नई दिल्ली: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ स्टॅटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन -एमओएसपीआई) द्वारा पिछले सप्ताह जारी नवीनतम ‘वीमेन एंड मेन इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों दर्शाते हैं कि अधिक से अधिक संख्या में भारतीय महिलाएं एनीमिक (रक्ताल्पता या खून की कमी का शिकार) हो रही हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नॅशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे- एनएफएचएस) के आंकड़ों का हवाला देते हुए, एमओएसपीआई की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 15-49 वर्ष की सभी महिलाओं के बीच एनीमिया का प्रसार 2015-16 (एनएफएचएस-4) के 53 प्रतिशत से बढ़कर 2019-21 में हुए सर्वे (एनएफएचएस-5) में 57 प्रतिशत पाया गया है.
‘विमन एंड मेन इन इंडिया 2022’ शीर्षक से प्रकाशित यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि एनएफएचएस-5 (2019-21) में ऐसे राज्यों की संख्या जहां आधे से अधिक महिलाएं (15-49 आयु वर्ग की) एनीमिक हैं, एनएफएचएस-4 (2015-16) के 21 से बढ़कर 25 हो गई है.
हालांकि, दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण किए गए एमओएसपीआई डेटा के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसके रुझान अलग-अलग प्रकार के है, कुछ पूर्वी राज्यों में अनुपात से अधिक वृद्धि दिखाई दे रही है.
अमेरिका स्थित शैक्षणिक चिकित्सा अनुसंधान केंद्र ‘पेन मेडिसिन’ के अनुसार, ‘एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में मौजूद स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या पर्याप्त नहीं होती हैं. लाल रक्त कोशिकाएं ही शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन प्रदान करती हैं.‘ ऐसी लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या ‘हीमोग्लोबिन’ के स्तर को देखकर निर्धारित की जाती है – इसे आमतौर पर ग्राम प्रति डेसीलीटर (एक लीटर का दसवां हिस्सा या 100 मिलीलीटर) में मापा जाता है.
एमओएसपीआई रिपोर्ट में एनीमिया के लिए अपनाए गये मानदंड के अनुसार गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर से कम और गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए 12 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर है. इसे भौगोलिक ऊंचाई और धूम्रपान की आदतों के लिए समायोजित भी किया जाता है.
एनएफएचएस-5 के अनुसार, गैर-गर्भवती महिलाओं (57.2 प्रतिशत) में एनीमिया का प्रसार गर्भवती महिलाओं (52.2 प्रतिशत) की तुलना में कहीं अधिक था. मंत्रालय की रिपोर्ट में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को दी जाने वाली आयरन और फोलिक एसिड की खुराक को इस भारी अंतर के पीछे के संभावित कारणों में से एक बताया गया है.
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क्षेत्रीय विविधताएं
मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, असम के अंदर महिलाओं में एनीमिया के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है. साल 2015-16 में हुए एनएफएचएस सर्वेक्षण के चौथे दौर के दौरान, असम में लगभग 46 प्रतिशत महिलाएं (गर्भवती और गैर-गर्भवती) एनीमिक थीं, जो साल 2019-21 के सर्वे में बढ़कर लगभग 66 प्रतिशत हो गईं. इसका मतलब यह है कि असम में प्रत्येक 100 महिलाओं के लिए, सर्वेक्षण के 2015-16 के पिछले दौर की तुलना में 2019-21 वाले दौर में 20 अतिरिक्त एनीमिक महिलाएं थीं.
असम के बाद केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर का नंबर आता है, जहां महिलाओं के बीच एनीमिया का प्रसार 49 प्रतिशत से बढ़कर 66 प्रतिशत हो गया है. इसके बाद लद्दाख आता है, जहां यह आंकड़ा 78 फीसदी से बढ़कर 93 फीसदी हो गया है.
छत्तीसगढ़ ने भी 2015-16 में पाए गये 47 प्रतिशत में लगभग 14 प्रतिशत अंकों की तेज वृद्धि के साथ से 2019-21 में 61 प्रतिशत आंकड़ा दर्ज किया.
इन दो राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों को छोड़कर, एनीमिया के मामलों में सबसे तेज वृद्धि पूर्वी राज्यों में देखी गई – यह ओडिशा में 51 से बढ़कर 64.3 प्रतिशत, त्रिपुरा में 55 से 67 प्रतिशत, मिजोरम में 24.8 से 34.8 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 62.5 से प्रतिशत बढ़कर 71.4 प्रतिशत हो गई.
पश्चिमी राज्य गुजरात में भी, एनीमिया का प्रसार इन दो सर्वेक्षण के क्रमिक दौर में 54.9 से 10 प्रतिशत अंक बढ़कर 65 प्रतिशत हो गया था.
