने बचपन से ही एक व्यक्ति और महिला के रूप में इंदिरा गांधी ही आदर्श रही है. उनका व्यक्तित्व अत्यंत दृढ़ था. लोग अक्सर सोचते हैं कि महिलाओं को दबाना आसान होता है मगर अगर महिला दृढ़ और स्वतंत्र विचारों की हो जो उसको दबाना मुश्किल होता है.
इसलिए ही मैं इंदिरा गांधी को आदर्श मानती हूं.
पिछले कुछ समय उर्मिला की शादी को लेकर भी सोशल मीडिया पर चर्चा है इस तरह के कई पोस्ट इन दिनों खूब शेयर हो रहे हैं जिनमें दावा किया गया है कि उर्मिला मातोंडकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की भतीजी हैं जो बिज़नसमैन और मॉडल रहे मोहसिन अख़्तर से शादी कर फ़रज़ाना ख़ान, यानी मुस्लिम हो गई है. इस बारे में उर्मिला कहती है -मैं किसी मुस्लिम से शादी करनेवाली पहली महिला नहीं हूं. मेरे नाम के कारण होनेवाली आलोचना बदले और द्वेश की राजनीति से प्रेरित है. हम सभी इसके खिलाफ नहीं खड़े हुए तो देर हो जाएगी. मैंने अपना धर्म नहीं बदला है. मेरे ससुराल के किसी ने भी मुझे धर्म बदलने को नहीं कहा है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि सर्व धर्म सहिष्णुता हमारे देश की बुनियाद है.
वैसे यह बता दें कि उर्मिला अपने परिवार में अंतर धार्मिक विवाह करने वाली दूसरी पीढी है. उनकी मां मुस्लिम हैं.
2009 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ लाख वोट पानेवाले मनसे के उम्मीदवार शिरीष पारकर कहते हैं कि मैंने चुनाव लड़ा था मगर मुझे यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि इस क्षेत्र में भाजपा और शिवसेना का संगठन बहुत मजबूत है इसलिए ऐसे हालात नहीं है कि उर्मिला पराजय को टाल सकें. उर्मिला ने पहली प्रेस कांफ्रेस में यह कहा है कि वह चुनाव के बाद भी राजनीति में रहेगी. यह इस बात की स्वीकृति है वह चुनाव नहीं जीत पाएंगी.
हालांकि चुनाव की महिमा अपरंपार है .उसके बारे में कहा जाता है -कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए ,ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए. हो सकता है ऐसा ही हो और उर्मिला मातोंडकर दिग्गजहंता कहलाएं. यह चुनाव बताएगा कि संगठन की ताकत बड़ी होती है या फिल्मी ग्लैमर की लोकप्रियता .
(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं। पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं )