नई दिल्ली : देश के कोई भी राज्य न्यायपालिका में अधीनस्थ/जिला न्यायालय स्तर पर एससी, एसटी और ओबीसी पदों के सभी तीनों कोटा नहीं पूरा करते हैं. 2022 इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) ने मंगलवार को यह जानकारी दी है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि अधीनस्थ अदालतों में केवल 13 फीसदी महिला जज हैं. IJR रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि कर्नाटक एकमात्र राज्य है जो पुलिस अधिकारियों और कांस्टेबुलरी दोनों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग पदों का कोटा लगातार पूरा कर रहा है.
हालांकि, इसमें बताया गया है कि न्यायपालिका में, अधीनस्थ/जिला अदालत के स्तर पर कोई भी राज्य इन तीनों कोटा को पूरा नहीं करते.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘केवल गुजरात और छत्तीसगढ़ एससी कोटा को पूरा करते हैं. अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड एसटी कोटा को पूरा करते हैं. केरल, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ओबीसी कोटा को पूरा करते हैं.’
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) देश में न्याय प्रदान करने के मामले में भारत में राज्यों की रैकिंग करने वाली एकमात्र संस्था है, जिसकी पहल 2019 में टाटा ट्रस्ट ने की थी और यह इसका तीसरा संस्करण है. द सेंटर ऑफ सोशल जस्टिस, कॉमन काज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव, डीएकेएसएच, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और हाउ इंडिया लाइव्स, आईजेआर के डेटा पार्टनर्स में शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी न्याय व्यवस्था में पुलिस, जेलों, न्यायपालिका और लीगल सहायता में 10 में से केवल 1 महिलाएं हैं.
इसमें कहा गया है कि, ‘पुलिस फोर्स में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी 11.75 प्रतिशत है, ऑफिसर रैंक में महिलाओं की संख्या लगातार 8 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है. हाईकोर्ट के जजों में केवल 13 प्रतिशत और अधीनस्थ कोर्ट में 35 फीसदी महिलाएं हैं. इसमें जेल स्टाफ में 13 फीसदी महिलाएं हैं. ज्यादातर राज्यों ने महिला पैनल वकीलों की हिस्सेदारी बढ़ाई है. राष्ट्रीय स्तर पर यह हिस्सेदारी 18 से 25 फीसदी बढ़ी है.’
रिपोर्ट में इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर कहा गया है, ‘लगभग 25% – चार में से एक – पुलिस थानों में एक भी सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं. लगभग 10 में से 3 पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क नहीं है.’
द आईजेआर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लगभग 30 फीसदी (391 जेलों) में अभियोग दर 150 फीसदी से ज्यादा है, और 54 फीसदी (709 जेलों) में 100 प्रतिशत से ज्यादा है. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश को छोड़कर, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों विचाराधीन मामलों की संख्या 60 प्रतिशत से अधिक है.’
रिपोर्ट में न्यायपालिका और लीगल सहायता के लिए बजट आवंटन के बारे में कहा गया है कि न्यायपालिका में राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति पर खर्च 146 रुपये है और कोई भी राज्य अपने सालाना व्यय में एक प्रतिशत से ज्यादा न्यायपालिका पर खर्च नहीं करता है.
आईजेआर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राष्ट्रीय लीगल सर्विस अथॉरिटी (एनएएलएसए) और खुद राज्य/केंद्र सरकार समेत लीगल सहायता पर राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति पर खर्च मात्र 4.57 रुपये प्रति वर्ष है. एनएएलएसए को हटा दें तो यह आंकड़ा 3.8 से नीचे चला जाता है, अगर केवल एनएएलएसए का बजट (2021-22) को देखें तो प्रति व्यक्ति खर्च महज 1.06 है.’
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