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Thursday, 21 November, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘पहले कश्मीर फाइल्स, अब द केरला स्टोरी’, उर्दू प्रेस ने कहा- फिल्मों का इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए

‘पहले कश्मीर फाइल्स, अब द केरला स्टोरी’, उर्दू प्रेस ने कहा- फिल्मों का इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: किंग चार्ल्स के राज्याभिषेक से लेकर मणिपुर में हिंसा तक, उर्दू प्रेस ने इस सप्ताह कई मुद्दों को कवर किया, लेकिन फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ और कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर हुए विवाद को प्रमुख से जगह दी गई.

5 मई को रिलीज़ हुई, फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में राज्य की तीन महिलाओं की कहानी दिखाई गई है, जिन्होंने कथित तौर पर इस्लाम कबूल किया और आईएसआईएस में शामिल होने के लिए अपने घर से चली गईं. इस फिल्म का निर्देशन सुदीप्तो सेन ने किया है और इसमें अदाह शर्मा ने मुख्य भूमिका निभाई है, जो केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन जैसे आलोचकों के लिए बड़े राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गई है, यहां तक कि इसे “प्रोपगेंडा स्टोरी” भी कहा गया है.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी को भी प्रमुखता से कवरेज दी गई है.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू के तीनों प्रमुख अखबारों— रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, इंकलाब और सियासत में सुर्खियां बटोरने वाली सभी खबरों का एक राउंडअप लेकर आया है.


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द केरला स्टोरी और मणिपुर हिंसा

‘द केरला स्टोरी’ के विवाद ने उर्दू अखबारों को गुलज़ार कर दिया था.

6 मई को सियासत ने एक संपादकीय में कहा कि ‘कश्मीर फाइल्स’ के बाद यह फिल्म लोगों को भड़का रही है और देश में सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा दे रही है. फिल्म के जरिए, तथाकथित ‘लव जिहाद’ के मुद्दे को उछालने की कोशिश की जा रही है — एक ऐसा विषय जिसे हिंदू दक्षिणपंथ अक्सर मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू महिलाओं से शादी करने और धर्मांतरण के लिए की गई कोशिशों का वर्णन करने के लिए उपयोग करते हैं.

संपादकीय ने आगे कहा, फिर भी, बार-बार अदालती फैसलों ने इस तरह की अवधारणा के अस्तित्व से इनकार किया है क्योंकि इसके लिए कोई सबूत नहीं मिले हैं.

इस बीच, सहारा ने एक संपादकीय में कहा कि तेज़ी से विकसित हो रहे केरल में हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव और शांति है, लेकिन अब, इस तरह के निराधार दावों से उस स्थिति के लिए खतरा बढ़ रहा है. संपादकीय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को सही ठहराया.

तीनों अखबारों ने मणिपुर में हुई हिंसा को भी प्रमुखता से कवर किया. समाचार पत्रों ने बताया कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में 23,000 लोगों को सुरक्षित बचाया गया और सुप्रीम कोर्ट गैर-सरकारी संगठन मणिपुर ट्राइबल फोरम की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक विशेष जांच दल द्वारा इस मुद्दे पर जांच की मांग की गई थी.


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इमरान खान की गिरफ्तारी

तीनों उर्दू अखबारों ने 10 मई को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी को भी प्रमुखता से जगह दी.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख खान को मंगलवार को तोशखाना मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

खान पर राज्य डिपॉजिटरी को प्रस्तुत किए गए तोहफो के बारे में जानकारी का खुलासा नहीं करने और यहां तक कि उन्हें अवैध रूप से बेचने का आरोप लगाया गया है.

तीनों उर्दू अखबारों ने न केवल खान की गिरफ्तारी बल्कि उसके बाद हुई हिंसा की भी खबर दी. खान के समर्थकों और पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई.

12 मई को तीनों उर्दू अखबारों ने गिरफ्तारी पर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सूचना दी. खबर के मुताबिक, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इमरान खान की गिरफ्तारी को अवैध बताया और राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो को उन्हें तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया.


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कर्नाटक चुनाव

मोदी के रोड शो से लेकर कांग्रेस की रैलियों तक, तीनों अखबारों ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार को आखिरी दिन तक कवर किया.

9 मई को सियासत ने लिखा, “राहुल प्रियंका की मेहनत सफल रही, और मोदी-शाह की जोड़ी राज्य में सांप्रदायिक अंगारे को नहीं भड़का सकी.” खबर के अनुसार, बीजेपी सरकार को राज्य में मुस्लिमों के लिए 4 फीसदी आरक्षण खत्म करने का कोई फायदा नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि शक्तिशाली लिंगायत कांग्रेस के पाले में झुक गए हैं.

खबर में कहा गया है कि जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद चुनाव प्रचार में कूदने के लिए मजबूर होना पड़ा, वहीं चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वे भी बीजेपी के डूबते जहाज को बचाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.

कर्नाटक के लोग मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की सरकार से बहुत नाराज़ हैं, जो कांग्रेस को जीतने में मदद कर सकती है, खबर में आगे कहा गया है कि भाजपा दूसरे नंबर पर आएगी और जद (एस) तीसरे नंबर पर रहेगी.

9 मई को अपने संपादकीय में इंकलाब ने लिखा कि राजनीतिक दल प्रचार पर बड़ी मात्रा में पैसा खर्च कर रहे हैं. जिस दिन राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को यह एहसास हो जाएगा कि मतदाता ऐसे कारकों से प्रभावित नहीं हैं, चुनावों पर फिजूलखर्ची की प्रथा समाप्त हो जाएगी.

इसने कहा, इसके लिए चुनाव आयोग भी लोगों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों की घटनाओं का मतलब है कि लोग चुनाव प्रहरी से निराश हो रहे हैं.

अखबारों ने यह भी बताया कि भारत के चुनाव आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नोटिस भेजकर “कर्नाटक संप्रभुता” टिप्पणी पर पार्टी के सोशल मीडिया पोस्ट को स्पष्ट करने और सुधारने के लिए कहा था, जिसका श्रेय पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को दिया गया था. हालांकि, कांग्रेस ने बाद में ट्वीट को डिलीट कर दिया और स्पष्ट किया कि सोनिया ने कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषण में कभी भी “संप्रभुता” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया.

11 मई को, तीनों अखबारों ने कर्नाटक के विधानसभा चुनावों के लिए 65.69 प्रतिशत मतदान की सूचना दी.

ग्लोबल न्यूज़

उर्दू अखबारों ने ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर एब्बे में किंग चार्ल्स तृतीय और क्वीन कंसोर्ट कैमिला के राज्याभिषेक को प्रमुखता दी.

9 मई को एक संपादकीय में, सहारा ने बताया कि रूस से अधिक तेल, हथियार और कोयला खरीदने के भारत के कृत्य का मतलब है कि मास्को ने भारतीय रुपये को 40 अरब डॉलर के बराबर जमा कर लिया है. यह ऐसे समय में आया है जब भारत की रुपये की दर गिर रही है.

संपादकीय में कहा गया है कि यह बताता है कि रूस रुपये में सौदा करने से क्यों हिचक रहा है, अगर मास्को रुपये में आगे व्यापार करने से इनकार करता है, तो भारत के लिए तेल और कोयला खरीदना मुश्किल होगा, जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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