बेंगलुरु: अमेरिकी शोधकर्ताओं के दो समूहों ने अलग-अलग पेपर्स में जानकारी दी है कि एडवांस और लाइलाज ल्यूकेमिया की एक दवा का पहले चरण का परीक्षण आशाजनक रहा है.
इस नई दवा को रेवुमेनिब के नाम से जाना जाता है, और इसका गंभीर रूप से ल्यूकेमिया पीड़ित जिन 60 मरीजों पर परीक्षण किया गया, उनमें से आधे से अधिक पूर्ण या आंशिक रूप से इससे उबर आए. वहीं, दूसरे समूह के तीन-चौथाई से अधिक मरीज भी दवा देने के दो महीने बाद इस बीमारी से ठीक होते दिखे.
पहले चरण के परीक्षण के निष्कर्ष- अमेरिका में 2019 से 2022 के बीच सीमित संख्या में वालंटियर के साथ नौ जगहों पर किए गए पहले चरण के परीक्षण के नतीजे दर्शाते हैं कि संभवत: गंभीर किस्म के ल्यूकेमिया का उपचार हो सकता है.
ह्यूस्टन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर के गयास इस्सा और उनके सहयोगियों की तरफ से किए गए एक अध्ययन का हिस्सा रहे इन नतीजों को बुधवार क नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया.
इससे संबंधित पहले चरण का एक अध्ययन उसी दिन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ, जिसे बोस्टन स्थित डाना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट के स्कॉट आर्मस्ट्रांग व अन्य शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया और जिसमें उन जीन में खास तरह के म्यूटेशन की पहचान की गई जो रेवुमेनिब के प्रतिरोधक बन सकते हैं.
इन ‘ट्रीटमेंट इस्केप’ रूट के जरिये दवा प्रतिरोधी उपचारों को समझने में काफी अहम जानकारी मिल सकती है जो कि ल्यूकेमिया जैसी बीमारी में एक बड़ी बाधा है.
ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर होता है, जिसकी शुरुआत अस्थि मज्जा में होती है, जहां लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन होता है. 2020 में दुनियाभर में कैंसर के कारण जो मौतें हुईं, उनमें से 4 फीसदी की वजह गंभीर और दीर्घकालिक ल्यूकेमिया बीमारी रही.
गंभीर और दवा प्रतिरोधी ल्यूकेमिया में जीवित बचने की दर काफी कम है, अमूमन तो यह 8 प्रतिशत से भी कम होती है.
मेनिन और मेनिन अवरोधक के रूप में कैसे काम करती है रेवुमेनिब
मानव शरीर में गंभीर ल्यूकेमिया के लिए जिम्मेदार जीन का अच्छी तरह से अध्ययन करके उससे जुड़े तथ्यों को पुष्ट किया गया है. यह रोग उत्पन्न होने ये जीन खास तरह से म्यूटेट करते हैं जिसका ब्योरा इसमें दर्ज किया गया है.
गंभीर किस्म का ल्यूकेमिया आमतौर पर या तो एनपीएम-1 जीन में म्यूटेशन या फिर केएमटी2एआर जीन के रिअरेंजमेंट का नतीजा होता है. बीमारी को बढ़ाने में इन दोनों जीन की भूमिका का अध्ययन में खास तौर पर उल्लेख किया गया है.
फिलहाल, इन जीन में बदलावों पर कारगर कोई इलाज नहीं है. प्रारंभिक, पूर्व-नैदानिक अध्ययनों से पता चलता है कि ट्यूमर विकसित होने से रोकने में कारण एक प्रोटीन मेनिन दो ल्यूकेमिया जीन में म्यूटेशन बढ़ने के लिए जिम्मेदार होता है.
अध्ययन से पता चलता है कि मेनिन कैंसर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है, और यह माना जा रहा कि मेनिन अवरोधक के जरिये कैंसर बढ़ने से रोकने या इसे खत्म करने में मदद मिल सकती है.
रेवुमेनिब, जिसकी प्रभावकारिता और सुरक्षा का पहले चरण के दो अध्ययनों में परीक्षण किया जा रहा है, को मेनिन के लिहाज से एक अच्छा, दवा की गोली के रूप में और चुनींदा अवरोधक माना जा रहा है.
