scorecardresearch
Monday, 18 November, 2024
होमराजनीतिअजीत पवार और सुप्रिया सुले के बाद NCP को राज्य प्रमुख जयंत पाटिल के रूप में एक और पावर सेंटर मिला

अजीत पवार और सुप्रिया सुले के बाद NCP को राज्य प्रमुख जयंत पाटिल के रूप में एक और पावर सेंटर मिला

महाराष्ट्र में पार्टी प्रमुख का पद संभालने के बाद से ही पाटिल ने अपने लिए एक मजबूत अनुयायी वर्ग तैयार किया है. विश्लेषकों का कहना है कि उनके और अजीत पवार के बीच प्रतिस्पर्धा तो जरूर है, मगर यह कभी भी खुले संघर्ष के रूप में सामने नहीं आया है.

Text Size:

मुंबई: जब कभी भी पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के आगे के भविष्य को लेकर कोई बात होती है तो सत्ता के दो स्पष्ट केंद्रों और उनके आस- पास की मंडली का जिक्र जरूर होता है. ये हैं पवार की अपनी बेटी सुप्रिया सुले और उनके भतीजे अजीत पवार.

हालांकि, पिछले पांच वर्षों के दौरान, धीरे-धीरे ही सही, पार्टी के भीतर एक तीसरा शक्ति केंद्र (पावर सेंटर) – एनसीपी महाराष्ट्र अध्यक्ष जयंत पाटिल के रूप में – भी उभरा है.

राजनीतिक विश्लेषक और पार्टी के तमाम पदाधिकारी इस बात से सहमत हैं कि पिछले कुछ वर्षों से पाटिल ने अपने राज्यव्यापी दौरों के माध्यम से पार्टी के भीतर अपने लिए एक मजबूत आधार तैयार कर लिया है. पार्टी का महाराष्ट्र अध्यक्ष बनने के बाद से पाटिल का दबदबा काफी बढ़ गया है.

दिप्रिंट ने जिन कई एनसीपी नेताओं से बात की, उन्होंने बताया कि सांगली जिले के इस्लामपुर विधान सभा सीट से विधायक पाटिल ने समूचे महाराष्ट्र का बड़े पैमाने पर दौरा किया है और राकांपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के बाद से सभी स्तरों के कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत रूप से जुड़े हैं. नतीजतन, उन्होंने अपने प्रति वफादार कार्यकर्ताओं का अपना एक समूह विकसित कर लिया है, जो पोस्टरों और वायरल सोशल मीडिया वीडियो के माध्यम से अपने नेता की छवि तैयार कर रहे हैं.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि पवार परिवार के घऱेलू संसदीय क्षेत्र बारामती से सांसद रहीं सुले ने हमेशा से दिल्ली में पार्टी के लिए मोर्चा संभालने के प्रति उत्सुकता दिखाई है, वहीं राज्य स्तर पर पाटिल की महत्वकांक्षाएं कई बार बारामती के विधायक अजीत पवार से टकराती रहती है. लेकिन दोनों नेताओं ने इस बात का खासा ख्याल रखा है कि वे कभी-कभार होने वाले इस टकराव को खुले संघर्ष में न बदलने दें.

राजनीतिक विश्लेषक प्रताप अस्बे ने कहा, ‘पाटिल ने पार्टी के भीतर अपने लिए खास जगह बनाई है. हालांकि, अजीत दादा पवार हमेशा से एक शक्ति केंद्र थे, लेकिन पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से पाटिल का दबदबा असाधारण रूप से बढ़ गया है.’

उन्होंने कहा, ‘पाटिल की खुद के लिए महत्वाकांक्षा है, और निश्चित रूप से उनके और अजीत दादा के बीच एक तरह की प्रतियोगिता है. सुले पार्टी के भीतर अपनी हैसियत साबित करने को लेकर उतनी आक्रामक नहीं रहीं हैं, लेकिन उनके समर्थक उनके लिए झंडा बुलंद करते रहते हैं. अंततः, पवारसाहेब (शरद पवार) यह सुनिश्चित करते हैं कि महत्वाकांक्षाओं के इस टकराव से पार्टी को कोई नुकसान न हो.’

