नई दिल्ली: फीडबैक के लिए सीधे छात्रों का सर्वें, प्रोग्रेस देखने के लिए सीमित अधिकारों के साथ सिंगल सुपर एडमिन और कंप्यूटर द्वारा चुने गए विशेषज्ञ– ये हैं भारत के शीर्ष मान्यता निकाय राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा पेश किए जा रहे तत्काल और नए सुधार. इसकी जानकारी दिप्रिंट को मिली है.
भूषण पटवर्धन द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया में अनियमितताओं का हवाला देते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के एक महीने से अधिक समय के बाद, NAAC, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जिसे देश में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों सहित HEIs (हाईयर एजुकेशन इनफॉर्मेंट सिस्टम) का आकलन और मान्यता देने का काम सौंपा गया है जो अब इन नए उपायों की शुरुआत कर रहा है. इसमें समस्याओं का तुरंत समाधान शामिल है.
दिप्रिंट के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे, जिन्हें 3 मार्च को पटवर्धन के स्थान पर नैक की कार्यकारी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, ने बातचीत में कहा, ‘लागू किए जा रहे बदलाव प्रक्रिया में त्वरित सुधार और इसे और अधिक पारदर्शी बनाने का एक प्रयास शामिल है. साथ ही कई बदलाव प्रक्रिया आगे भी होने हैं.’
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के पूर्व अध्यक्ष सहस्रबुद्धे ने कहा कि ये तत्काल, अल्पकालिक समाधान हैं और समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान के लिए किए जाने वाले उपायों की समीक्षा पिछले नवंबर में केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति द्वारा की जा रही है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख के. राधाकृष्णन इस समिति के अध्यक्ष हैं.
राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए शिक्षा मंत्रालय ने कहा था कि यूजीसी के अनुसार, नैक ने देश भर के 1,113 विश्वविद्यालयों में से 425 (38 प्रतिशत) और 43,796 कॉलेजों में से 9,198 (21 प्रतिशत कॉलेज) को मान्यता दी है.
4 मार्च को यूजीसी के अध्यक्ष जगदीश कुमार को लिखे अपने त्याग पत्र में, पटवर्धन ने लिखा था कि वह अपने पद से ‘स्वाभिमान और पद की पवित्रता की रक्षा’ के लिए इस्तीफा दे रहे हैं.
उन्होंने लिखा था, ‘इस पूरे विषय पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार करने के बाद, मैं यूजीसी, नैक और भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के व्यापक हित में, कार्यकारी समिति, नैक, बेंगलुरु के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे रहा हूं. मैं दोहराना चाहता हूं कि इस मामले में मेरे पास कुछ भी व्यक्तिगत नहीं था, लेकिन यह स्वाभिमान और यह ईसी तथा नैक के अध्यक्ष के पद की ‘पवित्रता की रक्षा’ के लिए किया जा रहा है.’
पटवर्धन ने यूजीसी के अध्यक्ष को लिखा था कि ‘निहित स्वार्थ, कदाचार और संबंधित व्यक्तियों के बीच सांठगांठ’ तथा ‘कुछ HEIs को संदिग्ध तरीके से ग्रेड देने के कारण’ दिया गया था.
यहां यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि पटवर्धन के इस्तीफे के कुछ दिनों बाद, NAAC ने कहा था कि ‘मान्यता और मूल्यांकन की पूरी प्रक्रिया मजबूत, पारदर्शी, आईसीटी-संचालित और स्वचालित है’.
NAAC के बयान में कहा गया था, ‘सिस्टम से छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है क्योंकि मूल्यांकन और मान्यता प्रक्रिया के सभी चरणों में एक उपयोगकर्ता के अनुकूल पोर्टल और डैशबोर्ड के माध्यम से पूरी प्रक्रिया विकेंद्रीकृत, पारदर्शी और हितधारकों के लिए सुलभ है.’
