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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'DGP के पद को कमजोर करने की कोशिश', J&K के अतिरिक्त सचिव ने 31 पुलिस अधिकारियों का किया स्थानांतरण

‘DGP के पद को कमजोर करने की कोशिश’, J&K के अतिरिक्त सचिव ने 31 पुलिस अधिकारियों का किया स्थानांतरण

इन नियुक्तियों का अब तक डीजीपी के पास विशेषाधिकार रहा है. एक पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी का कहना है कि यह 'पदानुक्रम में मुश्किल पैदा' करेगा क्योंकि पुलिस प्रमुख अपने कर्मियों की 'ताकत और कमजोरियों' को जानते हैं.

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (J&K) के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा 31 पुलिस अधिकारियों को स्थानांतरित करने के एक अभूतपूर्व आदेश ने इस केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन विभाग की कार्रवाई को लेकर पुलिस बल में बेचैनी पैदा कर दी है.

हुआ ये कि अपर मुख्य सचिव आर.के. गोयल के आदेश पर उपाधीक्षक रैंक के अधिकारियों का तबादला कर पदस्थापन किया गया, जबकि यह निर्णय पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) द्वारा लिया जाता है. पुलिस विभाग में अब तक ये निर्णय लेना डीजीपी का विशेषाधिकार रहा है.

7 अप्रैल को जारी आदेश के बाद, जिसे कथित तौर पर पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह से परामर्श लिए बिना ही किया गया था, कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सरकार पर ‘पुलिस प्रमुख की स्थिति को कमजोर करने’ का आरोप लगाया. खासकर विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक सूत्र के अनुसार, यह निर्णय तत्कालीन मुख्य सचिव बी.वी.आर सुब्रमण्यम द्वारा फरवरी 2020 के एक परिपत्र के आधार पर लिया गया था, जिसमें कहा गया था कि प्रथम स्तर के राजपत्रित अधिकारियों की नियुक्ति यूटी प्रशासन द्वारा की जाएगी.

हालांकि पुलिस अधिकारियों की नियुक्तियां और तबादले उसके बाद भी डीजीपी द्वारा ही किए गए थे.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘पुलिस प्रमुख जमीन पर अपने अधिकारियों की ताकत और कमजोरियों को जानते हैं. वह जानते हैं कि कौन व्यक्ति किस पद के लिए सक्षम है क्योंकि वह दैनिक आधार पर उनसे संपर्क में रहते हैं और इसलिए इन नियुक्तियों को करना हमेशा उसका विशेषाधिकार रहा है.’ 

उन्होंने कहा, ‘विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्र में, जो इतना संवेदनशील है और दशकों से आतंकवाद से जूझ रहा है, प्रशासन के अधिकारी, जिन्हें जमीन पर उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है, यह काम कैसे कर सकते हैं?’

दिप्रिंट ने अतिरिक्त सचिव आर.के. गोयल को कॉल और वॉट्सऐप मैसेज के जरिए संपर्क किया, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा. दिप्रिंट ने डीजीपी दिलबाग सिंह से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.


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‘डीजीपी के पद को झटका, निष्प्रभावी कर दिया’

जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व डीजीपी ने कहा कि यह फैसला पुलिस प्रमुख के अधिकार पर आघात है और इससे उनकी सत्ता कमजोर होगी.

उन्होंने कहा, ‘अगर एक पुलिस प्रमुख के पास अपने लोगों को चुनने का अधिकार नहीं है, तो उनसे अनुशासन और जवाबदेही को लागू करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इससे उनकी स्थिति बहुत कमजोर हो जाएगी.’

एक अन्य सेवानिवृत्त पुलिस प्रमुख के. राजेंद्रन ने कहा कि यह आदेश न केवल पुलिस में पदानुक्रम को कमजोर करेगा और मनोबल को घटाएगा, बल्कि डीजीपी के पद को भी ‘अप्रभावी’ बना देगा.

उन्होंने कहा, ‘अगर किसी गलत चीज के लिए डीजीपी को जवाबदेह ठहराया जाता है, तो उसके पास फैसले लेने का अधिकार भी होना चाहिए. हादसों के लिए सिर्फ उसे ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. अपने आदमियों को एक पुलिस प्रमुख से बेहतर कोई नहीं समझता. इन नियुक्तियों को करने से पहले प्रमुख से परामर्श कैसे नहीं किया जा सकता है?.’ राजेंद्रन ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा.

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस नियमों के तहत इन पोस्टिंग को करने का अधिकार सिर्फ डीजीपी के पास है.

राजेंद्रन ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्याओं वाला सामान्य राज्य नहीं है. यह बहुत ही संवेदनशील राज्य है और डीजीपी को सबसे आगे रहना होगा. इसलिए, उन्हें विभाग के भीतर सभी पोस्टिंग के लिए जिम्मेवार व्यक्ति होना चाहिए.’

राजेंद्रन ने आगे कहा कि आदेश ने पुलिस प्रमुख की स्थिति को अप्रभावी बना दिया है. साथ ही इसने मानक अभ्यास का उल्लंघन किया है और यह पुलिस प्रशासन में सरकार के ‘हस्तक्षेप’ को प्रोत्साहित करेगा. उन्होंने कहा, ‘यह न केवल सिस्टम को प्रभावित करेगा बल्कि पुलिस में सरकार द्वारा अनुचित हस्तक्षेप को भी बढ़ाएगा. इस आदेश को जल्द से जल्द वापस लेने की जरूरत है.’

‘एक बार किया लेकिन मुकर गया’

यह पहली बार नहीं है जब प्रशासन ने पुलिस अधिकारियों की पदस्थापना के आदेश निकाले हैं. लेकिन इसपर कम मामले देखने को ही मिलते हैं.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व पुलिस प्रमुख अशोक भान के अनुसार, यह 90 के दशक में एक बार हुआ था जब गुरबचन जगत डीजीपी थे, लेकिन तब आदेश को यह बताए जाने के बाद वापस ले लिया गया था कि यह प्रथा के खिलाफ है.

अशोक भान कहते हैं, ‘जम्मू-कश्मीर अब तीन दशकों से अधिक समय से आतंकवाद से लड़ रहा है, और पुलिस ने इस लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के हित में, जम्मू-कश्मीर के डीजीपी के पद का सम्मान किया जाना चाहिए और ये नियुक्तियां करने की शक्तियां उसके पास होनी चाहिए. वह सबसे अच्छी तरह जानते हैं कि उनके अधिकारियों को कहां तैनात किया जाना चाहिए. यह 90 के दशक में एक बार हुआ था, लेकिन तब आदेश वापस ले लिया गया था.’

एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अगर डीजीपी को अपने ही विभाग के लोगों को तैनात करने की आजादी नहीं दी जाती है, तो इससे उनमें विश्वास की कमी हो जाएगी.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘जब उनके पास उन्हें पोस्ट करने की शक्ति भी नहीं है तो उनके बल में उन पर कोई विश्वास क्यों होगा. बिना किसी अधिकार के वह किसी अनुशासन को कैसे लागू कर पाएगा? यह पूरी तरह से अनुचित है और डीजी के अधिकार को पूरी तरह से कमजोर करता है.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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