नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में इस बार ‘गोबर इकोनॉमी’ बनाम ‘घर वापसी’ का मुकाबला है. जैसा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है और इसका वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कांग्रेस सरकार के समर्थन को कमजोर करने के लिए दोतरफा जोर दे रहा है. संघ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘हिंदू समर्थक’ छवि को ‘आंखों में धूल झोंकने वाला’ बताते हुए राज्य की चुनावी रूप से महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी को ‘हिंदुत्व’ की ओर खींचने के प्रयासों को लेकर आगे बढ़ा रहा है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा की 91 सीटों में से 29 सीटें आदिवासी बहुल क्षेत्रों से हैं और यह अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इनमें से 26 सीटें हार गई थी.
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई भाजपा शासित राज्यों के विपरीत- जिन राज्यों ने ‘लव जिहाद’ और ‘हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण’ के खतरे को देखते हुए धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किए हैं- छत्तीसगढ़ में भी धर्मांतरण (ईसाई धर्म में परिवर्तित आदिवासी) और घर वापसी (हिंदू धर्म में ‘पुनर्परिवर्तन’) जैसे शब्द प्रचलित हैं. जैसा कि दिप्रिंट ने पहले भी बताया था.
दिप्रिंट ने पाया था कि आरएसएस, उसके सहयोगी संगठन और चर्च के बीच सुलगता तनाव आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से दिखता है. हिंदुत्व समूहों ने चर्च और मिशनरियों पर आदिवासियों की खराब जीवन स्थितियों का फायदा उठाने उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का लालच देने का आरोप लगाया. जबकि चर्च ने कहा कि किसी को भी उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों का उपयोग करने के लिए ‘धर्म परिवर्तन’ के बारे में नहीं कहा गया. चर्च के शीर्ष लोगों ने आरोप लगाया कि घर वापसी ‘संवैधानिक भी नहीं है’.
संगठन के सूत्रों ने कहा कि अब, आरएसएस ने अपने धर्मांतरण विरोधी अभियानों और घर वापसी कार्यक्रमों के साथ-साथ सामुदायिक विकास और आर्थिक पहलों को तेज कर दिया है, ताकि आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए ‘आदिवासियों को फिर से अपने पाले में लाया जा सके’.
सूत्रों के मुताबिक, संगठन ने इस साल छत्तीसगढ़ में 70 प्रचारकों (वरिष्ठ पदाधिकारियों) और 200 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया है. उन्होंने कहा कि संगठन घर वापसी अभियान के तहत राज्य के जिलों में धर्मांतरण विरोधी रैलियों का आयोजन भी कर रहा है.
राज्य में आरएसएस का एक काम यह भी है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘हिंदू समर्थक’ छवि को कम करना.
जबकि आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बघेल के ‘हिंदू समर्थक’ रुख को ‘चश्मा’ और चुनाव जीतने के लिए ‘नरम हिंदुत्व’ का मुद्दा बताया है. सूत्रों के मुताबिक संगठन गाय-गोबर से जुड़े आर्थिक मॉडल जैसी नीतियों को ‘घोटाले’ के रूप में खारिज करने के लिए संघर्ष कर रहा है.
इस महीने की शुरुआत में, आरएसएस की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक में छत्तीसगढ़ के 15 प्रचारक शामिल हुए थे. सूत्रों ने कहा कि राज्य में धर्मांतरण के मुद्दे पर चर्चा हुई.
आरएसएस की केंद्रीय कार्यकारी समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘छत्तीसगढ़ में घर वापसी कार्यक्रमों का बघेल सरकार पर प्रभाव है. मुख्यमंत्री हिंदू वोट पाने के लिए नरम हिंदुत्व का अभ्यास करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वह यह भी जानते हैं कि इस चुनाव में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है.’
आरएसएस नेता ने आरोप लगाया, ‘उनकी (बघेल की) योजनाएं सिर्फ एक बहाना है. लोगों ने पिछले पांच वर्षों में सभी जिलों में हिंसा और खराब आर्थिक स्थिति देखी है.’
2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी भाजपा ने केवल 15 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 68 सीटें मिली थी. आगामी चुनाव विपक्षी पार्टी के लिए एक बड़ा दांव हो सकता है.
यह भी पढ़ें: राहुल के लिए फिर नई सीट? 2024 में वायनाड की जगह कन्याकुमारी से उतारने की संभावनाएं टटोल रही कांग्रेस
बघेल का हिंदुओं को अपने पाले में लाने की कोशिश
पिछले साल, बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने घोषणा की थी कि वह जून 2023 तक पूरे छत्तीसगढ़ में भगवान राम की आठ मूर्तियों का निर्माण करेगी.
सरकार ‘राम वन गमन पर्यटन सर्किट’ पर भी काम कर रही है. इसके तहत महाकाव्य रामायण में उल्लिखित वनवास (निर्वासन) के दौरान छत्तीसगढ़ में भगवान राम द्वारा इस्तेमाल किए गए मार्ग का पता लगाया जाएगा.
पिछले साल सितंबर में राज्य में आरएसएस की एक बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को रायपुर के पास माता कौशल्या मंदिर जाने के लिए आमंत्रित किया था, जो भगवान राम की मां को समर्पित है.
बघेल सरकार ने गोधन न्याय योजना भी पेश की- जो अब राज्य का मुख्य आर्थिक मॉडल है. यह 2020 में गाय के गोबर की खरीद और जैविक खाद बनाने के लिए एक योजना के रूप में शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य राज्य में रासायनिक उर्वरकों की कमी को दूर करते हुए किसानों को आय सहायता प्रदान करना था.
