बेंगलुरु : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कित्तूर-कर्नाटक (उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र) के छह जिलों में कुल 50 सीटों में से 16 सीटों पर जीत दर्ज की है, जहां लिंगायत प्रमुख समुदाय है और महत्वपूर्ण सीटों पर उसका दबदबा है.
कांग्रेस ने इस क्षेत्र में 33 सीटें जीतीं, जो 2018 के विधानसभा चुनाव में 17 सीटों की तुलना में बड़ी बढ़त है.
1990 में राजीव गांधी द्वारा मुख्यमंत्री के तौर पर वीरेंद्र पाटिल को अचानक हटाने के बाद से, कर्नाटक में लिंगायतों ने बड़े पैमाने पर भाजपा का समर्थन किया था. बीएस येदियुरप्पा के समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरने बाद यह आधार और मजबूत हुआ था.
कित्तूर-कर्नाटक क्षेत्र, जहां लिंगायत मतदान पैटर्न के मामले में मुखर रहते हैं, जिसमें छह जिले, गदग, बेलगावी, हावेरी, धारवाड़, विजयपुरा और बागलकोट शामिल हैं. इन जिलों की 50 सीटों में से, भाजपा ने 2018 में 30 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2013 में 13 सीटों पर.
हालांकि, उत्तर कन्नड़ के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को भी कित्तूर-कर्नाटक का हिस्सा माना जाता है, जिले को तटीय क्षेत्र का हिस्सा के तौर पर क्लासीफाइड किया गया है.
इस बार, लिंगायत समुदाय के वर्गों के बीच गुस्सा एक प्रमुख फैक्टर था क्योंकि कई धार्मिक और समुदाय के नेताओं ने खुले तौर पर अपने लोगों से भाजपा का समर्थन नहीं करने को कहा था. कांग्रेस ने बार-बार यह आरोप लगाकर इस दरार को और चौड़ा करने की कोशिश की कि भाजपा ने लिंगायत समुदाय का ‘अपमान’ किया और उन्हें नीचा दिखाया है.
पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस का आकलन यह था कि लिंगायत, जो कि राज्य की आबादी का अनुमानित 17 प्रतिशत हैं, येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाने से नाराज होंगे. बीजेपी द्वारा तीन प्रमुख लिंगायत नेताओं- पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावदी और महादेवप्पा यादवद को टिकट देने से इनकार करने के बाद इस नैरेटिव को बल मिला. शेट्टार और सावदी बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए.
शेट्टार बीजेपी के महेश तेंगिंकई से चुनाव हार गए, जिन्होंने 95.27 फीसदी वोट प्राप्त किए. चुनाव आकंड़ों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने विरोधी के 95,064 मतों की तुलना में महज 60,775 वोट ही हासिल किए.
कांग्रेस को कित्तूर-कर्नाटक और दावणगेरे, शिवमोग्गा और चिक्कमगलुरु समेत मध्य कर्नाटक के जिलों में बढ़त बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही थी, जहां लिंगायतों की संख्या अधिक है. पार्टी कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र और 18 सीटों वाले सीमाई जिले बेलागवी में भी फायदा देख रही थी.
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आपसी कलह, ‘ब्राह्मण लॉबी’
जानकारों को कहना है कि येदियुरप्पा को हटाने से लिंगायतों के विभिन्न वर्ग में गुस्सा था, क्योंकि भाजपा के नेताओं और विधायकों ने 2019 में मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभालने के तुरंत बाद 80 वर्षीय इस नेता को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया था.
लिंगायत नेताओं ने कहा, येदियुरप्पा को हटाने को लेकर उनकी अपनी पार्टी के लोगों द्वारा लिखे एक बेनामी पत्र में, अरविंद बेलाड और पुराने सदस्य, जो कि दिल्ली आते रहते थे, ने भी नेतृत्व में बदलाव की मांग की थी.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, तेज-तर्रार विधायक और पंचमसाली आंदोलन प्रेरक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने येदियुरप्पा पर बार-बार निशाना साधा था. इससे विजयपुरा शहर के इस विधायक पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही बीजेपी के अपने सीएम के खिलाफ बोलने के लिए आलाकमान ने उनकी खिंचाई की.
इसी तरह भाजपा के मंत्री के.एस. ईश्वरप्पा जिन्होंने अप्रैल 2021 में कर्नाटक के राज्यपाल को पत्र लिखकर येदियुरप्पा और उनके बेटे बी.वाई. विजयेंद्र पर ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज (आरडीपीआर) विभाग के कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप लगाया था, पर कुछ नहीं हुआ.
इसके अलावा, लिंगायतों के कई वर्गों ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई – जो कि एक लिंगायत भी हैं- पर अपने वादे को तोड़ने और समुदाय को राज्य के पिछड़े वर्गों की सूची की 2ए श्रेणी में शामिल करने का आरोप लगाया. उनकी सरकार के फैसले को दो नई श्रेणियां (2सी और 2डी) बनाने को समुदाय या इसके नेताओं के भीतर बढ़ते असंतोष को शांत करने के एक गंभीर प्रयास के बजाय, इसे राजनीतिक स्टंट के रूप में देखा गया.
पिछले साल अप्रैल में, प्रमुख लिंगायत धार्मिक नेता डिंगलेश्वर स्वामी ने आरोप लगाया था कि मठों को भी अनुदान जारी करने के लिए राज्य सरकार को 30 प्रतिशत की रिश्वत देनी पड़ी.
शेट्टार, सावदी और महादेवप्पा यादवद समेत अन्य को टिकट देने से इनकार ने कांग्रेस पार्टी के इस नैरेटिव को और हवा दी कि भाजपा ने ‘लिंगायतों का अपमान’ किया है. कांग्रेस में शामिल होने के बाद, शेट्टार और सावदी ने खुले तौर पर आरोप लगाया कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष पार्टी के भीतर लिंगायत नेताओं को दरकिनार करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति थे.
लिंगायत नेताओं का दावा है कि येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने में भी संतोष की भूमिका थी, जिससे उस बात को बल मिला कि एक ‘ब्राह्मण लॉबी’ जिसमें वे और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी शामिल हैं, कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत की पकड़ को कमजोर करने का काम कर रही.
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