नई दिल्ली: दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) नीत सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत है’’.
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं.
अदालत ने कहा, ‘‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए. हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो.’’
आप पार्टी ने केंद्र-दिल्ली सेवा विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए, इसे ‘‘दिल्ली सरकार और जनतंत्र की बड़ी जीत’’ बताया.
सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, ‘‘दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया. इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी. जनतंत्र की जीत हुई.’’
दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया। इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी।
जनतंत्र की जीत हुई।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) May 11, 2023
मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 साल तक दिल्ली की जनता की लड़ाई अदालत में लड़ी और आज जनता जीत गई.’’
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘दिल्ली सरकार को अफसरों का ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार है और ज़मीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस का अधिकार केंद्र के पास रहेगा.’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘दिल्ली दूसरे केंद्र-शासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां निर्वाचित सरकार है, लिहाज़ा प्रशासनिक व्यवस्था का ज़िम्मा निर्वाचित सरकार के पास रहेगा.’’
सीजेआई ने फैसला सुनाने से पहले कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना आवश्यक है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि ये मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है.
दिल्ली सरकार की ओर से क्रमश: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की पांच दिन दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली सरकार पर फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ द्वारा सुनाया गया, जिसमें जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे.
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने फैसले को लंबे संघर्ष के बाद जीत बताया.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘अरविंद केजरीवाल जी के जज्बे को नमन. दिल्ली की दो करोड़ जनता को बधाई. सत्यमेव जयते.’’
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘मोदी जी ने दिल्ली की जनता का 8 साल बर्बाद कर दिया. हर काम में रोड़ा लगाया उनकी दुर्भावनापूर्ण कार्यवाहियों का आज अंत हो गया. LG बॉस नही चुनी हुई सरकार के पास सारे अधिकार. मंत्रिमंडल का फ़ैसला LG पर बाध्यकारी.दिल्ली लाल अरविंद केजरीवाल.’’
दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने भी ट्वीट कर कहा, ‘‘सत्यमेव जयते! सालों की लड़ाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल सरकार को उसका हक़ दिलवाया है. दिल्ली की जनता के काम में अब कोई अड़ंगा नहीं लगा पाएगा. ये ऐतिहासिक निर्णय दिल्ली की जनता की जीत है. अब दिल्ली दुगनी गति से तरक़्क़ी करेगी. सबको बधाई!.’’
2014 में आम आदमी पार्टी (आप) के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रीय राजधानी के शासन में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष देखा जा रहा है.
सीजेआई ने कहा, ‘‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है.’’
अदालत ने कहा, ‘‘अधिकारी जो अपनी ड्यूटी के लिए तैनात हैं उन्हें मंत्रियों की बात सुननी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सिस्टम में बहुत बड़ी खोट है. निर्वाचित सरकार में उसी के पास प्रशासनिक व्यस्था होनी चाहिए. अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नही रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नही होती.’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘प्रशासनिक मुद्दों में केंद्र की प्रधानता संघीय व्यवस्था, प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत को खत्म कर देगी.’’
इसने आगे कहा, ‘‘उन मामलों में केंद्र सरकार की शक्ति जहां केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सीमित है कि शासन उसके द्वारा नहीं लिया जाता है.’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति उन सभी प्रविष्टियों तक फैली हुई है जिन पर उसे कानून बनाने की शक्ति है.’’
बता दें कि मई 2021 में तीन-जजों की बेंच ने केंद्र सरकार के अनुरोध पर इसे एक बड़ी पीठ को भेजने का फैसला करने के बाद मामला एक संविधान पीठ के समक्ष पेश किया गया था.
14 फरवरी, 2019 को शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की बेंच ने सेवाओं पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक विभाजित फैसला सुनाया और मामले को तीन-जजों की बेंच के पास भेज दिया था.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है, न्यायमूर्ति एके सीकरी ने हालांकि, कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र के द्वारा ही की जा सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिए मतभेद की स्थिति में केंद्र सरकार और उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा.
फरवरी 2019 के फैसले से पहले, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे. इस ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा गया था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन उपराज्यपाल की शक्तियों को यह कहते हुए कम किया था कि उनके पास “स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति” नहीं है और उन्हें निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
इसने उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र को भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित मामलों तक सीमित कर दिया था और अन्य सभी मामलों पर कहा था कि एलजी को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा.
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