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Saturday, 16 November, 2024
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हरियाणा का बंसीलाल, जिसने ताऊ देवीलाल को कार से नीचे उतार दिया था

एक समय ऐसा भी था जब हरियाणवी औरतों ने उन्हें भागीरथ राजा की संज्ञा देते हुए गीत गाए थे क्योंकि बंसीलाल ने हरियाणा के कोने-कोने में पानी पहुंचा दिया था.

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हरियाणा के बंसीलाल के बारे में जब अफसरों से पूछा जाता है तो वो उनके काम की बातें करते हैं. लेकिन आम जनता में इस नाम से इमरजेंसी के समय हुई नसबंदी का खौफ ही नजर आता है. नसबंदी से जुड़ा एक रोचक किस्सा है कि जब इमरजेंसी खत्म हुई और कुछ समय बीता तो बंसीलाल हरियाणा के दौरे पर निकले. एक गांव की पंचायत में बैठकर लोगों से बातचीत कर रहे थे कि एक नौजवान खड़ा हुआ और पंचायत के सामने धोती खोल दी. 

उस युवक ने बताया कि जब नसबंदी चल रही थी तब वो कुंवारा था. वह चिल्लाकर बताता रहा कि उसकी शादी नहीं हुई है लेकिन उसे पकड़कर जबरदस्ती उसकी नसबंदी कर दी गई. बंसीलाल के सामने उस खूंखार घटनाक्रम का पीड़ित सामने खड़ा था और उनसे सवाल पूछ रहा था. गौरतलब है कि नसबंदी के दौरान बंंसीलाल और संजय गांधी मुख्य विलेन थे.

इमरजेंसी और नसबंदी के दौर ने बंसीलाल के बारे में ऐसी धारणा बनाई कि कोई सोच भी नहीं सकता कि उनका कोई मानवीय पक्ष भी रहा होगा. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हरियाणवी औरतों ने उन्हें भागीरथ राजा की संज्ञा देते हुए गीत गाए थे, क्योंकि बंसीलाल ने हरियाणा के कोने-कोने में पानी पहुंचा दिया था.


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26 अगस्त 1927 को भिवानी में जन्में बंसीलाल ने जालंधर से वकालत की पढ़ाई की. उसके बाद भिवानी में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए. हिसार जिले से राजनीति अखाड़े में उतरे और कांग्रेस से जुड़ गए.

बंसीलाल ने शुरू से ही कांग्रेस पार्टी में अच्छे संबंध बना लिए थे. फलस्वरूप उमा शंकर दीक्षित, गुलजारी लाल नंदा और पंडित भगवत दयाल शर्मा ने उन्हें 1968 में हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने में मदद की. इससे पहले बंसीलाल 1962 से 1967 तक राज्य सभा के सदस्य रह चुके थे. 1967 और 1968 में हरियाणा विधानसभा के लिए चुने गए थे.

जब एक ऑफिसर ने बंसीलाल को किया बाथरूम में बंद

ये समय था बगावती विधायक पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने की साजिश रच रहे थे तब बंसीलाल सबके शक के घेरे में थे. बगावती विधायकों को लग रहा था कि बंसीलाल उनके साथ वोट नहीं डालेंगे. ऐसे में वोटिंग वाले दिन बंसीलाल को विधानसभा नहीं पहुंचने देने की प्लानिंग बनाई गई.

जिस ऑफिसर को यह काम दिया गया उसने पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा के लेखक को बताया कि उन्होंने बंसीलाल को अपने घर बुलाया. जब बंसीलाल बाथरूम गए तो उन्होंने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. उन्हें तब तक बाथरूम से बाहर नहीं आने दिया गया जब तक विधानसभा में भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई.

आगे चलकर जब बंसीलाल मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सबसे पहला काम इस ऑफिसर को सस्पेंड करने का किया था.

हरियाणा का विकास पुरुष जिसने हर गांव को रोशन कर दिया

बंसीलाल को हरियाणा का ‘विकास पुरुष’ भी कहा जाता है. हरियाणा जब बना था तब इसके कुछ हिस्से बिलकुल ही पिछड़े हुए थे. बंसीलाल के बारे में उनके साथ काम कर चुके अफसर कहते हैं कि वो महीने के 25 दिन तो हरियाणा के टूर पर रहते थे. जब तक हर प्रोजेक्ट की खुद तसल्ली नहीं कर लेते थे, आराम नहीं करते थे.

हरियाणा देश का पहला ऐसा राज्य बना जहां हर गांव घर में बिजली पहुंचाई गई. सड़कें बनीं और नहरों का जाल बिछा दिया गया. एक अखबार में छपा था कि देश के पुराने हों या नए, 21 राज्यों में सिर्फ हरियाणा ने गांधी के सपने हर गांव और हर शहर तक बिजली पहुंचाने का काम कर दिखाया है.

नहरों का जो जाल उस वक्त हरियाणा में बिछ गया था वो उस वक्त देश के किसी हिस्से में नहीं था. हालांकि भिवानी के बाद आने वाले जिले महेंद्रगढ़ में जब बंसीलाल के बारे में बातें की जाती हैं तो कहते हैं कि आदमी तो बढ़िया थे, पर म्हारे कानी कम ध्यान दियो (आदमी तो बढ़िया था मगर हमारी तरफ कम ध्यान दिया).

