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Wednesday, 20 November, 2024
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त्रिकोणीय बना यूपी का चुनाव, बीजेपी ने ली राहत की सांस

उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबले ने बीजेपी को दी नई उम्मीद, पश्चिम यूपी की कई सीटों पर समीकरण बदलने से बीजेपी देख रही है फायदा.

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लखनऊ: पिछले लोकसभा चुनाव में जीत के पीछे जिस लहर को वजह बताई जा रही थी. उसका सबसे ज्यादा असर यूपी में दिखा था. पहली बार बीजेपी 80 में 73 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वहीं यूपी से ही इस लहर को झटका भी लगा जब उपचुनाव में सपा-बसपा, आरएलडी ने मिलकर बीजेपी को पटखनी दे दी. वहीं विपक्ष को महागठबंधन की नई राह भी दिखा दी.

उपचुनाव में बीजेपी गोरखपुर सीट भी हार गई जो कि सूबे के सीएम योगी का गढ़ माना जाता रहा है. इसके बाद अखिलेश-मायावती खुलकर एक दूसरे के साथ आ गए. दोनों ने प्रेस काॅन्फ्रेंस कर शीट शेयरिंग का भी ऐलान कर दिया. टीवी चैनल्स के सर्वे दिखाने लगे की अगर कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल हो गई तो बीजेपी अधिकतर सीटों पर हार जाएगी. बीजेपी खेमे में भी चिंता बढ़ने लगी लेकिन पिछले एक महीने में यूपी की राजनीति ने फिर पलटा खाया है. जो चुनाव बीजेपी बनाम महागठबंधन दिख रहा था वो अब बीजेपी बनाम कांग्रेस बनाम महागठबंधन हो गया है. अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है. इसे थ्री काॅर्नर फाइट भी कह सकते हैं. इससे बीजेपी की जान में जान आ गई है.

यूपी में सभी दल पहले व दूसरे चरण के चुनाव की अधितकर सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं. बची हुई सीटों पर भी जल्द घोषणा हो जाएगी. अभी तक जितने भी नाम सामने आएं हैं उनसे अंदाजा लग सकता है कि पश्चिम यूपी की कई सीटों पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होगा. इनमें सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, अमरोहा अहम हैं.

सहानपुर में बदला समीकरण

सहारनपुर में कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को मजबूत बताया जा रहा था. उनको भीम आर्मी का भी समर्थन मिल सकता है. ऐसे में दलित+मुस्लिम समीकरण के लिहाज से वह बीजेपी उम्मीदवार राघव लखनपाल को सीधी टक्कर दे रहे थे. इसी बीच मायावती ने सहारनपुर से हाजी फजुलर्रहमान को टिकट दे दिया. ऐसे में यहां का मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. इमरान मसूद को 2014 में सहानपुर में चार लाख से अधिक वोट मिले थे और वह लगभग 64 हजार वोट से चुनाव हार गए थे. इसके बाद उन्होंने इस क्षेत्र में काफी मेहनत की. दलित+मुस्लिम यूनिटी पर भी काफी जोर दिया लेकिन अब बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया.

अमरोहा में मुस्लिम वोट की जंग

अमरोहा लोकसभा सीट पर बसपा ने जेडीएस से आए दानिश अली को बीजेपी उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर के मुकाबले में उतारा. सपा व आरएलडी के समर्थन से दानिश इस मुकाबले में मजबूत दिख रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी को इस सीट से टिकट दिया, पर उन्होंने अमरोहा से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. अब यहां से कांग्रेस उम्मीदवार सचिन चौधरी चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में मुस्लिम वोट बंटने के आसार दिख रहे हैं.

मेरठ में दिलचस्प मुकाबला

मेरठ लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल के मुकाबले हरेंद्र अग्रवाल को उतारा है. वह स्वतंत्रता सेनानी और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हैं. वहां के समीकरणों के अनुसार उन्हें जाट+मुस्लिम के वोट मिल जाएं तो वह राजेंद्र को कड़ी टक्कर दे दें. वहीं बसपा ने हाजी मोहम्मद याकूब को टिकट दे दिया है. ऐसे में यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है. इसी तरह अमरोहा में कांग्रेस ने बसपा से आए वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन को टिकट देकर वहां की सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है. वहीं मुरादाबाद और बदायूं में भी मुकाबला कुछ ऐसा ही दिख रहा है.

आखिर क्यों हुआ त्रिकोणीय मुकाबला

सूत्रों की मानें तो कांग्रेस अंतिम समय तक गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती थी लेकिन वह 80 में 18-20 सीट चाह रहे थे, जिसके लिए सपा-बसपा राजी नहीं थे. खासतौर से मायावती कांग्रेस को गठबंधन से दूर रखना चाहती थीं. ऐसे में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी व ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी का इंचार्ज बनाया. दोनों पार्टी को दोबारा से यूपी में खड़ा करने में जुट गए. कांग्रेस खुद को सपा-बसपा से पीछे नहीं रखना चाहती. इसी कारण कुछ सीटें छोड़कर लगभग सभी सीटों पर लड़ने का फैसला लिया. इसके बाद कांग्रेस व सपा-बसपा के बीच दूरियां पहले से अधिक बढ़ गईं.

क्या कहते हैं समीकरण

पश्चिमी यूपी जाट बहुल्य क्षेत्र माना जाता है. इसके अलावा यहां दलित व मुस्लिम वोटर्स की भी बड़ी संख्या है. भले ही कुछ लोग इस इलाके को जाट लैंड के नाम से संबोधित करते हों, लेकिन यहां राजपूत, अहीर, गूजर और मुसलमानों की भी अच्छी आबादी है. ऐसे में बीजेपी ने अपने टिकट बंटवारे में वैश्य और जाट को प्राथमिकता दी है. इसके मुकाबले में विपक्ष का दलित+मुस्लिम यूनिटी पर जोर है.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर कविराज की मानें तो जातीय समीकरणों को ध्यान रख अगर विपक्ष एकजुट होकर या आपसी समझ से इन सीटों पर लड़ता तो बीजेपी को ज्यादा कड़ी चुनौती दे सकता था. पश्चिम यूपी के राजनीति विश्लेषक व पत्रकारों का भी मानना है कि कैराना उपचुनाव ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी थी, लेकिन जिस तरह से पश्चिम की कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है उससे बीजेपी नेताओं में नई उम्मीद जग गई है. कई सीटों पर बीजेपी को इसका लाभ भी मिल सकता है.

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