इसमें कहा गया है, ‘NAAC के भीतर कई चीजों में लगातार सुधार किया जा रहा है ताकि शैक्षणिक संस्थानों का मूल्यांकन और मान्यता पारदर्शी और पेशेवर तरीके से की जा सके.’
दिप्रिंट ने भूषण पटवर्धन से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस मामले पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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ओटीपी सत्यापन, प्लेजरिज्म टेस्ट
NAAC पांच प्रमुख मापदंडों पर HEIs का मूल्यांकन और ग्रेड करता है जिसमें पाठ्यक्रम, संकाय, बुनियादी ढांचा, अनुसंधान और वित्तीय हालात शामिल है. वर्तमान प्रणाली के तहत विश्वविद्यालयों को दो प्राथमिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके वर्गीकृत किया जाता है जिसमें मैन्युअल मूल्यांकन और डेटा सत्यापन शामिल है.
मैनुअल प्रक्रिया के तहत मूल्यांकन के लिए किसी संस्थान में विशेषज्ञों की एक टीम शामिल होती है, जबकि डेटा सत्यापन में थर्ड-पार्टी या एजेंसियां शामिल होती हैं, जो यह देखती हैं कि NAAC मान्यता प्रक्रिया के दौरान पोर्टल पर दिया या अपलोड किया गया डेटा सही है या नहीं. यह एक सॉफ्टवेयर आधारित स्वचालित प्रणाली है जो संपूर्ण NAAC मूल्यांकन को अधिक पारदर्शी बनाती है.
इसके बाद प्राप्त अंको को जोड़ा जाता है और A++ से C तक ग्रेड दिए जाते हैं. अंतिम ग्रेड D दी जाती है जिसका अर्थ होता है कि संस्थान मान्यता प्राप्त नहीं है.
सहस्रबुद्धे के अनुसार, अनियमितताओं को दूर करने के लिए NAAC ने अपनी मौजूदा प्रणाली में छह अल्पकालिक सुधार किए हैं. उन्होंने कहा, ‘NAAC के लिए स्टूडेंट सर्वे किए जाने पर पहला काम ओटीपी सत्यापन प्रणाली की शुरुआत है.’
किसी संस्थान द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में छात्रों की जरूरतों को महत्व दिया जाता है जिसमें छात्र विभिन्न मापदंडों पर एचईआई की समीक्षा करते हैं.
नए नियम के मुताबिक, संस्थानों को अब अपने उन छात्रों के फोन नंबर जमा करने होंगे, जिनसे वे फीडबैक लेते हैं. सहस्रबुद्धे ने कहा, ‘हमने सभी संस्थानों को एक सूचना भेजी है कि मोबाइल नंबर और ओटीपी सत्यापन को अनिवार्य रूप से अपलोड करने की प्रक्रिया इस साल 14 अप्रैल को शुरू की जाएगी.’
इसके अलावा, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा दिए गए डेटा और सूचनाओं का प्लेजरिज्म टेस्ट भी किया जाएगा ताकि थर्ड पार्टी की तरफ से विश्वविद्यालयों के बारे में लिखने से रोका जा सके.
इसके अलावा, डेटा को केंद्रीकृत करने के लिए, HEIs द्वारा दी गई जानकारी अब केरल राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम द्वारा विकसित ‘वन नेशन, वन डेटा’ पोर्टल के तहत एक जगह स्टोर की जाएगी.
इसके साथ ही जांच की एक नई प्रणाली भी बनाई जाएगी जिसके तहत DVV द्वारा दिए गए मूल्यांकन ग्रेड और HEIs में आने वाले विशेषज्ञ के बीच 30 प्रतिशत या उससे अधिक के बेमेल होने पर समीक्षा की जाएगी.
नए उपायों में एक बड़ी अनियमितता को संबोधित करने के उद्देश्य से एक उपाय भी शामिल है, जिसे पटवर्धन ने उजागर किया था, जो यह है कि HEIs की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञ डेटा तक पहुंच और संशोधन कर सकते हैं, जिससे उसके छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है.
