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Wednesday, 16 July, 2025
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प्राथमिकी रद्द होने के बाद उत्तराखंड पुलिस का मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगाना “स्तब्ध” करने वाला : न्यायालय

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नयी दिल्ली, 19 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अदालतों द्वारा प्राथमिकी रद्द किए जाने के बावजूद उत्तराखंड पुलिस द्वारा आपराधिक मामलों में प्रकरण को बंद करने संबंधी रिपोर्ट दाखिल करने के चलन को बुधवार को चौंकाने वाला करार दिया।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने इसे “कानून के लिए अज्ञात” प्रक्रिया कहा और राज्य के मुख्य सचिव व पुलिस प्रमुख को प्रदेश के सभी पुलिस थानों को यह बताने के लिए कहा कि जिन मामलों में प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया हो वहां कोई क्लोजर रिपोर्ट दाखिल नहीं की जाएगी।

पीठ ने कहा, “हम सचमुच जानकर हैरान रह गए। जब आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी जाती है तो मामले की क्लोजर रिपोर्ट कैसे हो सकती है…हम मानते हैं कि प्राथमिकी रद्द होने पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत क्लोजर रिपोर्ट तैयार करने का कोई सवाल ही नहीं है। यह कानून के लिये अनजान प्रक्रिया है।”

शीर्ष अदालत का आदेश उत्तराखंड सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के 27 अक्टूबर, 2020 के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील पर आया था, जिसमें उसने दो पत्रकारों – उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल – के खिलाफ जुलाई 2020 में देहरादून में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया था।

राजद्रोह, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश से संबंधित भादंवि के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

भाषा प्रशांत माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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