नई दिल्ली: सामरिक और कूटनीतिक मामलों के जानकारों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने से रोकने की चीन की कार्रवाई के प्रत्युत्तर में भारत के पास कई रोचक कदम उठाने के विकल्प हैं, इनमें 5जी की दौड़ में आगे रहने के लिए प्रयासरत चीनी दूरसंचार कंपनियों को भारत के विशाल बाज़ार में नहीं आने देने, और चीन के ‘विद्रोही’ प्रांत से संबंध बढ़ाने के कदम शामिल हैं.
पूर्व खुफिया अधिकारी और चीन संबंधी मामलों के विशेषज्ञ जयदेव रानाडे ने दिप्रिंट से कहा कि हमारे यहां अगली पीढ़ी के तेज़ इंटरनेट नेटवर्क की 5जी प्रौद्योगिकी के सूत्रपात संबंधी चीन के किसी भी प्रस्ताव को भारत को तुरंत खारिज करना चाहिए.
यह भी पढ़ें: भाजपा सत्ता में काबिज होगी या नहीं, पांच राज्य तय करेंगे दशा और दिशा
पिछले महीने चीन की शीर्ष दूरसंचार कंपनी हुवावे ने कहा था कि 5जी तकनीक के लिए चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार भारत होगा, जहां 2020 तक इसे आरंभ किए जाने की संभावना है.
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा, ‘हमें अपने रुख को सख़्त करना होगा. हम चीन के प्रति इतना नरम बने नहीं रह सकते. हम अपने बाज़ारों को उनके लिए हमेशा खुला नहीं छोड़ सकते.’
रानाडे की ये राय भी है कि भारत ‘एक चीन’ की नीति पर कायम रहने – भारत ताइवान के साथ औपचारिक संबंध नहीं रखता, जो कि खुद को स्वतंत्र घोषित करने के बावजूद चीन के लिए उसका विद्रोही प्रांत भर है – के साथ ही ताइवान से निवेश आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण पहल कर सकता है, और ताइवानी प्रौद्योगिकी के लिए अपने बाज़ारों को खोल सकता है.
एक भारतीय अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि मोदी सरकार पर भारी घरेलू दबाव है कि अज़हर को सुरक्षा परिषद की 1267 आइसिस और अलक़ायदा प्रतिबंध समिति की सूची – जिसमें इन दोनों संगठनों से जुड़े लोगों और प्रतिष्ठानों के नाम रखे जाते हैं और उनके खिलाफ कठोर प्रतिबंध लगाए जाते हैं – से बाहर रखने के प्रयासों के लिए कैसे वह चीन को ‘दंडित’ करे.
यह भी पढ़ें: आतंकवाद के खिलाफ यूएन ने प्रस्ताव पेश किया, चीन पर रहेगी नज़र
इसी सप्ताह, चीन ने सुरक्षा परिषद के उसके जैसे ही स्थाई सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के एक प्रस्ताव पर ‘तकनीकी अवरोध’ लगा दिया, जिसमें कि समिति द्वारा अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी के रूप में चिन्हित करने की मांग की गई थी. सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकवादी घोषित होने के बाद जैश सरगना की यात्राओं और उसे हथियार बेचे जाने पर रोक लगाई जा सकेगी और उसकी परिसंपत्तियों को जब्त किया जा सकेगा.
सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पुलवामा आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में पेश किया गया था. गत माह हुए उक्त आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत हो गई थी. पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद ने, जो कि समिति द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित है, हमले की ज़िम्मेदारी कबूल की थी. पुलवामा आतंकी हमला श्रीनगर में विधानसभा पर 2001 में हुए आतंकी हमले, जिसमें 39 लोगों की मौत हुई थी, के बाद जम्मू कश्मीर में हुए सबसे गंभीर आतंकी हमलों में से माना जाता है.