‘भावी सीएम’

पिछले महीने, पाटिल के 61वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर, उनके समर्थकों ने उनके नेपियन सी स्थित आवास, और साथ ही मुंबई में बल्लार्ड पियर स्थित पार्टी मुख्यालय के बाहर भी, कुछ पोस्टर लगाए, जिनमें उन्हें (पाटिल को) ‘होने वाला मुख्यमंत्री’ और ‘#बॉस’ कहा गया था. इससे एक पोस्टर युद्ध सा छिड़ गया, जिसके तहत अजीत पवार और सुले के समर्थकों ने भी अपने से संबंधित नेताओं को ‘भावी मुख्यमंत्री’ बताते हुए पार्टी मुख्यालय के बाहर पोस्टर लगा दिए.

पिछले हफ्ते, पाटिल के समर्थकों ने एक बार फिर से अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए पिछले कुछ वर्षों के दौरान विधान सभा में पाटिल द्वारा दिए गए भाषणों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया.

यह वीडियो 27 फरवरी से शुरू हुए राज्य के बजट सत्र के लिए पाटिल की विधायिका में वापसी के अवसर पर जारी किया गया था. बता दें कि राज्य विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए उन्हें पूरे शीतकालीन सत्र में भाग लेने से निलंबित कर दिया गया था.

इस वीडियो में उल्लेख किया गया है कि कैसे पाटिल ने पूर्व वित्त मंत्री के रूप में नौ बार राज्य का बजट पेश किया था और कैसे विपक्ष में रहने के दौरान उन्होंने राकांपा की आवाज के रूप में विधानसभा के भीतर सत्ताधारी पार्टियों पर आक्रामक हमले किए हैं. इस वीडियो के अंत में पाटिल को उनके समर्थकों द्वारा अपने कंधों पर उठाये जाते हुए दिखाया गया है, और इसके साथ ही ‘टाइगर अभी जिंदा है’ का एक वॉयसओवर भी है.

इस साल जनवरी में, अपने गृह जिले सांगली में एक स्थानीय मीडिया हाउस के साथ बात करते हुए, पाटिल ने खुद स्वीकार किया था कि मुख्यमंत्री पद को लेकर उनकी खुद की महत्वाकांक्षा भी है.

पाटिल ने इस बारे में टिप्पणी के लिए दिप्रिंट द्वारा किये गए कॉल और टेक्स्ट संदेश का कोई जवाब नहीं दिया. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस आलेख को अपडेट कर दिया जाएगा.

उनका नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए शरद पवार के करीबी रहे एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘कल क्या स्थिति होगी, हमें बहुमत मिलेगा भी या नहीं, क्या हम सरकार बनाने की स्थिति में होंगे और हमारा अपना सीएम होगा, इन बातों को कोई नहीं जानता – इसलिए अभी से यह कयास लगाने का कोई मतलब नहीं है कि पवारसाहेब किसे चुनेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन एक बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पार्टी के भीतर पाटिल की लोकप्रियता उनके राज्यव्यापी दौरों और अध्यक्ष के रूप में उनके संगठनात्मक कार्यों की वजह से निश्चित रूप से बढ़ी है.’


यह भी पढ़ें: ई-टेंडर CM खट्टर का नया मंत्र है हरियाणा के सरपंचों ने इसे ‘गांव की संस्कृति’ पर हमला बताया है


 

प्रदेश राकांपा अध्यक्ष के रूप में पाटिल का काम

एनसीपी के एक जिला-स्तरीय पदाधिकारी, जो उनका नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया कि पाटिल की ‘राष्ट्रवादी परिवार संवाद यात्रा’, जिसके एक हिस्से के रूप में साल 2021 और 2022 के बीच उन्होंने पूरे राज्य का दौरा किया और पार्टी के स्थानीय कैडर के साथ बातचीत की, से उन्हें बहुत लोकप्रियता हासिल हुई है.

वे बताते हैं, ‘ निश्चित रूप से उन्होंने (पाटिल ने) किसी भी अन्य पिछले राज्य अध्यक्ष से अधिक काम किया है. भाजपा के पास अपने कैडर को लगातार पार्टी की गतिविधियों के साथ जोड़े रखने का एक तरीका है. जयंत पाटिल ने उसी फॉर्मूले का तोड़ निकालते हुए और उसे राकांपा में भी लागू कर दिया है.‘

उन्होंने कहा कि पाटिल ने ‘एक तास राष्ट्रवादी साथी’ (एनसीपी के लिए एक घंटा) कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसके तहत – हर महीने के पहले शनिवार को – पार्टी के जिला स्तर के पदाधिकारियों को प्रत्येक तालुका के स्तर पर पार्टी की बैठकें करनी होती है, और समसामयिक मामलों के साथ-साथ पार्टी से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करनी होती है. इस पदाधिकारी ने कहा, ‘हमें ऐसी हर बैठक के बाद पार्टी नेतृत्व को इसके बारे में एक रिपोर्ट सौंपनी होती है.’

