जयपुर: कोटा की डॉ. नीलम खंडेलवाल के भूख हड़ताल का पांचवा दिन था लेकिन फिर भी वह राजस्थान सरकार द्वारा पारित स्वास्थ्य का अधिकार (आरटीएच) विधेयक के खिलाफ अपने विरोध को जारी रखने पर अडिग थीं. उनके जैसे कई डॉक्टर 21 मार्च को पारित इस विधेयक को वापस लेने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं.
डॉ नीलम कहती हैं, ‘हम अशिक्षित लोग नहीं हैं. हम विधेयक और इसके निहितार्थों को समझते हैं. यह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नष्ट कर देगा. यहां के डॉक्टर दूसरे राज्यों में चले जाएंगे.’
40 वर्षीय डॉक्टर ने कहा कि वह अपनी भूख हड़ताल तभी खत्म करेंगी जब सरकार डॉक्टरों की मांग मान लेगी.
जब से सरकार ने सितंबर 2022 में सरकारी अस्पतालों और निजी तौर पर संचालित प्रतिष्ठानों में लोगों को मुफ्त आपातकालीन इलाज कराने का अधिकार देने वाला विधेयक पेश किया, तब से निजी अस्पतालों का विरोध शुरू हो गया है.
आपातकालीन मामलों को छोड़कर पूरे राजस्थान के निजी अस्पतालों में गुरुवार से चिकित्सा सेवाएं निलंबित हैं, जहां डॉक्टर्स अब नए ओपीडी रोगियों को भर्ती नहीं कर रहे हैं.
अपनी इस लड़ाई में डॉक्टरों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए अपने बच्चों को भी शामिल कर लिया है. एसोसिएशन ने रविवार को एक विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई थी जिसमें बच्चे ‘मेरे पिता एक डॉक्टर हैं, लुटेरा नहीं’ जैसे नारे लगाए.
डॉक्टर्स सोशल मीडिया, जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप आदि पर भावनात्मक पोस्ट के माध्यम से भी बिल का विरोध कर रहे हैं और लोगों से अपील कर रहे हैं.
4 अप्रैल को जयपुर में होने वाली महारैली में हर डॉक्टर के साथ सात से आठ लोगों के आने की उम्मीद है. एसोसिएशन के प्रतिनिधियों में से एक डॉ सुनील कुमार गार्सा ने कहा, ‘एक लाख से अधिक लोग राज्य की राजधानी में रैली करेंगे.’
डॉक्टरों का मानना है कि सरकार उनकी मांगों को मानेगी. लेकिन, राजस्थान सरकार नहीं झुकने पर अडिग है. स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे स्पष्ट करने दें: कोई रोलबैक नहीं होगा. विधेयक किसी पक्ष के विरोध के बिना पारित किया गया. हमने आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) और विपक्षी नेताओं द्वारा प्रस्तावित सभी मांगों को शामिल कर लिया है.’
उन्होंने कहा, ‘हमने किसी से कोई अधिकार नहीं छीना है. इसके बजाय हमने राजस्थान के लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार प्रदान किया है. ऐसा करने वाले हम अकेले राज्य हैं. उसमें गलत क्या है? हम विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.’
डॉक्टरों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा, विपक्ष के नेता राजेंद्र सिंह राठौर, वरिष्ठ अधिकारियों और निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों की एक स्थायी समिति बनाई थी.
समिति ने 23 जनवरी को अपनी पहली बैठक की और उसके बाद से अब तक पांच बैठक हो चुकी हैं. समिति के अध्यक्ष मीणा ने कहा, ‘हमें आईएमए डॉक्टरों से मांगों की एक सूची मिली और हमने उनके सुझाव को शामिल किया.’
महा रैली और चिकित्सा सेवाओं का निलंबन
चूंकि मार्च के अंत में जयपुर में सड़कों पर निकले डॉक्टरों पर लाठी चार्ज किया गया था, इसलिए हड़ताल ने गति पकड़ ली. उसके बाद व्यापारी मंडल और केमिस्ट यूनियनों सहित अन्य संघों ने एकजुटता के साथ डॉक्टरों का समर्थन किया था.
