नई दिल्ली: भारत ने अफ्रीकी संघ के 42 देशों के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट बढ़ाकर करीब 14 अरब डॉलर कर दिया है और रेलवे, बंदरगाह और सड़कों जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा इन देशों की रक्षा क्षमता बढ़ाने में सहयोग के लिए फंड और बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है.
सरकारी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत को 55 सदस्य देशों वाले ‘अफ्रीकी संघ का एक सच्चा डेवलपमेंट पार्टनर बनने को लेकर कोई हिचक नहीं है’, और यह भी कि ‘भारत भागीदारी की एक ऐसी नीति और एक संयुक्त विकास रणनीति अपनाता है जो स्थानीय लोगों को लाभ पहुंचाने वाली होती है.’
सूत्रों ने बताया कि अफ्रीका को एक मजबूत रक्षा एवं सुरक्षा माहौल की जरूरत है और भारत इसके लिए क्षेत्रीय देशों के साथ साझेदारी का इच्छुक है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत क्रेडिट लाइन की पेशकश के मामले में काफी उदार रहा है, और अफ्रीकी देश इसका उपयोग रक्षा व्यय के वित्त पोषण के लिए कर सकते हैं.
यह पूछे जाने पर रक्षा क्षेत्र में अफ्रीका और भारत के बीच क्या चल रहा था, केन्याई सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीटर म्बोगो नजीरू ने दिप्रिंट को बताया, ‘सारी बातें सहयोग पर केंद्रित हैं. हमने अभी सहयोग की दिशा में शुरुआत की है और यह पता लगाने में जुटे हैं कि इसे किन-किन क्षेत्रों में आगे बढ़ाया जा सकता है.’
लेफ्टिनेंट जनरल नजीरू पिछले सप्ताह अफ्रीकी देशों के नौ अन्य सेना प्रमुखों और क्षेत्र के 31 देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ पुणे में आयोजित पहले भारत-अफ्रीका सेना प्रमुखों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे.
भारत के सेना प्रमुख जनर मनोज पांडे ने दिप्रिंट के सवाल के जवाब में कहा, ‘चर्चा बेहद फायदेमंद रही है. इससे रक्षा सहयोग को और मजबूती मिलेगी.’
पुणे में जिन कई अफ्रीकी अधिकारियों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि वे बहुत सारे रक्षा उपकरणों रुचि रखते हैं, खासकर बख्तरबंद वाहन और विशिष्ट एयर डिफेंस सिस्टम. हालांकि, कुछ इसके लिए अपने अनुकूल क्रेडिट लाइन के इच्छुक हैं.
विभिन्न सुरक्षा स्थितियों को लेकर चर्चा पर केंद्रित इस कॉन्क्लेव में प्रमुख फोकस भारत निर्मित सैन्य उपकरणों के प्रदर्शन पर रहा, जिसमें स्वदेश निर्मित अर्जुन युद्धक टैंक से लेकर टाटा समूह और कल्याणी समूह जैसी निजी कंपनियों द्वारा निर्मित विशेष बख्तरबंद वाहन, आर्टिलरी गन सहित एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम, पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर और भारत निर्मित इजराइली राइफल्स जैसे टेवर और नेगेव लाइट मशीन गन जैसे छोटे हथियार शामिल हैं.
इस मौके पर निजी कंपनी के प्रतिनिधियों ने कहा कि अफ्रीका ने उनके उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है और वे पहले से ही इन रक्षा उपकरणों की बिक्री के लिए बातचीत कर रहे हैं.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘अफ्रीका संभावनाओं से भरा एक विशाल बाजार है. भारतीय उत्पाद चीनी उत्पादों की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाले और टिकाऊ होते हैं और साथ ही पश्चिमी देशों के रक्षा उपकरणों की तुलना में काफी सस्ते भी होते हैं. सरकार (भारतीय उत्पादों के लिए) अपनी तरफ से तो पूरा जोर देगी ही, लेकिन वास्तव में मेहनत तो निजी क्षेत्र को करनी है. सरकार हमेशा मदद के लिए मौजूद रहती है.’
भारत और अफ्रीकी देशों ने पिछले महीने एक संयुक्त सैन्य अभ्यास—अफ्रीका-भारत फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज (AFINDEX-2023) का आयोजन भी किया था, जिसमें इस्तेमाल अधिकांश उपकरण मूलत: भारतीय थे, जिनमें मानव रहित बम निरोधक वाहन, भार ढोने वाले वाहन और ड्रोन शामिल थे.
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‘अफ्रीकी दोस्तों को सशक्त बनाने का लक्ष्य’
भारत पिछले कुछ वर्षों से अफ्रीका को लुभा रहा है और पहले से ही कुछ वायु रक्षा प्रणालियों, छोटे हथियारों, ड्रोन-रोधी तकनीक, फायरिंग रेंज सिमुलेटर, आदि की बिक्री के साथ महाद्वीप में अपनी पैठ बना चुका है.
2020 के बाद से, भारत हर दूसरे वर्ष डिफेंस एक्सपो के मौके पर भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन की मेजबानी भी करता आ रहा है.
पिछले हफ्ते, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पुणे में अफ्रीकी सेना प्रमुखों को संबोधित किया और रक्षा उपकरणों और प्लेटफार्मों के संदर्भ में क्षमता निर्माण को अपने अफ्रीका भागीदारों के साथ भारत के सैन्य सहयोग का एक और महत्वपूर्ण पहलू बताया.
उन्होंने उनसे अपनी सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकियों को आजमाने के लिए कहा.
उन्होंने कहा, ‘भारत हालिया वर्षों में एक प्रमुख रक्षा निर्यातक के तौर पर उभरा है. यहां एक डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम बना है, जिसमें विशाल तकनीकी जनशक्ति का भी खासा लाभ मिल रहा है. भारतीय रक्षा उद्योग आपकी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए आपके साथ काम कर सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘स्वदेशी उत्पादों के जरिये अपने अफ्रीकी दोस्तों की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से हम रक्षा निर्माण, अनुसंधान और विकास में अपनी विशेषज्ञता और ज्ञान को साझा करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं.’
भारत अपना रक्षा निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और वित्तीय वर्ष 2022-23 में पहले यह ही 15,920 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है.
मोदी सरकार ने 2020 में एयरोस्पेस, और रक्षा सामग्री और सेवाओं के क्षेत्र में अगले पांच वर्षों के लिए 35,000 करोड़ रुपये (5 बिलियन डॉलर) के निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था. यह रक्षा निर्माण में 1.75 लाख करोड़ रुपये (25 बिलियन डॉलर) के टर्नओवर का ही हिस्सा है जिसे सरकार 2025 तक हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
दूसरी ओर, चीन भी अफ्रीका के साथ अपने रक्षा सहयोग को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. बोस्टन यूनिवर्सिटी के ग्लोबल डेवलपमेंट सेंटर के मुताबिक, इस देश ने 2000 से 2020 के बीच आठ अफ्रीकी देशों के साथ सार्वजनिक रूप से लगभग 3.5 बिलियन डॉलर रक्षा खर्च वाले 27 ऋण सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं.
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