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Thursday, 19 December, 2024
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लोकपाल की नई सूची में किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश या वर्तमान एससी जज को जगह नहीं

सर्च कमेटी की नामों की सूची में केवल सुझाव हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली कमेटी सूची के बाहर के सदस्यों को नियुक्त करने का भी निर्णय ले सकती है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति भारत के प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल बनाने के लिए सर्च कमेटी द्वारा चुने गए उम्मीदवारों पर विचार-विमर्श करने के लिए शुक्रवार शाम को एक बैठक करने जा रही है.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार कमेटी ने भारत के किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश के नाम की सिफारिश चयन समिति से नहीं की है. इस प्रकार, सेवानिवृत्त सीजेआई दीपक मिश्रा, जेएस खेहर और टीएस ठाकुर को खारिज कर दिया गया, जबकि सर्च कमेटी के कार्य प्रणाली से अवगत एक सूत्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी इस दौड़ में शामिल नहीं होंगे.

इसके बजाय, आठ सदस्यीय सर्च कमेटी ने लोकपाल के अध्यक्ष, न्यायिक सदस्यों और गैर-न्यायिक सदस्य जैसे पदों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों और कई पूर्व सिविल सेवकों जैसे 20 से अधिक नामों की सिफारिश की गई है.

सर्च कमेटी की नामों की सूची में केवल सुझाव हैं और पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सर्च कमेटी सूची के बाहर के सदस्यों को नियुक्त करने का भी निर्णय ले सकती है.

सूत्र ने यह भी कहा कि केवल उन उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया है जो एक या दो साल से अधिक समय तक लोकपाल पैनल में सेवा दे सकेंगे. एक अन्य सूत्र ने कहा कि वो पूर्व न्यायाधीश जिन्होंने रिटायर होने के बाद सरकारी नौकरी जॉइन कर लिया है, उनके नामों पर विचार नहीं किया गया है.

सर्च कमेटी के पैरामीटर

सितंबर 2018 में, मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई के नेतृत्व में आठ सदस्यीय सर्च कमेटी की घोषणा की. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सखा राम सिंह, पूर्व महाधिवक्ता रंजीत कुमार, भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ललित के. पंवार, गुजरात के पूर्व डीजीपी शब्बीर हुसैन, एस खंडवाला, प्रसार भारती के चेयरपर्सन सूर्य प्रकाश और पूर्व प्रकाश, इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार सर्च कमेटी में शामिल थे.

सर्च कमेटी ने उन लोगों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है जिन्हें भ्रष्टाचार-विरोधी नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, नीति-निर्माण, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून और प्रबंधन या किसी अन्य मामले से संबंधित मामलों में दक्षता हासिल हो. सर्च कमेटी की राय, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुसार, अध्यक्ष और लोकपाल के सदस्यों के चयन में उपयोगी हो सकती है.

नहीं शामिल हुए खड़गे

पीएम की अगुवाई वाली सर्च कमेटी में भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित एक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, एक प्रख्यात न्यायविद -मुकुल रोहतगी- और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे चूंकि कोई आधिकारिक लोकसभा में विपक्ष के नेता नहीं है, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, कांग्रेस के नेता हैं, लिहाजा उन्हें समिति में ‘विशेष आमंत्रित सदस्य’ के रूप में हिस्सा लेने के लिए कहा गया था. हालांकि, खड़गे ने शुक्रवार की बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है.

मोदी को लिखे एक पत्र में, खड़गे ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि 2014 के बाद से, केंद्र सरकार ने लोकपाल अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन नहीं किया है, जिससे की विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को समिति के सदस्य बनाया जा सके.

खड़गे ने कहा, ‘विशेष आमंत्रित व्यक्ति’ के पास लोकपाल के चयन की प्रक्रिया में भागीदारी का कोई अधिकार नहीं होता और मैं नहीं चाहता कि क्रिटिकल मामले में विपक्ष कोई आवाज ही नहीं उठा पाए.’

उन्होंने कहा कि विपक्ष को बाहर रख कर, प्रक्रिया को समाप्त किया जा रहा है. ‘मैं सरकार को आगाह करना चाहूंगा कि इस एकतरफा प्रक्रिया के जरिए कोई भी पद (एसआईसी) स्वीकार करने से वह इनकार करना चाहेगा.’

कार्यवाही पर नजर रखे हुए सुप्रीम कोर्ट

17 जनवरी को देश के पहले भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल की तलाश में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की खिंचाई की. इसने सर्च कमेटी को फरवरी के अंत तक नामों की सिफारिश करने का निर्देश दिया था.

7 मार्च को, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ को अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल की सर्च कमेटी ने कुछ नामों पर विचार करने के लिए कहा था. इसके बाद, पीठ ने सरकार को एक पखवाड़े के भीतर यह सूचित करने का निर्देश दिया था कि चयन समिति की बैठक कब होगी.

हालांकि, संसद ने दिसंबर 2013 में लोकपाल विधेयक पारित किया और अगले महीने इसे अधिसूचित किया, यह निष्क्रिय रहा क्योंकि संसद द्वारा परिभाषित कोई विपक्ष का नेता नहीं था. हालांकि, 27 अप्रैल 2017 को, सुप्रीम कोर्ट ने पारदर्शिता के लिए मार्ग प्रशस्त किया, क्योंकि यह देखा गया कि लोकपाल अपने वर्तमान अवतार में ‘कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा’ था. इसने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि कोई आधिकारिक विपक्ष का नेता नहीं था, और लोकपाल समिति को प्रख्यात न्यायवादी नियुक्त करने का निर्देश दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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