लखनऊ: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के कुलपति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रमुख सहयोगी के बेटे उन 6 उम्मीदवारों में शामिल हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विधान परिषद (एमएलसी) पदों के लिए नामित किया है.
विशेष सचिव चंद्रशेखर की ओर से सोमवार देर रात जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि यूपी एमएलसी के लिए राज्यपाल द्वारा रजनीकांत माहेश्वरी, साकेत मिश्रा, लालजी निर्मल, तारिक मंसूर, रामसूरत राजभर और हंसराज विश्वकर्मा के नाम नामित किए गए हैं.
एएमयू वी-सी तारिक मंसूर का नामांकन, जिन्हें मार्च 2022 में “दुर्लभ” एक साल का विस्तार दिया गया था, को मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने के बीजेपी की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
एक अन्य प्रमुख प्रस्तावित नाम सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी नृपेंद्र मिश्रा के बेटे साकेत मिश्रा का है, जिन्होंने 2014-2019 के बीच प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में कार्य किया.
मिश्रा को 2021 में देश का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण दिया गया था. उन्होंने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अध्यक्ष और दूरसंचार सचिव के रूप में कार्य किया है. इसके अलावा वे राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष भी हैं.
आईआईएम कलकत्ता और दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज के पूर्व छात्र साकेत एक इन्वेस्टमेंट बैंकर हैं और पूर्वांचल विकास बोर्ड के सलाहकार हैं.
2019 के चुनावों से पहले वे श्रावस्ती लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट के लिए एक संभावित उम्मीदवार थे और यहां तक कि यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि टिकट देने का फैसला “भगवान और भाजपा नेतृत्व” के पास है और वे “चुनाव लड़ेंगे जब उन्हें टिकट मिलेगा नहीं तो जनता की सेवा करेंगे”.
हालांकि, टिकट आखिरकार दद्दन मिश्रा के पास गया, जिन्हें बसपा के राम शिरोमणि वर्मा ने हराया था.
इस लिस्ट में एक मुस्लिम, एक ब्राह्मण, एक वैश्य, दो ओबीसी समुदाय से जबकि एक व्यक्ति दलित समुदाय से है.
राज्य के एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि ये नाम योगी आदित्यनाथ सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल को भेजे गए थे.
उन्होंने कहा, “नामों में से मंसूर एक मुस्लिम चेहरा है जबकि निर्मल दलित समुदाय से आते हैं. राजभर और विश्वकर्मा ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. मिश्रा एक ब्राह्मण हैं जबकि माहेश्वरी वैश्य समुदाय से हैं.”
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‘गर्व की कोई बात नहीं’
दिप्रिंट से बातचीत में एएमयू के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मंसूर को यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नेता कल्याण सिंह का करीबी माना जाता था और वे अलीगढ़ क्षेत्र से अच्छी तरह से जुड़े हैं.
अधिकारी ने बताया, “वे अलीगढ़ के एक पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने वर्षों तक बतौर शिक्षक काम किया है. उन्होंने एएमयू के जे.एन. मेडिकल कॉलेज में पढ़ाया और 1980 के दशक में कॉलेज के प्रमुख भी बने. उन्होंने एएमयू के खेल एसोसिएशन का भी प्रतिनिधित्व किया.”
हालांकि, यूनिवर्सिटी के अंदरूनी सूत्र उनके नामांकन को एक “निराशा” से देखते हैं, उनका कहना है कि एएमयू वी-सीएस ने अतीत में बहुत उच्च पदों पर कार्य किया है.
एएमयू के प्रोफेसर नदीम रेज़ावी ने दिप्रिंट से कहा, “उनका एमएलसी बनना गर्व की बात नहीं है क्योंकि एएमयू वीसी ने इस संस्थान में सेवाएं देने के बाद इससे भी उच्च पदों पर काम किया है. हमारे वी-सी में से एक भारत के राष्ट्रपति बने (डॉ जाकिर हुसैन, 1967-69) जबकि दूसरे उप-राष्ट्रपति बने (मो. हामिद अंसारी, 2007-17) लेकिन उनका एमएलसी बनना शायद एक निराशा है.”
इस बीच, अन्य प्रत्याशियों में, राजभर दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा से जुड़े हुए हैं और हाल ही में उन्हें फूलपुर-पवई विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के रमाकांत यादव के खिलाफ मैदान में उतारा गया था. हालांकि, वे चुनाव हार गए थे.
विश्ववर्मा, जिन्हें कल्याण सिंह के वफादार के रूप में जाना जाता है, वर्तमान में भाजपा के वाराणसी जिला अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे हैं.
लालजी प्रसाद निर्मल ने यूपी एससी/एसटी वित्त एवं विकास निगम के प्रमुख और भारत रत्न डॉ आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र के अध्यक्ष के पद संभाले हैं.
कासगंज क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाली माहेश्वरी ने भाजपा के ब्रज क्षेत्र के प्रमुख के रूप में कार्य किया है और इसके स्टार प्रचारकों में से एक रही हैं.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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