सुरक्षा परिषद में चीन द्वारा लगाया गया तकनीकी अड़ंगा छह महीने तक प्रभावी रहेगा, जिसके बाद उसे तीन और महीनों के लिए बढ़ाया जा सकेगा. यदि चीन ने इन नौ महीनों की अवधि में इस बारे में कुछ नहीं किया तो तकनीकी आधार पर लगाया गया अवरोध स्वत: ही औपचारिक रोक में बदल जाएगा.
ये चौथा मौका है जब पाकिस्तान के प्रमुख सहयोगी राष्ट्र चीन ने अज़हर को सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची में डलवाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को नाकाम किया है.
दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज़ स्टडीज़ के निदेशक अशोक के. कांठा कहते हैं, ‘अज़हर को आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध किए जाने के खिलाफ तकनीकी आधार पर लगाया गया चीनी अवरोध पाकिस्तान के लिए चीन की गहरी सामरिक प्रतिबद्धता के प्रति हमें आगाह करता है, जो कि चीन से हमारे संबंधों को जटिल करता है.’
यह भी पढ़ें: तो क्या चीन अजहर मसूद से डरा हुआ है, इसीलिए बचा रहा है
चीन में भारत का राजदूत रह चुके कांठा ने आगे कहा, ‘इससे वुहान में दोनों देशों के बीच हुई सहमति की सीमाओं की असलियत भी ज़ाहिर होती है.’ उनका संदर्भ पिछले साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुए पहले अनौपचारिक शिखर सम्मेलन से था.
कांठा के अनुसार, ‘भारत-चीन संबंधों को लेकर ढांचागत चुनौतियों मौजूद हैं जिन्हें दूर करने की ज़रूरत है और उन्हें अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए… सीमा संबंधी मुद्दों को भी अच्छे से संभाला जाना चाहिए, भले ही उनका निकट भविष्य में समाधान संभव नहीं हो.’
‘नई दिल्ली की निराशा’
सुरक्षा परिषद में चीन के अड़ंगा लगाने के बाद जारी विदेश मंत्रालय के बयान में इस कदम पर ‘निराशा’ जताई गई, हालांकि बयान में इसके लिए चीन का सीधे उल्लेख तक नहीं किया गया. ऐसा पहली बार हुआ है कि इस तरह के बयान में भारत ने चीन का नाम नहीं लिया हो.
सुरक्षा परिषद के घटनाक्रम के बाद चीन से प्रतिशोध लेने की मांग उठने लगी है और ट्विट्टर पर #BoycottChineseGoods, #Chinasupportsterrorism और #ChinabacksMasood जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं.
इसने एक ज्वलंत राजनीतिक मुद्दे का भी रूप ले लिया है, और विपक्ष का आरोप है कि चीनी फैसले से आतंकवाद के खिलाफ़ सख़्त रवैया अपनाने में मोदी सरकार की नाकामी ज़ाहिर होती है.
हालांकि, विदेश मंत्री वीके सिंह ने आलोचकों को आड़े हाथों लेते हुए बुधवार को अपने एक ट्वीट में भाजपा सरकार की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कटाक्ष किया.
Is China’s stance on Mazood Azhar a reflection of the soft position that some leaders & political parties have taken?
Blocking us for the 4th time at the UN, China is not setting the right example for the global fight against terrorism.
— Vijay Kumar Singh (@Gen_VKSingh) March 14, 2019
‘क्या मसूद अज़हर पर चीन का रवैया कुछ नेताओं और राजनीतिक दलों के नरम रुख को प्रतिबिंबित करता है?
संयुक्तराष्ट्र में हमारे प्रयासों को चौथी बार रोक कर चीन आतंकवाद के खिलाफ़ वैश्विक लड़ाई के लिए सही उदाहरण नहीं पेश कर रहा है.’
इस बीच, चीन ने गुरुवार को कहा कि सुरक्षा परिषद में फैसले पर उसने इसलिए अवरोध लगाया है ताकि इस मामले के सबको स्वीकार्य ‘टिकाऊ समाधान’ ढूंढने के लिए पर्याप्त समय मिल सके.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)