नई दिल्लीः बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने रविवार को 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस द्वारा की गई सीटों की घोषणा पर तंज कसते हुए कहा है कि वह यूपी की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने को स्वतंत्र है. हमारा गठबंधन यहां समाजवादी पार्टी के साथ है जो कि भाजपा को हराने के लिए काफी है. कांग्रेस को यूपी में सपा-बसपा के लिए 7 सीटें छोड़ने की अफवाह फैलाकर गलत प्रभाव नहीं जमाना चाहिए.
एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि उनका यूपी में ही नहीं, पूरे देश में कांग्रेस से कोई तालमेल या गठबंधन नहीं है. उनके लोग कांग्रेस के फैलाये जा रहे भ्रम में कतई न आयें. वहीं अखिलेश ने भी ट्वीट कर सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन को मजबूत बताते हुए कांग्रेस को कन्फ्यूजन न फैलाने की नसीहत दी है.
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उत्तर प्रदेश में एस॰पी॰, बी॰एस॰पी॰ और आर॰एल॰डी॰ का गठबंधन भाजपा को हराने में सक्षम है। कांग्रेस पार्टी किसी तरह का कन्फ़्यूज़न ना पैदा करे! https://t.co/ekKcIlbc50
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) March 18, 2019
यूपी जैसा सबसे बड़ा प्रदेश केंद्र की राजनीति के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहा है. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें केंद्र की राजनीति में अहम रोल निभाती रही हैं. इसलिए केंद्र में अपनी अहम भूमिका की आकांक्षा रखने वाले दलों का ध्यान यूपी पर खास तौर पर रहता है.
बीएसपी एक बार फिर साफ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आयेदिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में कतई ना आयें।
— Mayawati (@Mayawati) March 18, 2019
सपा-बसपा का उभार बना कांग्रेस बीजेपी के लिए चुनौती
सपा-बसपा का जब से उत्तर प्रदेश की राजनीति में उभार हुआ है तब से देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों भाजपा कांग्रेस के लिए यूपी की राजनीति मुश्किल बनी हुई है. इन दो दलों के उभार से कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है. गांधी परिवार का गढ़ रही यूपी की राजनीति अब सपा बसपा के इर्द-गिर्द घूम रही है. बसपा से मायावती और सपा के मुलायम सिंह जैसे मजबूत सामाजिक आधार वाले नेताओं ने कांग्रेस को यूपी की सत्ता से बेदखल कर दिया है.
1989 से ओबीसी, मुस्लिम और दलित वोटर्स कांग्रेस से छिने
कांग्रेस को यूपी में सवर्णों का मजबूत साथ हमेशा मिलता रहा है, जिसके दम पर कोई विकल्प न होने से दलित पिछड़ों का वोट स्वाभाविक तौर पर उसे मिल जाता था. यह वोटर भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ जाता रहा है, लेकिन सपा-बसपा के उभार ने इन वोटरों को अब नया विकल्प दे दिया है. यूपी की सबसे मजबूत पार्टी कांग्रेस का पतन 1989 से शुरू हुआ. इसी दौरान वीपी सिंह की सरकार ने मंडल रिपोर्ट लागू की थी, जिसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 15 सीटें मिली थी. इसके बाद सपा-बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टी का उभार हुआ. तब से पार्टी यूपी में लगातार कमजोर होती गई है. आज हालत ये हैं कि पार्टी को अपनी प्रमुख सीटों को बचाने में मशक्कत करनी पड़ रही है.
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सवर्ण वोटर्स दरकने से अब फिर दलित-पिछड़े वोटर्स से उम्मीद
मोदी सरकार के सवर्णों के 10 पर्सेंट आरक्षण की घोषणा के बाद कांग्रेस की हालत यूपी जैसे जातीय समीकरण वाले राज्य में और पतली होने का डर है. अब उसको दलित ओबीसी वोट में फिर से उम्मीद नजर आ रही है. सामाजिक आधार वाले दलित पिछड़े नेताओं को पार्टी से जोड़ने की यही असली वजह है. भाजपा की दलित महिला नेता सावित्रीबाई फुले को हाल में पार्टी में शामिल कर वह दलितों को यही संदेश देना चाहती है. पिछड़े नेताओं की अब तक अलग से कई सम्मेलन कर और पार्टी में उनकी भूमिका बढ़ाकर पिछड़े वर्ग को भी अपनी तरफ लाने के प्रयास में है. हाल में अपना दल (कृष्णा पटेल) की पार्टी से गठबंधन इसी का नतीजा है. गुजरात में हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी का साथ देकर भी वह यही संदेश देना चाहती है.
यूपी में 8 सीटों पर आज होगा नामांकन
लोकसभा चुनाव के पहले यूपी की आठ सीटों के लिए नामांकन सोमवार से होगा. अंतिम तारीख 25 मार्च है. लेकिन छुट्टी के चलते 18, 19 और 22 मार्च को पर्चा दाखिल किया जा सकेगा. मुख्य निर्वाचन आयुक्त एल वेकटेश्वर लू के अनुसार 28 मार्च तक नाम वापस लिये जा सकेंगे. उन्होंने कहा कि 26 मार्च को नामांकन पत्र जांचे जाएंगे 28 को नाम वापसी हो सकती है और 28 मार्च को दोपहर 3 बजे के बाद आयोग चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की फाइनल सूची जारी कर देगा.