राठौर, जो विपक्ष के उपनेता हैं, ने विधेयक को ‘अस्पष्ट’ कहा. भाजपा नेता ने कहा, ‘विधेयक जनता के लिए नहीं है. इसे इसलिए लाया गया ताकि गहलोत सरकार अपनी खोई जमीन वापस पा सकें. इसलिए वह कभी सामाजिक सुरक्षा अधिनियम लाते हैं तो कभी किसानों के लिए ऋण राहत अधिनियम लाते हैं.’
यहां तक कि पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने गुरुवार को आंदोलनकारी डॉक्टरों से मुलाकात की और सरकार से उनकी बात सुनने का आग्रह किया. इसपर राजस्थान कांग्रेस के दोनों गुट अभी तक एकमत नहीं हो पाए हैं.
दरअसल बिल पास होने के बाद बधाई देने वाले कांग्रेस और उसके नेताओं के 22 मार्च को पोस्ट किए गए ट्वीट सहित अन्य संदेशों पर आंदोलनकारी डॉक्टरों ने कड़ी आपत्ति जताई है.
राजस्थानवासियों को बधाई 💐
आपका प्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां 'राइट टू हेल्थ' बिल पास हो गया है।
कांग्रेस सरकार राज्य के हर व्यक्ति को इलाज की गारंटी दे रही है, अब कोई भी अस्पताल इलाज से मना नहीं कर सकेगा।
इसके साथ ही इमरजेंसी में भी निजी अस्पताल Free इलाज करेंगे।
— Congress (@INCIndia) March 22, 2023
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मुक्त बाजार बनाम समाजवाद
डॉ खंडेलवाल और उनके जैसे कई लोगों का मानना है कि विधेयक लाने का सरकार का इरादा सिर्फ मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना नहीं है बल्कि चुनावी साल होने के कारण राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है.
पिछले 25 वर्षों से डॉक्टर ओमेंद्र रत्नु कहते हैं, ‘जनता के पास यह संदेश गया है कि हर निजी अस्पताल उनका इलाज मुफ्त में करेगा. लोगों को भोजन का भी अधिकार है, लेकिन क्या वे किसी पांच सितारा होटल में जाकर आपात स्थिति में मुफ्त में भोजन की मांग कर सकते हैं? नहीं, हमने अपने खून-पसीने से निजी अस्पतालों का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है.’
इन डॉक्टरों के अनुसार, सरकार की दो योजनाओं- राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना (आरजीएचएस) और चिरंजीवी योजना के लिए निजी अस्पताल पहले से ही जुड़े हुए हैं. उनका दावा है कि आगे कोई भी अतिरिक्त जिम्मेदारी निजी अस्पतालों के लिए ताबूत में आखिरी कील साबित होगी.
डॉ रत्नु ने इसे समाजवाद और मुक्त बाजार के बीच की लड़ाई बताते हुए कहा, ‘उन्होंने आरजीएचएस और चिरंजीवी के पैकेज को संशोधित नहीं किया है. हमें तीसरे के लिए साइन अप करने के लिए मजबूर क्यों होना चाहिए? एक मुक्त अर्थव्यवस्था में कीमतें मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती हैं. सरकार कीमतें तय नहीं करती है. कीमतें हमारे और मरीजों के बीच एक अनुबंध हैं.’
संशोधित विधेयक में परिवर्तन
राजस्थान सरकार ने अपनी ओर से डॉक्टरों द्वारा उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए मार्च में पेश और पारित संशोधित विधेयक में बदलाव किए हैं. दिप्रिंट के पास मूल और संशोधित दोनों विधेयकों की प्रति है.
