न्यूयॉर्क : यूनाइटेड नेशंस में भारतीय काउंसलर, प्रतीक माथुर ने ‘वीटो के इस्तेमाल’ के सवाल को लेकर यूनाइटेड नेशंस की जनरल असेंबली को संबोधित किया.
उन्होंने कहा कि, यूएनजीए ने सर्वसम्मति से 2008 में निर्णय 62/557 के माध्यम से सहमति व्यक्त की थी कि वीटो समेत यूएनएससी में सुधार के सभी पांच पहलुओं को व्यापक तरीके बात होगी और अलग से किसी एक समूह को तवज्जो नहीं दी जाएगी.
काउंसलर माथुर ने सुरक्षा परिषद में वीटो के इस्तेमाल के मूल पहलू के संबंध में कई सारी बातें कही.
उन्होंने कहा, सभी पांच स्थायी सदस्यों ने पिछले 75 सालों में अपने संबंधित राजनीतिक उद्देश्यों के पाने के लिए वीटो का इस्तेमाल किया है.
काउंसलर माथुर ने अफ्रीकी देशों का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘इस संबंध में, मुझे बताएं कि हमारे अफ्रीकी भाई पहले ही लगातार आईजीएन में दोहराते रहे हैं कि सिद्धांत के तौर वीटो को खत्म किया जाना चाहिए. हालांकि, सामान्य न्याय के लिहाज से इसे नए स्थायी सदस्यों के लिए बढ़ाया जाना चाहिए जब तक कि यह अस्तित्व में रहता है.’
उन्होंने कहा, ‘वीटो के इस्तेमाल करने का विशेषाधिकार केवल पांच सदस्य देशों को है. जैसा कि हमारे अफ्रीकी भाइयों ने सही कहा है, यह देशों की संप्रभु समानता की अवधारणा के खिलाफ जाता है और विजेता की लूट वाली महज द्वितीय विश्व युद्ध की मानसिकता को बनाए रखता है.
काउंसलर माथुर ने कहा, ‘वोटिंग अधिकार के संदर्भ में या तो सभी देशों के साथ समान व्यवहार किया जाए या फिर नए स्थायी सदस्यों को भी वीटो दिया जाना चाहिए. नए सदस्यों के लिए वीटो के विस्तार से परिषद की प्रभावशीलता पर कोई उल्टा असर नहीं पड़ेगा.’
उन्होंने यह दावा करते हुए कहा कि ‘वीटो का इस्तेमाल राजनीतिक विचारों से प्रेरित है, नैतिक जिम्मेदारियों से नहीं’ , ‘जब तक यह मौजूद है, सदस्य देश, जो वीटो का इस्तेमाल कर सकते हैं, ऐसा करेंगे, भले ही नैतिक दबाव हो, जैसा कि हमने हाल के दिनों में देखा है.’
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ‘लिहाजा, हमें आईजीएन प्रक्रिया में, साफतौर से परिभाषित समय-सीमा के साथ, वीटो के सवाल समेत, यूएनएससी में सुधार के सभी पांच पहलुओं को व्यापक तरीके से देखने की जरूरत है. भारत किसी भी पहल का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है जो कि वास्तव में सार्थक उद्देश्य को हासिल करने और वैश्विक बहुपक्षीय संरचना की प्रमुख बातों में व्यापक सुधार करने वाला हो.’
उन्होंने यह दोहराते हुए अपने संबोधन को समाप्त किया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हमेशा भारत का अभिन्न अंग थे, हैं और रहेंगे, और किसी भी देश की गलत जानकारी, बयानबाजी और प्रचार इस तथ्य को नकार नहीं सकते.
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