कुल मिलाकर, साल 2015-16 में लगभग 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे थे जहां आधे से अधिक महिलाएं एनीमिक थीं; यह संख्या 2019-21 में असम, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान (54.4 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र (54.2 प्रतिशत) को मिलाकर 25 हो गईं. एनएफएचएस-5 में दिल्ली को इस सूची से हटाया गया. मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 के सर्वे में दिल्ली में 54 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिक थीं, जो 2019-21 तक घटकर 49.9 प्रतिशत हो गई हैं.
लक्षद्वीप और चंडीगढ़ के केंद्र शासित प्रदेशों ने इस मामले में सबसे अधिक बेहतरी दिखाई और इसी समय अवधि में यहां एनीमिया का प्रसार क्रमशः 46 से 26 प्रतिशत और 76 से 60 प्रतिशत तक गिर गया.
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आय का स्तर, पर्यावरणीय कारक
‘पेन मेडिसिन’ के अनुसार, शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन को लाने ले जाने के लिए लाल रक्त कोशिकाओं को एक निश्चित मात्रा में आयरन (लौह तत्व) की आवश्यकता होती है; इसकी कमी से एनीमिया हो सकता है. इस आयरन को आगे दो प्रकारों में बांटा गया है – हीम और गैर-हीम.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, हीम आयरन, जो ज्यादातर मांस उत्पादों जैसे कि कुछ प्रकार के समुद्री भोजन, पोल्ट्री (मुर्गे का मांस और अंडे) और बीफ (गाय या भैंस का मांस) में पाया जाता है, मानव शरीर द्वारा बेहतर तरीके से अवशोषित होता है. हरी पत्तेदार सब्जियां (जैसे कि पालक) और दाल नॉन-हीम आयरन के स्रोत हैं.
इसे ध्यान में रखते हुए, लद्दाख में पाई गई एनीमिया के मामलों की उच्च संख्या कई अकादमिक विशेषज्ञों के लिए एक हैरानी की बात के रूप में सामने आई है, जिन्होंने उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि इस केंद्र शासित प्रदेश में जिस तरह से मांसाहारी भोजन के अपेक्षाकृत उच्च हिस्से का उपभोग किया जाता है, उसे देखते हुए यह संख्या इतनी खराब लगती है कि इसे सच मानना मुश्किल लगता है.
हालांकि, मुंबई स्थित एक जनसंख्या अनुसंधान संस्थान, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस), की प्रोफेसर अपराजिता चट्टोपाध्याय के अनुसार, भोजन में पोषण संबंधी विविधता की कमी – भारतीय घरों में प्रोटीन के गुणवत्तापूर्ण स्रोतों का न शामिल होना – एनीमिया के मुख्य कारणों में से एक हो सकता है.
मंगलवार को दिप्रिंट के साथ बात करते हुए प्रोफेसर चट्टोपाध्याय ने बताया कि गरीबी से भी एनीमिया पैदा होता है. उन्होंने कहा, ‘यदि आप पूर्वी राज्यों की ओर देखते हैं, तो वहां गरीबी का प्रसार अधिक है.’
उन्होंने कहा, ‘पश्चिमी राज्यों के विपरीत, उनके पास प्रोटीन के गुणवत्तापूर्ण संसाधन नहीं हैं, और वे ज्यादातर मामलों में कार्बोहाइड्रेट के सेवन पर ही जीवित रहते हैं. इसके अलावा, इस क्षेत्र में भूजल की गुणवत्ता भी काफ़ी खराब है.’
प्रोफेसर चट्टोपाध्याय ने आगे कहा कि अमीर होना भी एनीमिया के कम स्तर की गारंटी नहीं देता है. उनके अनुसार, ‘जब लोग आय के स्तर के साथ उपर बढ़ते हैं, तो वे ‘जंक फूड’ का सेवन करना भी शुरू कर देते हैं और पोषण की बात को भूल ही जाते हैं.’
प्रोफेसर चट्टोपाध्याय ने कहा कि आय के स्तर के अलावा ऐसे कई अधिक समग्र पर्यावरणीय कारक हैं जो एनीमिया के उच्च स्तर की व्याख्या कर सकते हैं.
अपने एक चल रहे (एनीमिया से संबंधित) अध्ययन का हवाला देते हुए, प्रोफेसर चट्टोपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया कि इसके प्रारंभिक निष्कर्ष बताते हैं कि एनीमिया वायरल संक्रामक रोगों, जो नदीतट वाले क्षेत्रों में अत्यधिक प्रचलित हैं, से भी जुड़ा हुआ है.
चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘हमारे शोध के शुरुआती निष्कर्ष बताते हैं कि जिन जगहों पर एनीमिया का स्तर अधिक होता है, वहां वायरल संक्रमण भी अधिक होता है. इसलिए, एनीमिया को कम करने का लक्ष्य रखते समय हमें सिर्फ खान-पान की आदतों पर ही ध्यान देने की जरूरत नहीं है. लक्ष्य उस समग्र मैक्रो-एन्वाइरन्मेंट को बदलने का होना चाहिए जो खाद्य विविधता में सुधार करता है और वायरल रोगों के बोझ को कम करता है.’
(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: ऋषभ राज)
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