जबकि पहले के विधेयक में आपातकालीन उपचार को लेकर नीति स्पष्ट नहीं थी, संशोधित विधेयक कहता है कि यदि रोगी सेवाओं के लिए भुगतान करने में असमर्थ हैं तो सरकार इन बिलों का भुगतान करेगी. इसी तरह, संशोधित विधेयक में रोगियों के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के अधिकार, कर्तव्य और उत्तरदायित्व शामिल किए गए हैं और इसे बाद में नियमों के माध्यम से परिभाषित किया जाएगा.
पिछले विधेयक के विपरीत, जिसमें अस्पताल के स्तर पर शिकायत निवारण प्रणाली का प्रावधान नहीं था, संशोधित विधेयक में उल्लेख किया गया है कि किसी भी शिकायत को पहले अस्पतालों द्वारा लिया जाएगा और उन्हें संबोधित करने के लिए उन्हें तीन दिन का समय मिलेगा.
यदि शिकायतकर्ता अभी भी संतुष्ट नहीं है, तो वह जिला और राज्य स्तर पर अधिकारियों से संपर्क कर सकता है. ऐसे मामलों के लिए, संशोधित विधेयक में राज्य स्तर पर दो और जिला स्तर पर एक प्राधिकरण का उल्लेख है. इसमें कहा गया है कि आईएमए के दो डॉक्टर राज्य स्तरीय प्राधिकरण का हिस्सा होंगे.
सरकार ने जोर देकर कहा कि डॉक्टरों को नए नियमों के तहत उन्हें प्रभावित करने वाले फैसलों के खिलाफ दीवानी अदालत में कानूनी सहारा लेने से रोकने वाली सबसे विवादित धारा को हटा दिया गया है.
चिंता बनी हुई है
मोटे तौर पर, संशोधित विधेयक में आंदोलनकारी डॉक्टरों ने 3(सी), (डी), (एस) और 4(एच) सहित सभी खंडों और उप खंडों को ‘आपत्तिजनक’ बताया है.
खंड 3(सी) आपात स्थिति के मामलों में तत्काल प्रतिक्रिया से संबंधित है जबकि खंड 3(डी) निजी अस्पतालों सहित सुविधाओं से मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने के लिए नागरिकों के अधिकारों से संबंधित है. खंड 3(एस) रोगियों के लिए प्राथमिक चिकित्सा और परिवहन से संबंधित है जबकि खंड 4(एच) के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों और नामित स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में किसी को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता है.
मूलत: आंदोलनकारी डॉक्टर वित्तीय नुकसान से चिंतित हैं और साथ ही उन्हें अधिकारियों के हाथों अपमान का भी डर है.
‘यूनाइटेड प्राइवेट क्लीनिक एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (UPCHAR) के एक सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘आप (सरकार) पहले ही जनता को संदेश दे चुके हैं कि आप इस विधेयक को पेश करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन निजी डॉक्टरों ने पहले ही इसका विरोध किया. हमें दोष दें, और अब रोलबैक करें. हम मरीजों के साथ अपने संबंधों का पुनर्निर्माण करेंगे.’ यूनाइटेड प्राइवेट क्लीनिक एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (UPCHAR) 1,000 से अधिक निजी अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है.
लेकिन राजस्थान सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें विश्वास है कि अगर एक-दो अस्पतालों को इसको लेकर सजा दी जाएगी तो विरोध कम हो जाएगा.
डॉ रत्नु कहते हैं, ‘यही चिंता है. यह विधेयक हमें दंडित कर रहा है. संविधान का अनुच्छेद 19 मुझे उचित साधनों के माध्यम से आजीविका कमाने का अधिकार देता है, लेकिन सरकार मुफ्त सेवा प्रदान करने की बात कह कर इससे इनकार कर रही है. हमें विनियमित करने के लिए एक उपभोक्ता अदालत, सिविल कोर्ट और राजस्थान मेडिकल काउंसिल है. आप हमें दंडित करने के लिए चौथा (विधेयक) लाए हैं?’
(संपादनः ऋषभ राज)
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