इस पदाधिकारी ने आगे बताया कि पाटिल ने पहले से कहीं अधिक गंभीरता दिखाते हुए पार्टी में शामिल प्रत्येक प्राथमिक सदस्य के तहत 10 मतदाताओं को जोड़ने के साथ एक जोरदार सदस्यता अभियान भी चलाया था, और इसके तहत, भाजपा की तर्ज पर ही, यह भी सुनिश्चित किया गया कि सभी प्राथमिक और माध्यमिक सदस्यों के लिए दो-चरणीय सत्यापन किया गया था.

उनका नाम न छापने की शर्त पर राकांपा के एक विधायक ने कहा, ‘पार्टी संगठन विधायकों से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. जो कोई भी पार्टी संगठन में काम करता है उसका पार्टी के सदस्यों और उसके समर्थकों के साथ एक मजबूत संबंध होता है.‘

उन्होंने कहा, ‘पाटिल ने अच्छा काम किया है, लेकिन अजीत दादा ने भी अच्छा काम किया है. पार्टी के भीतर उनका अपना-अपना अनुयायी वर्ग है. अब यह शरद पवार साहब को ही तय करना है कि किसे क्या मिलता है. पार्टी में एकमात्र शक्ति केंद्र वह ही हैं.’

सात बार के विधायक और शरद पवार के खास शागिर्द

पाटिल का जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ था और उनके पिता राजाराम बापू पाटिल एक अनुभवी कांग्रेसी नेता थे. एनसीपी का गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी महाराष्ट्र से आने वाले मराठा नेता पाटिल पहली-पहली बार साल 1990 में सांगली के वालवा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक के रूप में चुने गए थे. उसके बाद से सात बार के विधायक रहे पाटिल सांगली के इस्लामपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और कभी भी चुनाव नहीं हारने का रिकॉर्ड रखते हैं.

जब शरद पवार ने साल 1999 में कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया और राकांपा का गठन किया, तो पाटिल उनके साथ नयी पार्टी में शामिल होने वाले कुछ प्रमुख नेताओं में से थे.

साल 1999 से 2014 तक महाराष्ट्र में जब कांग्रेस-एनसीपी सरकार सत्ता में रही थी, तब पाटिल ने उन 15 वर्षों के दौरान कई प्रमुख विभागों को संभाला था. इस नेता ने साल 1999 से 2008 तक राज्य के वित्त विभाग को संभाला और फिर राकांपा नेता आर. आर. पाटिल द्वारा 26/11 के मुंबई हमलों के बाद गृह मंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद उन्हें राज्य का गृह विभाग सौंपा गया था. साल 2009 और 2014 के बीच, पाटिल ने ग्रामीण विकास मंत्रालय संभाला, और बाद में, साल 2019 से 2022 तक, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के एक हिस्से के रूप में राज्य जल संसाधन विभाग को भी संभाला.

साल 2018 में पाटिल के सर्वसम्मति से राकांपा का राज्य अध्यक्ष चुने जाने के बाद, शरद पवार ने पार्टी की स्थापना के बाद से उनके मंत्री के रूप में विशाल अनुभव और पार्टी के लिए किये गए उनका काम का हवाला दिया था.

राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘पाटिल ने तमाम अहम विभागों में काम किया है और उनके साथ कोई बड़ा विवाद नहीं रहा है. उन्होंने एक ऐसे समय में वित्त विभाग को संभाला जब राज्य का वित्त खस्ताहाल था, और वे अपने साथ बहुत अधिक वित्तीय समझदारी लेकर आये.’

उन्होंने कहा, ‘वह एक अच्छे प्रशासक हैं और एक अच्छे मुख्यमंत्री बन सकते हैं; मगर उनमें अजीत पवार जैसी आक्रामकता की कमी है.‘

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यहां पढ़ें: कैसे रोहू मछली के स्केल से 90 LED जलाने वाली बिजली पैदा कर रहें हैं पंजाब के रिसर्चर्स


share & View comments