हरियाणा के ताऊ देवीलाल को कार से नीचे उतार दिया

चौधरी देवीलाल और बंसीलाल के एक किस्से का जिक्र करते हुए भीम एस दहिया लिखते हैं कि बंसीलाल ने चौधरी देवीलाल को हरियाणा स्टेट खादी बोर्ड का चैयरमेन बना दिया था. एक बार दोनों किसी काम से साथ दिल्ली जा रहे थे. देवीलाल बारबार बंसीलाल को किसी मसले पर सलाहें दे रहे थे. तेज मिजाज बंसीलाल इससे इतने चिढ़ गए कि कुछ समय पश्चात ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा. ड्राइवर ने रास्ते में ही गाड़ी रोक दी. बंसीलाल ने चौधरी देवीलाल को गाड़ी से उतार दिया और चले गए. हालांकि ये अलग बात है कि इमरजेंसी के बाद देवीलाल ने बंसीलाल को गिरफ्तार भी करवाया. 

उस वक्त हरियाणा में सबकी जुबान पर चढ़ गया कि बंसीलाल ने बीच रास्ते देवीलाल को गाड़ी से उतार दिया. इसके कुछ दिन बाद बंसीलाल फिर चंड़ीगढ़ से दिल्ली जा रहे थे. इस बार उनके साथ चौधरी सुलतान सिंह थे. बातोंबातों में बंसीलाल ने सुलतान सिंह से कोई सलाह मांगी. देवीलाल के किस्से से खौफ खाए सुलतान सिंह ने कहा कि वो अपनी सलाह तब देंगे जब कार किसी पेड़ की छाया में रोकी जाएगी. बंसीलाल ने पूछा कि पेड़ की छाया का सलाह से क्या मतलब तो सुलतान सिंह ने कहा कि अगर बंसीलाल ने उन्हें कार से उतार दिया तो कम से कम धूप में झुलसने से बच जाएंगे.

ये बात सुनकर बंसीलाल हंस पड़े. इसके बाद जब भी उन्हें दिल्ली आना हुआ तो वो कोशिश करते कि चौधरी सुलतान सिंह को साथ ला सकें.

वैसे बंसीलाल पर आरोप लगते रहे कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने मार्गदर्शक और दोस्तों को राजनीति से दरकिनार कर दिया. इस पर भगवत दयाल शर्मा को ये कहना पड़ गया था कि इससे बेहतर है कि वो पुजारी ही बन जाएं, कम से कम थोड़ी बहुत कमाई तो होगी.

विकास पुरुष से तानाशाह तक का सफर 

देश और राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी. हरियाणा में सरकारी तंत्र सिर्फ बंसीलाल और उनके पंसदीदा अधिकारियों की एक टीम चला रही थी. इस सिलसिले में उनपर संवैधानिक संस्थाओं का मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने के आरोप लगे. उनके सबसे करीबी थे एस. के. मिश्रा. जिन्हें हरियाणा को मॉडर्न बनाने का श्रेय दिया जाता है.

एस. के. मिश्रा हरियाणा के तीनों ही लालों (भजनलाल, देवीलाल और बंसीलाल) के साथ काम कर चुके थे. ये तीनों ही मुख्यमंत्री एस. के. मिश्रा के काम से प्रभावित थे कि आपसी प्रतिस्पर्धा के बावजूद तीनों ने एस. के. मिश्रा को अपने कार्यकाल में प्रधान सचिव बनाया.

एस. के. मिश्रा और बंसीलाल का एक मशहूर किस्सा है जिसका जिक्र कई किताबों में भी मिलता है. एक बार बंसीलाल और मिश्रा करनाल की एक नहर के पास चाय पी रहे थे.


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बंसीलाल को खयाल आया कि इस नहर के पास एक रेस्त्रां खोला जा सकता है और नहर के पानी से एक कृत्रिम झील भी बनाई जा सकती है. बंसीलाल ने ये बात मिश्रा को बताई तो मिश्रा से इसे गंभीरता से लिया और कुछ समय पश्चात इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया.

बंसीलाल की चार बेटियां- सुमित्रा, सरोज, सविता और सुनिता और दो बेटे- रणवीर और सुरेंदर थे. 1968 से 1972 के कार्यकाल में बंसीलाल ने अपने बेटे और बेटियों को सरकारी कामों में शामिल नहीं किया था लेकिन दूसरे कार्यकाल (1972-1975) में उनके बेटे चौधरी सुरेंदर सिंह ने पूरे सरकारी तंत्र को खुद की किसी संस्था की तरह चलाना शुरू कर दिया था. इस दौरान उनकी बेटी सरोज सिवाच ने भी सरकारी कामों में उनका हाथ बंटाना शुरू किया.

बंसीलाल को एक जाट लीडर के तौर पर चुना गया था लेकिन बंसीलाल ने अफसरशाही और विधानसभा में गैरजाटों को प्रमुखता दी. भीम एस दहिया इसके पीछे तर्क देते हैं कि ऐसा उन्होंने दूसरे जाट नेताओं के आगे बढ़ने से रोकने और अपनी सरकार के गिराए जाने के डर की वजह से भी किया.