यह भी पढ़ें: हमारे मस्तिष्क में छिपे हैं कई राज- गहरी रिसर्च के जरिए नित नए रहस्यों से पर्दा उठा रहे वैज्ञानिक
रेवुमेनिब कितनी असरदार
इस्सा और उनके सहयोगियों के किए पहले अध्ययन के मुताबिक, 68 रोगियों का इलाज रेवुमेनिब की एक प्रायोगिक खुराक के साथ किया गया, जिसे पहले एसएनडीएक्स-5613 के रूप में जाना जाता था. इस परीक्षण में 60 वयस्क और 18 साल से कम उम्र के 8 लोग शामिल थे और इस तरह पहली बार इस दवा का इंसानों पर परीक्षण किया गया.
इन 68 में से 60 को आंकलन योग्य की श्रेणी में रखा गया. 60 प्रतिभागियों में से कम से कम 53 प्रतिशत ने कुछ हद तक आराम का अनुभव किया या उनमें कैंसर बढ़ना रुक गया, जबकि 30 प्रतिशत (60 में से 18) को बीमारी से छुटकारा मिल गया.
इन 18 में से 78 प्रतिशत में दो महीनों के बाद नाममात्र के ही लक्षण मिले.
पेपर में शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘हमें एडवांस स्टेज के गंभीर ल्यूकेमिया पीड़ित बच्चों और वयस्कों दोनों की प्रीट्रीटेड आबादी में मॉलीक्यूलर स्तर पर गहरे असर और न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव के साथ एक उत्साहजनक क्लीनिकल लाभ नजर आया है.’
यद्यपि परीक्षण के नतीजे आशाजनक हैं, लेकिन साइड-इफेक्ट्स से परे नहीं हैं. तीन-चौथाई से अधिक प्रतिभागियों ने कम से कम एक प्रतिकूल प्रभाव का अनुभव किया जैसे कि अनियमित दिल की धड़कन, मतली या उल्टी.
बहरहाल, उन पर परीक्षण के नतीजों ने भविष्य में पहले चरण के अन्य अध्ययनों के लिए मजबूत आधार प्रदान किया है जिसमें और अधिक लोगों को शामिल करके और अन्य फॉर्मूले वाली दवाओं का उपयोग करके उनकी प्रभावकारिता का पता लगाया जा सकता है.
दवा का प्रतिरोध भी कम नहीं
डेटा के दूसरे विश्लेषण—जिसमें आर्मस्ट्रांग और उनके सहयोगियों ने किया—में पाया गया कि जीन में कुछ खास म्यूटेशन मेनिन अवरोधक और रेवुमेनिब जैसी दवाओं के प्रति चयनात्मक प्रतिरोध प्रदर्शित करते हैं.
उन्होंने एमईएन-1 जीन में म्यूटेशन की पहचान की, जो मेनिन को एनकोड करता है. ये म्यूटेशन कई मरीजों में पाए गए थे जिन पर शुरू में दवा कुछ कारगर नजर आई लेकिन बाद में उसने उन पर असर करना बंद कर दिया.
शोधकर्ताओं ने पाया कि म्यूटेशन के कारण ड्रग-बाइंडिंग साइट में बदलाव की वजह से मेनिन अवरोधक के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है, जिसका नतीजा यह होता है कि संबंधित व्यक्ति पर इलाज बेअसर हो जाता है.
शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘हमारी जानकारी के मुताबिक, यह इस तरह का पहला अध्ययन है जो यह बताता है कि एक क्रोमेटिन-लक्षित चिकित्सीय दवा मरीजों में पर्याप्त चयनित दबाव डालती है जिससे इस्केप म्यूटैंट विकसित होता है और यह लगातार क्रोमेटिन ऑक्यूपेंसी की वजह बनता है. यह इलाज के प्रतिरोध की एक सामान्य प्रक्रिया को दर्शाता है.’
ऐसे में दवा प्रतिरोध की ओर ले जाने वाले इन तरीकों के बारे में समझना न केवल दवा प्रतिरोध का मुकाबला करने बल्कि किसी दवा की बेहतर प्रभावकारिता के लिए मौजूदा फार्मूले में सुधार के लिए भी अहम साबित हो सकता है.
(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
यह भी पढ़ें: जाने-माने जेनिटिसिस्ट और NCBS निदेशक एलएस शशिधर, जिनकी नजर में साइंस पहले और बाद में है सोशल वेलफेयर