गाय के गोबर की खरीद और खाद बनाने की योजना ने गौठानों की स्थापना की, जहां मवेशियों को दिन भर रखा जा सकता था और उनकी देखभाल की जा सकती थी. इनमें धीरे-धीरे वर्मीकम्पोस्ट के गड्ढे बनने लगे. समय के साथ गौठान बदल रहे हैं, जिसे राज्य सरकार ग्रामीण औद्योगिक पार्क कहती है. साथ ही इन गौठानों में कुटीर उद्योगों के लिए भी सरकार ने कुछ प्रावधान किए हैं जैसे साबुन और चाय से जुड़े छोटे उद्योग, जहां कारीगर साबुन और चाय जैसे खुदरा उत्पाद तैयार करेंगे जो ‘बाजार के साथ प्रतिस्पर्धा’ कर सकते हैं.
साड़ियों से लेकर धातु की मूर्तियों तक, भोजन की खुराक और जीवन शैली के उत्पादों तक, सरकार के पास इन कुटीर उद्योगों का उत्पादन करने के लिए बड़ी योजनाएं हैं. कई उत्पादों का गाय के गोबर से कोई संबंध नहीं है, सिवाय इसके कि वे गौठानों में बनाए जाते हैं.
बघेल ने इस महीने एक साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया था, ‘वे (भाजपा) सिर्फ गाय के बारे में बात करते हैं, लेकिन हमने गायों को अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया है.’
उन्होंने कहा था, ‘आज गाय पालना आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है. इसलिए हमारी सरकार ने गोबर खरीदने का निर्णय लिया. बढ़ती आबादी के कारण गांवों में गौशालाएं गायब हो रही हैं. लोग उसपर अवैध रूप से कब्जा कर रहे हैं और घर बना रहे हैं. हमने 10,000 पंचायतों में 1,50,000 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर गौठानों में बदल दिया, जहां से गाय का गोबर खरीदा जाता था. हम वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए गाय के गोबर का उपयोग कर रहे हैं. हमने 100 लाख क्विंटल गोबर की खरीद की, और 20 लाख क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट बनाया.’
आरएसएस और बीजेपी का पुशबैक
हालांकि, आरएसएस-बीजेपी गठबंधन ने बघेल सरकार की योजना को ‘घोटाला’ कहकर खारिज कर दिया.
वरिष्ठ नेता और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा, ‘हम लोगों को यह बताने के लिए एक अभियान चला रहे हैं कि बघेल ने सभी झूठे परिसर कैसे बनाए. वास्तव में, गौठान योजना एक घोटाला है. पिछले तीन महीनों में बिलासपुर क्षेत्र और उसके आसपास कम से कम 56 गायों की मौत हो गई है.’
विष्णुदेव साय ने कहा, ‘बस्तर में हिंसा बढ़ गई है, हमारे नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है और उनके इलाके में ही उनकी हत्या की जा रही है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बघेल की सरकार ने धर्मांतरण को बढ़ावा दिया.’
साय पिछले महीने छत्तीसगढ़ में कथित रूप से माओवादियों द्वारा तीन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का जिक्र कर रहे थे. इन हमलों के मद्देनजर, भाजपा ने कानून-व्यवस्था की स्थिति और पार्टी कार्यकर्ताओं की ‘लक्षित हत्याओं’ को लेकर राज्य भर में विरोध प्रदर्शन किया था, और राज्य के भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले विपक्ष को चुप कराने के लिए माओवादियों का सहयोग किया. हालांकि कांग्रेस ने इन आरोपों को चुनाव से पहले बदनाम करने की खारिज बता कर खारिज दिया था.
हालांकि दिप्रिंट द्वारा किए गए डाटा विश्लेषण से पता चलता है कि माओवादियों द्वारा की गई ‘राजनीतिक हत्याएं’ राज्य में नई बात नहीं हैं.
इस बीच, आरएसएस ने राज्य में आदिवासियों के लिए संगठन द्वारा शुरू किए गए कल्याणकारी योजनाओं की ओर इशारा किया.
छत्तीसगढ़ के एक प्रचारक ने 29 आदिवासी बहुल जिलों के गांवों में ‘आजीविका के अवसर पैदा करने’ के लिए संघ द्वारा गठित टीमों के बारे में बात की.
ऊपर उद्धृत आरएसएस केंद्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य ने कहा, ‘हमने आदिवासी ग्रामीणों को सशक्त बनाने के लिए विशेष परियोजनाएं शुरू की हैं. वे अब वनवासी कल्याण आश्रम (आरएसएस से संबद्ध) से संबंधित कई गैर सरकारी संगठनों से जुड़े हुए हैं, और हम उन्हें स्वयं सहायता के निर्माण के प्रति प्रशिक्षित कर रहे हैं. आदिवासियों के बीच अस्पतालों तक पहुंच या चिकित्सा सहायता एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक रहा है, और मिशनरियों (ईसाई) ने आदिवासियों को धर्मांतरित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया.’
उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास गांवों में काम करने वाले एक डॉक्टर और पैरामेडिक्स सहित छोटी मेडिकल टीमें भी हैं. आदिवासी आबादी को यह समझने की जरूरत है कि उन्होंने अपना सनातन धर्म छोड़कर पाप किया है.’
(संपादन : ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: बीते 25 वर्षों में चुने गए विधायकों में 92% पुरुष, महिलाओं के नेतृत्व को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े