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Friday, 22 November, 2024
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भुलाए गए हीरोज की कहानियां, मातृभाषा पर जोर और गणित का फोबिया – NCF ड्राफ्ट में बच्चों के लिए क्या है

नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क ड्राफ्ट में विशेषज्ञ पैनल द्वारा दिए गए सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पैटर्न को फॉलो करते हैं जिसका उद्देश्य शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करना है.

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नई दिल्ली: एक एक्सपर्ट पैनल द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (NCF) के मसौदे में, भारत, ग्रीस और सीरिया के साहित्यिक कार्य, हिंद महासागर के व्यापार मार्ग और भुला दिए गए युद्ध नायकों की कहानियां कुछ ऐसे विषय हैं, जिन्हें छात्रों को अगले शैक्षणिक सत्र से इतिहास की किताबों में पढ़ाए जाने की संभावना है.

इसके साथ ही, गुरुवार को जारी किए गए मसौदे में छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर देते हुए गणित के डर को कम करने का भी सुझाव दिया गया है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का उद्देश्य बच्चों के समग्र विकास, मातृभाषा में सीखने और सांस्कृतिक जड़ता पर ध्यान देने के साथ शिक्षा में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना है. NCF, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक प्रमुख घटक है और इसे अंतिम रूप दिए जाने पर देश भर में स्कूल पाठ्यक्रम के लिए एक ब्लूप्रिंट बनाने का इरादा है.

लैंग्वेज लर्निंग

मसौदा नीति में भी एनईपी में सुझाए गए त्रिभाषा फार्मूले की बात कही गई है, जिसमें कहा गया है कि “घरेलू भाषा” शिक्षा का माध्यम होनी चाहिए.” बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, जब तक कि तीन में से कम से कम दो भारतीय भाषाएं होनीं चाहिए.

एनईपी की गाइडलाइन्स के मुताबिक, विशेष रूप से, जो छात्र अध्ययन कर रहे तीन भाषाओं में से एक या अधिक को बदलना चाहते हैं, वे ग्रेड 6 या 7 में ऐसा कर सकते हैं, जब तक कि वे तीन भाषाओं (साहित्य स्तर पर भारत की एक भाषा सहित) में सेकेंडरी स्कूल के अंत तक बुनियादी दक्षता प्रदर्शित करने में सक्षम हों.”

NCF के मसौदे में कहा गया है कि छात्र अपने स्कूल के वर्षों में कम से कम तीन भाषाएं सीखेंगे, जिन्हें “R1”, “R2”, और “R3” के रूप में दर्शाया गया है. “‘R1’ अक्सर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली स्थानीय भाषा है, R2 अंग्रेजी सहित कोई भी अन्य भाषा हो सकती है.


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फ्रेमवर्क के मुताबिक, R3 कोई अन्य भाषा होगी जो ‘R1’ या ‘R2’ नहीं है. राज्य या संबंधित निकायों को ‘R1’, ‘R2’, या ‘R3’ पर निर्णय लेने की आवश्यकता है.” इसमें कहा गया है कि “R1″ शिक्षा के माध्यम के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा होगी, और जिसमें साक्षरता सबसे पहले प्राप्त की जाती है. मसौदे में कहा गया है कि कोशिश यह होनी चाहिए कि, यह छात्रों की सबसे परिचित भाषा हो, जो आमतौर पर मातृभाषा/घर की भाषा होती है.

ड्राफ्ट फ्रेमवर्क में कहा गया, “भारत की भाषाई विविधता के साथ, एक कक्षा के भीतर भी, सभी छात्रों के लिए घरेलू भाषा को ‘R1’ के रूप में रखना संभव नहीं हो सकता है; ऐसी परिस्थितियों में, एक ऐसी भाषा जो छात्रों से परिचित हो, को ‘R1’ के रूप में चुना जाना चाहिए, जो अक्सर सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली स्थानीय भाषा होती है.”

गणित की शिक्षा

समिति ने कहा कि कला, खेल और भाषा के साथ विषय को जोड़कर छात्रों में “गणित के डर” को दूर किया जाना चाहिए. इस विषय को स्कूली छात्रों के लिए और अधिक रचनात्मक और सुंदर बनाया जाना चाहिए, यह कहते हुए कि यह विषय पारंपरिक रूप से “रोबोटिक” और “एल्गोरिदमिक” रहा है.

मसौदे में यह भी कहा गया है कि इस धारणा को तोड़ने के उपाय किए जाने चाहिए कि लड़कियां गणित में अच्छी नहीं होतीं.

मसौदे में कहा गया है, “खेल के माध्यम से गणित पढ़ाना उन अधिकांश छात्रों के लिए मजेदार हो सकता है जिन्हें वास्तव में गणित की अवधारणाओं को समझने में कठिनाई होती है. माप और क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) से संबंधित खेल अवधारणाओं को आसानी से पढ़ाया जा सकता है और संबंधित यूनिट कर्नवर्जन्स पर एक साथ चर्चा की जा सकती है.”

इतिहास की शिक्षा

मसौदे के अनुसार, छात्रों को विश्व और भारतीय इतिहास पढ़ाया जाएगा, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के भूले-बिसरे आंकड़ों के पाठ भी शामिल हैं.

भारत, ग्रीस और सीरिया में निर्मित प्राचीन साहित्यिक (पौराणिक और धार्मिक) कार्य, साथ ही साथ “भारत और चीन में नए धर्मों और दर्शन के उदय को कवर करना” इतिहास की किताबों का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं.

यह पाठ्यक्रम छात्रों को भारत में व्यापक कृषि पारिस्थितिकी और भारत में अर्थव्यवस्था व हिंद महासागर व्यापार नेटवर्क के साथ-साथ “सिल्क रोड” जैसे ओवरलैंड व्यापार मार्गों से भी परिचित कराएगा, यह देखने के लिए कि कैसे भारत ऐतिहासिक रूप से दुनिया के बाकी हिस्सों से गहराई से जुड़ा हुआ था.

इसके साथ ही, यह 16वीं शताब्दी से भारत में औपनिवेशिक शासन के उद्भव को भी चित्रित करेगा, जब पहली यूरोपीय संयुक्त स्टॉक ट्रेडिंग कंपनी भारत में आई थी, जिसके बाद 1947 में भारत राष्ट-राज्य का उदय हुआ.

इसमें कहा गया, “पाठ्यक्रम छात्रों को भारत के विभिन्न हिस्सों पर नियंत्रण के लिए यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के बीच संघर्ष और किसान व आदिवासी प्रतिरोध आंदोलनों सहित भारतीय प्रतिरोध के विभिन्न रूपों से परिचित कराएगा.”

आगे इसमें कहा गया, “पाठ्यक्रम का अंतिम भाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करेगा और इसमें न केवल इसके प्रसिद्ध आंकड़े शामिल होंगे बल्कि संघर्ष के कुछ कम ज्ञात आंकड़े भी शामिल होंगे.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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