अपनी चुगलियों को जानने में रखते थे विशेष रूचि

पूर्व आईएएस राम वर्मा अपनी किताब में लिखते हैं कि बंसीलाल रात के दो बजे तक जागते थे. जब तक वो अपने हर विधायक के बारे में खबर नहीं ले लेते थे तब तक वो चैन से नहीं सोते थे. गौरतलब है कि हरियाणा में वो दौरआया राम और गया रामका था.

राम वर्मा बताते हैं कि बंसीलाल की एक आदत थी. वो अपने विरोधी खेमों की हर बात पर नजर रखते थे. उनके बारे में कोई क्या कह रहा है वो जरूर पता करते थे. एक बार राम वर्मा और भगवत दयाल शर्मा चुनाव के बारे में कहीं बात कर रहे थे. भगवत दयाल ने उन्हें देवीलाल और बंसीलाल के संबंध में कुछ कहा. जब चुनाव खत्म हुए और बंसीलाल एमएलए बने तो उन्होंने राम वर्मा से पूछा कि उस दिन क्या बात हो रही थी. इस सवाल पर राम वर्मा झेंप गए. बाद में उन्हें याद आया कि उस दिन रेस्त्रां में एक वेटर भी था. इस घटना के बाद वर्मा का तबादला दिल्ली हो गया.

राम वर्मा बताते हैं कि बंसीलाल ना ही कट्टर धार्मिक थे और ना ही नास्तिक. वो एक आर्यसमाजी थे. अपने बेटे सुरेंदर की शादी में भी खुद नहीं गए बल्कि कुछ गिनेचुने लोगों को ही भेजा.

गांधी परिवार के प्रति वफादारी

बंसीलाल गांधी परिवार के प्रति पूर्णतया वफादार थे. संजय गांधी से उनकी दोस्ती मशहूर थी. संजय गांधी को हरियाणा के गुड़गांव (गुरुग्राम) में मारुति फैक्टरी के लिए 290 एकड़ जमीन दिलवाने में बंसीलाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही. उस वक्त इस जमीन का मोल 35 हजार प्रति एकड़ था लेकिन संजय को यह जमीन 10 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से दिलवाई गई. बाद में राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे को काफी उठाया भी था.

इतना ही नहीं बंसीलाल के बारे में एक और जिक्र बीके नेहरू की एक किताब में मिलता है जब उन्होंने इंदिरा गांधी को प्रेसिडेंट फॉर लाइफ बना देने की बात कही.


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इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक इमरजेंसी के दौर में जो भी बंसीलाल के खिलाफ लिख रहा था उसे धमकाया गया. ट्रिब्यून को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया. इसके पत्रकारों को पीटा गया और इनके वाहनों को हरियाणा के अंदर घुसने नहीं दिया गया. मीडिया ने सुरेंदर सिंह को संजय गांधी की तरह बताया. सुरेंदर, संजय गांधी के राइट हैंड भी कहे जाते थे. सुरेंदर सिंह ने हरियाणा ने खूब हंगामा मचाया. भाड़े पर गुंडे रखकर दुकानदारों से पैसे वसूले गए. 2005 में सुरेंदर सिंह की हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई थी.

नब्बे के दशक में भजनलाल-ओम प्रकाश चौटाला का दौर शुरू हो चुका था. जाट और गैर जाट की राजनीति शुरू हो चुकी थी. इस दौरान बंसीलाल ने भी जाति आधारित राजनीति करने की कोशिश की. इससे पहले वो विकास कार्यों को अपना मुद्दा बनाते रहे थे. कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की विचारधारा का अनुसरण करते थे.

विरासत संभाल रही बहू और पोती 

बंसीलाल दो बार राज्य सभा और तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे. 1996 में हरियाणा विकास पार्टी बना ली. इनके बेटे रणवीर महेंद्रा भी 2005 में विधायक रहे. 28 मार्च 2006 को बंसीलाल का निधन हो गया. दिंवगत सुरेंदर सिंह की पत्नी किरण चौधरी और बेटी श्रुति चौधरी ने बंसीलाल की विरासत संभाली. दोनों ही विधायक और सांसद रह चुकी हैं. दोनों बेटों के परिवारों के बीच मामला जमीन जायदाद पर आकर फंस गया है. रणवीर महेंद्रा और उनके भाई सुरेंदर सिंह की बेटी श्रुति चौधरी के बीच बंसीलाल की वसीयत को लेकर मामला चंडीगढ़ के एक सिविल कोर्ट में करीब 12 साल तक लटका रहा. 

बंसीलाल पर उनकी बेटी सरोज सिवाच और डॉक्टर रघुविंदर तंवर ने एक किताब भी लिखी है. जिसका विमोचन 2013 में तात्कालिक मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने किया था. हुड्डा ने बंसीलाल को अपना रोल मॉडल बताते हुए कहा था कि वो एक दूरदर्शी और प्रगतिशील सोच रखने वाले नेता थे.

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