सहस्रबुद्धे ने कहा, अब विशेषज्ञ केवल डेटा देख सकते हैं, लेकिन बदलाव नहीं कर सकते. सिस्टम में कोई सुपर-एडमिन नहीं हैं.
एक और बड़ा परिवर्तन अतिथि विशेषज्ञों के चयन के लेकर है. एक एल्गोरिथम का उपयोग करके लगभग 4,000 के एक पूल से पहले छह विशेषज्ञों को चुना जाएगा, जबकि बाद में इसकी संख्या को घटाकर एक कर दिया जाएगा.
इसके बारे में बताते हुए, सहस्रबुद्धे ने कहा, ‘विशेषज्ञों को संबंधित विषयों को लेकर आवश्यकता के अनुसार कंप्यूटर द्वारा रैंडमली चुना जाएगा और किसी उच्च शिक्षा संस्थान को एक अधिकारी नियुक्त करने के लिए कोई विकल्प नहीं दिया जाएगा. यदि विशेषज्ञ के बीच किसी प्रकार का टकराव या व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वो तैयार नहीं होते हैं, तो कंप्यूटर एक नए विशेषज्ञ को चुनेगा.’
अन्य परिवर्तनों में DVV एजेंसियों को काम पर रखने से पहले उनकी गहन जांच शामिल है- जो वर्तमान में एक बोली प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है.
नैक के अध्यक्ष ने कहा, ‘अब कंप्यूटर द्वारा क्रमिक रूप से एक एकल DVV आवंटन होगा और प्रक्रिया को पक्षपात मुक्त रखने के लिए किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा.’
नैक के अध्यक्ष ने कहा कि अन्य परिवर्तनों में DVV एजेंसियों को काम पर रखना शामिल है- जो वर्तमान में एक बोली प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है. यह नियम कई प्रकार की अनियमितताओं के आरोपों के बाद आया है.
यहां यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि कई परिवर्तन उन समस्याओं को दिखाता है जिन्हें पटवर्धन ने पहले उजागर किया था.
NAAC कार्यकारी समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के तुरंत बाद, पटवर्धन ने NAAC के कामकाज की एक स्वतंत्र जांच शुरू की थी. यूजीसी के सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क के निदेशक जे.पी. सिंह जोरील के नेतृत्व वाली उस समिति ने जांच के दौरान आईटी प्रणाली, परिसरों में जाने वाले विशेषज्ञों के बीच हितों का टकराव और डेटाबेस तक पूरी पहुंच के साथ ‘सुपर-एडमिन’ की उपस्थिति पाई थी.
राधाकृष्णन पैनल और दीर्घकालिक सुधार
इस बीच जैसा कि NAAC खुद कुछ अल्पकालिक पाठ्यक्रम में सुधार के लिए कई उपायों को लागू करता है. UGC ने नवंबर 2022 में निकाय की मान्यता प्रणाली को मजबूत करने के लिए के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की थी.
इस समिति में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), रायपुर के पूर्व प्रोफेसर भरत भास्कर जैसे शिक्षाविदों को शामिल किया गया था, जो अब IIM-अहमदाबाद में निदेशक हैं.
सहस्रबुद्धे ने कहा कि समिति को ‘मान्यता की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और अनियमितताओं से मुक्त बनाने के लिए दीर्घकालिक सुधार तैयार करने का काम सौंपा गया था’.
घटनाक्रम से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 2017-18 में NAAC की मान्यता में अनियमितताओं के आरोपों के आधार पर गठित समिति ने अब तक चार बैठकें की हैं और शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के साथ भी बैठक की है.
समिति द्वारा किए गए कामों पर अपनी बात रखने के लिए दिप्रिंट ने के. राधाकृष्णन से संपर्क किया लेकिन उन्होंने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि अभी कुछ भी कहना बहुत जल्दीबाजी होगी.
(संपादनः ऋषभ राज)
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