नई दिल्ली: पाकिस्तान स्थित आतंकी संस्थान जैश ए मोहम्मद के प्रमुख को वैश्विक आतंकी घोषित करने की भारत की कोशिश को एक बार फिर चीन की दीवार का सामना करना पड़ा. चीन ने तकनीकी कारण बता कर अंतिम समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उस पर प्रतिबंध पर रोक लगा दी.
चीन के इस कदम से अमेरिका नाराज हो गया है और लगभग चेतावनी देते हुए कहा है कि हम इस मामले में दूसरे कड़े कदम उठाने पर मजबूर हो सकते हैं. अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति के विचार-विमर्श गोपनीय हैं, हम किसी विशिष्ट मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.
लेकिन हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हम प्रतिबंध समिति के साथ काम करना जारी रखेंगे ताकि पदनाम सूची को सटीक बनाया जा सके. प्रवक्ता ने यह भी कहा कि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए एक दूसरे के हितों को साझा करते रहे हैं. लेकिन जिस तरह से चीन आतंकी मसूद अजहर का बचाव कर रहा है यह हमारे लक्ष्यों के ठीक विपरीत है.
इस प्रतिबंध की कोशिश पुलवामा हमले के लिए जैश द्वारा ज़िम्मेदारी लेने के बाद फिर से की गई थी. इस हमले में 40 सीआरपीएफ जवान मारे गये थे.
ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1267 अल-कायदा प्रतिबंध कमीटी के तहत फ्रांस, ब्रिटेन और अमरीका 27 फरवरी को लाए थे. इस समिति के सदस्यों को प्रस्ताव पर सहमति बनाने के लिए बुधवार शाम न्यू यॉर्क के तीन बजे यानी भारत के गुरुवार मध्यरात्रि 12.30 का समय था. अंतिम समय में चीन ने ‘अतिरिक्त समय ’ की मांग कर प्रस्ताव को निरस्त कर दिया.
भारत के विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति में कहा गया कि ‘एक सदस्य’ ने प्रस्ताव होल्ड पर रख दिया जो कि बहुत ही निराशाजनक है.
भारत ने साथ ही सदस्य देशों की कोशिशों की सराहना की ‘जिन्होंने प्रस्ताव प्रस्तुत काय, सुरक्षा परिषद के सदस्यों, जिन्होंने अप्रत्याशित बड़ी संख्या में भाग लिया और गैर सदस्य जो अस प्रस्ताव के सह स्पॉन्सर बने. हम हर मुमकिन कोशिश करते रहेंगे ताकि जो आतंकवादी हमारे नागरिकों के हमले में शामिल है उनको सज़ा दिला सकें.’
ये पिछले दस सालों में चौथी बार है जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की विफल कोशिश की है. हर बार चीन से इस प्रतिबंध को पारित होने से रोका है. हर बार की तरह चौथी बार भी चीन वही रुख अपनाएंगे ये बात पहले ही स्पष्ट हो गई थी जब वहां के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था की ‘चीन 1267 कमीटी में ज़िम्मेदारी का रुख अपनायेगा…एक ऐसा समाधान खोजेगा जो सभी पक्षों को मान्य हो और मामले को सुलझाने में सक्षम हो.’
यानी सीधे शब्दों में वो पाकिस्तान का साथ देगा और एक बार फिर इस प्रतिबंध की कोशिश को सफल नहीं होने देगा. और ऐसा ही हुआ. भारत 2009 से इस प्रतिबंध की कोशिश में लगा हुआ है. 2016 में भी वो पी-3 देशों के साथ ये प्रस्ताव लाया था. यही 2017 में और अब 2019 में भी हुआ. पर चीन के पास वीटो की शक्ति है और उसने हर बार उसका उपयोग किया. इस प्रतिबंध के तहत सैंक्शन कमीटी उक्त संगठन या व्यक्ति के सभी संपत्ति को फ्रीज़ करना, उनके ट्रेवल पर, उनको शस्त्रों की सप्लाई पर रोक आदि शामिल है.
इस बार भारत ने राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर बहुत कोशिश की – पच्चीस देशों के राजदूतों से संपर्क साधा, संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थाई सदस्यों- अमरीका, रूस, यूके, फ्रांस और चीन तक पाकिस्तान की आतंकवाद को राज्य की नीति के तौर पर अपनाने पर आगाह किया. विदेश सचिव विजय गोखले अमरीका गए. भारत ने जैश के पुलवामा हमले में शामिल होने के सबूत भी साझा किए थे.
इस बार फ्रांस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अमरीका ने चीन को ज़िम्मेदार देश के रूप में पेश आन की हिदायत भी दी.पर चीन पाकिस्तान से अपनी हर मौसम में बनी रहने वाली विशेष दोस्ती पर कायल रहा और उसने अपना रुख नहीं बदला.
भारत के लिए सोचने की बात है कि उसे पाकिस्तान से आ रहे आतंकवाद की चुनौती से तो निपटना ही होगा पर शायद चीन उसके लिए और बड़ा सरदर्द साबित होगा और उसे सोचना चाहिए की उस परिदृष्य में वो क्या करेगा.